बड़ा तालाब, भोपाल
बड़ा तालाब, भोपाल
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विवरण | 'बड़ा तालाब' भोपाल में मानव निर्मित एक झील है। इसके पूर्वी छोर पर भोपाल शहर बसा हुआ है, जबकि इसके दक्षिण में 'वन विहार राष्ट्रीय उद्यान' स्थित है। | ||
राज्य | मध्य प्रदेश | ||
ज़िला | भोपाल | ||
निर्माता | राजा भोज | ||
निर्माण काल | 11वीं सदी | ||
संबंधित लेख | मध्य प्रदेश, भोपाल | क्षेत्रफल | तालाब का कुल क्षेत्रफ़ल 31 वर्ग किलोमीटर है और इसमें लगभग 361 वर्ग किलोमीटर इलाके से पानी एकत्रित किया जाता है। |
विशेष | इसे एशिया की सबसे बड़ी कृत्रिम झील भी माना जाता है। तालाब के बीच में 'तकिया द्वीप' है, जिसमें शाहअली शाह रहमतुल्लाह का मकबरा बना हुआ है। | ||
अन्य जानकारी | मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के पश्चिमी हिस्से में स्थित यह तालाब भोपाल के निवासियों के पीने के पानी का सबसे मुख्य स्रोत है। |
बड़ा तालाब मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के मध्य में स्थित मानव निर्मित एक झील है। इस तालाब का निर्माण 11वीं सदी में किया गया था। भोपाल में एक कहावत है- "तालों में ताल भोपाल का ताल बाकी सब तलैया", अर्थात् "यदि सही अर्थों में तालाब कोई है तो वह है भोपाल का तालाब"। भोपाल की यह विशालकाय जल संरचना अंग्रेज़ी में 'अपर लेक' कहलाती है। इसी को हिन्दी में 'बड़ा तालाब' कहा जाता है। इसे एशिया की सबसे बड़ी कृत्रिम झील भी माना जाता है। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के पश्चिमी हिस्से में स्थित यह तालाब भोपाल के निवासियों के पीने के पानी का सबसे मुख्य स्रोत है।
इतिहास
भोपाल के 'बड़े तालाब' का निर्माण 11वीं सदी में परमार वंश के राजा भोज ने करवाया था। बेहद प्राचीन और जनउपयोगी इस जलाशय का इतिहास अनेक खट्टे-मीठे अनुभवों से भरा हुआ है। उपलब्ध ऐतहासिक अभिलेखों के आधार पर यह माना जाता है कि धार प्रदेश के प्रसिद्ध परमार राजा भोज एक असाध्य चर्मरोग से पीड़ित हो गए थे। एक संत ने उन्हें सलाह दी कि वे 365 स्त्रोतों वाला एक विशाल जलाशय बनाकर उसमें स्नान करें। साधु की बात मानकर राजा भोज ने राजकर्मचारियों को काम पर लगा दिया। इन राजकर्मचारियों ने एक ऐसी घाटी का पता लगाया, जो बेतवा नदी के मुहाने स्थित थी। लेकिन उन्हें यह देखकर झुंझलाहट हुई कि वहाँ केवल 356 सर-सरिताओं का पानी ही आता था। तब 'कालिया' नाम के एक गोंड मुखिया ने पास की एक नदी की जानकारी दी, जिसकी अनेक सहायक नदियाँ थीं। इन सबको मिलाकर संत के द्वारा बताई गई संख्या पूरी होती थी। इस गोंड मुखिया के नाम पर इस नदी का नाम 'कालियासोत' रखा गया, जो आज भी प्रचलित है। लेकिन राजा भोज की चुनौतियों का दौर अब भी समाप्त नहीं हुआ था।
बेतवा नदी का पानी इस विशाल घाटी को भरने के लिए पर्याप्त नहीं था। इसलिए इस घाटी से लगभग 32 किलोमीटर पश्चिम में बह रही एक अन्य नदी को बेतवा घाटी की ओर मोड़ने के लिए एक बांध बनाया गया। यह बांध आज के भोपाल शहर के नजदीक भोजपुर में बना था। इन प्रयासों से जो विशाल जलाशय बना, उसका नाम 'भोजपाला' रखा गया। उसका विस्तार 65,000 हेक्टेयर था और कहीं-कहीं वह 30 मीटर गहरा था। यह प्रायद्वीपीय भारत का कदाचित सबसे बड़ा मानव-निर्मित जलाशय था। उसमें अनेक सुंदर द्वीप थे, और उसके चारों ओर खुबसूरत पहाड़ियाँ थीं। वह प्रसिद्ध भोजपुर शिवालय से आज के भोपाल शहर तक फैला हूआ था। कहते हैं कि राजा भोज इस जलाशय में स्नान करके अपने रोग से मुक्त हो गए। राजा भोज द्वारा निर्मित विशाल जलाशय 'भोजपाला' की वजह से ही इस शहर का नाम धीरे-धीरे 'भोजपाल' और बाद में 'भोपाल' हो गया।[1]
होशंगशाह द्वारा बांध को तुड़वाना
बेतवा नदी के बहाव को रोकने के लिए भोजपुर में जो मुख्य बांध बनाया गया था, वह पत्थरों से निर्मित था। इस बांध को 1443 ईस्वीं में होशंगशाह ने तुड़वा दिया था। कहा जाता है कि उसके सैनिकों को बांध तोड़ने में 30 दिन लग गए। बांध के टूटने के बाद भी जलाशय को पूरा सूखने में 30 वर्ष लगे। तालाब की सूखी जमीन पर आज बसाहट है। कालान्तर में भोजपुर का बांध तोड़ दिया गया, लेकिन भोपाल में कमला पार्क के पास जो मिट्टी का बांध था, वह बच गया। उसके कारण एक छोटा जलाशय शेष रह गया। इसी को आज बड़ा तालाब कहते हैं। वर्ष 1694 में नवाब छोटे ख़ान ने बड़े तालाब के पास बाण गंगा पर एक बांध बनवाया, जिसके कारण छोटा तालाब अस्तित्व में आया। यह दोनों तालाब आज भी धार के दूरदर्शी राजा भोज की स्मृति को अमर बनाए हुए है।
जल संग्रहण क्षमता
वर्ष 1963 में भदभदा पर एक बांध बनाकर बड़े तालाब की जल संग्रहण क्षमता को बढ़ाया गया। इससे बड़े तालाब के पश्चिमी और दक्षिणी भागों के डूब क्षेत्र में वृद्धि हुई। बड़े तालाब का जल विस्तार क्षेत्र लगभग 31 वर्ग किलोमीटर है, जबकि छोटे तालाब का जल विस्तार क्षेत्र मात्र 1.29 वर्ग किलोमीटर है। इन तालाबों की औसत गहराई 6 मीटर है। कुछ स्थानों में गहराई 11 मीटर है। बड़े तालाब की जल संग्रहण क्षमता 1160 लाख घन मीटर है। यह पानी तालाब के जलग्रहण क्षेत्र में हुई वर्षा से आता है और अंतत: भोपाल के रहवासियों को घरों के नलों से पेयजल के रूप में उपलब्ध होता है। भोपाल के तालाबों के नीचे की चट्टानें डेक्कन ट्रैप बेसाल्ट प्रकार की हैं, जो ज्वालामुखियों के लावा के बहने और तुरंत ठंडा होने के कारण बनी हैं। जिस भू-भाग में भोपाल का तालाब स्थित हैं, प्राचीन समय में उस भू-भाग में काफ़ी भूगर्भीय उथल-पुथल हुई थी।[1]
भौगोलिक स्थिति
'बड़ा तालाब' के पूर्वी छोर पर भोपाल शहर बसा हुआ है, जबकि इसके दक्षिण में 'वन विहार राष्ट्रीय उद्यान' स्थित है। तालाब के पश्चिमी और उत्तरी छोर पर कुछ मानवीय बस्तियाँ हैं, जिसमें से अधिकतर इलाका कृषि वाला है। इस झील का कुल क्षेत्रफ़ल 31 वर्ग किलोमीटर है और इसमें लगभग 361 वर्ग किलोमीटर इलाके से पानी एकत्रित किया जाता है। इस तालाब से लगने वाला अधिकतर हिस्सा ग्रामीण क्षेत्र है, लेकिन अब समय के साथ कुछ शहरी इलाके भी इसके नज़दीक बस चुके हैं। कोलास नदी, जो कि पहले हलाली नदी की एक सहायक नदी थी, लेकिन एक बाँध तथा एक नहर के जरिये कोलास नदी और बड़े तालाब का अतिरिक्त पानी अब कलियासोत नदी में चला जाता है।[2]
क्षेत्रफल
भोपाल तालाब का कुल भराव क्षेत्रफल 31 किलोमीटर है, पर अतिक्रमण एवं सूखे के कारण यह क्षेत्र 8-9 किलोमीटर में ही सिमट कर रह गया है। भोपाल की लगभग 40 प्रतिशत जनसंख्या को यह झीलनुमा तालाब लगभग तीस मिलियन गैलन पानी रोज देता है। इस बड़े तालाब के साथ ही एक 'छोटा तालाब' भी यहाँ मौजूद है और यह दोनों जल क्षेत्र मिलकर एक विशाल 'भोज वेटलैण्ड' का निर्माण करते हैं, जो कि अन्तर्राष्ट्रीय रामसर सम्मेलन के घोषणा पत्र में संरक्षण की संकल्पना हेतु शामिल है।
महत्त्व
11वीं शताब्दी में इस विशाल तालाब का निर्माण किया गया और भोपाल शहर इसके आस-पास ही विकसित होना शुरू हुआ। इन दोनों बड़ी-छोटी झीलों को केन्द्र में रखकर भोपाल का निर्माण हुआ था। भोपाल शहर के निवासी धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से इन दोनों झीलों से गहराई तक जुड़े हैं। रोज़मर्रा की आम ज़रूरतों का पानी उन्हें इन्हीं झीलों से मिलता है, इसके अलावा आस-पास के गाँवों में रहने वाले लोग इसमें कपड़े भी धोते हैं। हालांकि यह इन झीलों की सेहत के लिये खतरनाक है। सिंघाड़े की खेती भी इस तालाब में की जाती है। स्थानीय प्रशासन की रोक और मना करने के बावजूद विभिन्न त्यौहारों पर देवी-देवताओं की मूर्तियाँ इन तालाबों में विसर्जित की जाती हैं। बड़े तालाब के बीच में 'तकिया द्वीप' है, जिसमें शाहअली शाह रहमतुल्लाह का मकबरा भी बना हुआ है, जो कि अभी भी धार्मिक और पुरातात्विक महत्व रखता है।
व्यवसाय व मनोरंजन
बड़े तालाब में मछलियाँ पकड़ने हेतु 'भोपाल नगर निगम' ने मछुआरों की सहकारी समिति को लम्बे समय तक एक इलाका किराये पर दिया हुआ है। इस सहकारी समिति में लगभग 500 मछुआरे हैं, जो कि इस तालाब के दक्षिण-पूर्वी हिस्से में मछलियाँ पकड़कर जीवन यापन करते हैं। इस झील से बड़ी मात्रा में सिंचाई भी की जाती है। इस झील के आस-पास लगे हुए 87 गाँव और सीहोर ज़िले के भी कुछ गाँव इसके पानी से खेतों में सिंचाई करते हैं। इस इलाके में रहने वाले ग्रामीणों का मुख्य काम खेती और पशुपालन ही है। इनमें कुछ बड़े और कुछ बहुत ही छोटे-छोटे किसान भी हैं। भोपाल का यह बड़ा तालाब स्थानीय और बाहरी पर्यटकों को भी बहुत आकर्षित करता है। यहाँ बोट क्लब पर भारत का पहला 'राष्ट्रीय सेलिंग क्लब' भी स्थापित किया जा चुका है। इस क्लब की सदस्यता हासिल करके पर्यटक कायाकिंग, कैनोइंग, राफ़्टिंग, वाटर स्कीइंग और पैरासेलिंग आदि का मजा उठा सकते हैं। विभिन्न निजी और सरकारी बोटों से पर्यटकों को बड़ी झील में भ्रमण करवाया जाता है। इस झील के दक्षिणी हिस्से में स्थापित 'वन विहार राष्ट्रीय उद्यान' भी पर्यटकों के आकर्षण का एक और केन्द्र है। चौड़ी सड़क के एक तरफ़ प्राकृतिक वातावरण में पलते जंगली पशु-पक्षी और सड़क के दूसरी तरफ़ प्राकृतिक सुन्दरता मन मोह लेती है।[2]
जैव विविधता
बड़े तालाब और इसके निकट ही छोटे तालाब में जैव-विविधता के कई रंग देखने को मिलते हैं। वनस्पति और विभिन्न जल आधारित प्राणियों के जीवन और वृद्धि के लिये यह जल संरचना एक आदर्श स्थल मानी जा सकती है। प्रकृति आधारित वातावरण और जल के चरित्र की वजह से एक उन्नत किस्म की जैव-विविधता का विकास हो चुका है। प्रतिवर्ष यहाँ पक्षियों की लगभग 20,000 प्रजातियाँ देखी जा सकती हैं, जिनमें मुख्य हैं- व्हाईट स्टॉर्क, काले गले वाले सारस, हंस आदि। कुछ प्रजातियाँ तो लगभग विलुप्त हो चुकी थीं, लेकिन आहिस्ता-आहिस्ता अब वे पुनः दिखाई देने लगी हैं। हाल ही में यहाँ भारत का विशालतम पक्षी 'सारस क्रेन' भी देखा गया था, जो कि अपने आकार और उड़ान के लिये प्रसिद्ध है।
अपने लगभग एक हजार वर्ष के अस्तित्व काल में बड़ा तालाब एक प्राकृतिक नमभूमि में बदल गया है। वोट क्लब पर टहलते हुए जब भी लोग तकिया टापू के पीछे सूर्य को डूबते हुए देखते है, तो वे इस तालाब के सौंदर्य से अभिभूत हुए बिना नहीं रह पाते। यद्यपि आज भोपाल के 'बड़ा तालाब' और 'छोटा तालाब' के इर्द-गिर्द अनेक आधुनिक संरचनाएँ बना दी गई हैं फिर भी तालाब को आस्तित्व प्रदान करने वाली प्रमुख संरचना वही मिट्टी का पुराना बांध है, जिसे राजा भोज ने बनवाया था। निश्चित ही राजा भोज में गजब की दूरदृष्टि थी, क्योंकि 11वीं सदी में निर्मित यह जलाशय आज 21वीं शताब्दी में भी भोपाल शहर की 40 प्रतिशत पेयजल आपूर्ति कर रहा है। इसका श्रेय निश्चय की उस समय की बेजोड़ जल-अभियांत्रिकी क्षमता को जाता है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 प्राचीन जल अभियांत्रिकी का बेजोड़ नमूना है भोपाल ताल (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 20 जुलाई, 2013।
- ↑ 2.0 2.1 भोपाल का बड़ा तालाब (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 19 जुलाई, 2013।
बाहरी कड़ियाँ
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