बाण गंगा महाभारत कालीन एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है, जो हरियाणा राज्य के कुरुक्षेत्र ज़िले में स्थित है। यह स्थान महाभारत कालीन घटनाओं से जुड़ा हुआ है, जिस कारण इसकी महत्ता बहुत ज़्यादा है। कुरुक्षेत्र से पेहवा जाने वाले मार्ग पर ज्योतिसर से कुछ पहले ही मुख्य मार्ग से जुड़ा हुआ एक मार्ग दयालपुरा गाँव तक जाता है, जहाँ 'बाण गंगा' स्थित है। अनुमान किया जाता है कि अर्जुन के रथ के घोड़े लगातार भागते रहने और घायल होने कारण व्यथित और थक गये थे। तब श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को यह बात बताने पर अर्जुन ने इसी स्थान पर अपने बाण के प्रहार से गंगा को प्रकट किया और श्रीकृष्ण ने घोड़ों को पानी पिलाया।
प्रसिद्ध तीर्थ स्थान
महाभारत काल में कौरव-पांडवों के बीच हुए युद्ध का साक्षी रहा कुरुक्षेत्र नगर धर्मनगरी के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक व धार्मिक महत्त्व के कारण आज यह नगर हरियाणा ही नहीं बल्कि पूरे भारत में प्रसिद्ध तीर्थ स्थान की पहचान बनाए हुए है। कुरुक्षेत्र व इसके आस-पास के क्षेत्र में अनेक दर्शनीय तीर्थ स्थल हैं। कुरुक्षेत्र में स्थित 'ब्रह्म सरोवर' से पूर्व दिशा में लगभग ढाई किलोमीटर की दूरी पर बसे ऐतिहासिक गाँव दयालपुरा के निकट 'बाण गंगा तीर्थ' महाभारत काल में हुए कौरव-पांडवों के युद्ध की यादों को संजोए हुए है।[1]
कथा
कथानुसार जब महाभारत का युद्ध अपने चरम पर था। कौरवों के प्रथम प्रधान सेनापति भीष्म पितामह शरशैय्या पर आ चुके थे। इस समय आचार्य द्रोणाचार्य सेनापति के पद पर नियुक्त थे। उन पर दुर्योधन का बहुत अधिक दबाव था, जिस कारण उन्होंने युधिष्ठिर को बंदी बनाने का निर्णय लिया। इसी निर्णय के अंतर्गत उन्होंने चक्रव्यूह की रचना की। परंतु अर्जुन पुत्र अभिमन्यु ने चक्रव्यूह में प्रवेश करके गुरु द्रोण के षड़यंत्र पर पानी फेर दिया। कौरवों ने निर्दयतापूर्वक अभिमन्यु को घेरकर मार डाला। जब धनुर्धर अर्जुन को अपने वीर पुत्र के बलिदान का पता चला तो वह बहुत आवेशित हो उठे। इसी आवेश में उन्होंने सिंधु प्रदेश के नरेश जयद्रथ को मारने की प्रतिज्ञा कर ली।
अगले दिन अर्जुन का रोद्ररूप देखकर बड़े-बड़े महारथी काँप उठे। जो भी अर्जुन के रथ के सामने आता, उसे मुँह की खानी पड़ती। बाणों की वर्षा करके रणभूमि को उन्होंने कौरव सेना के शवों से पाट दिया था। चारों तरफ़ विध्वंसक वातावरण व्याप्त था। इस भयंकर महासंग्राम में लगातार भागते रहने और शत्रुओं के तीरों से घायल होने के कारण वीर अर्जुन के रथ के घोड़े विचलित हो उठे। उनके धीमे पड़ने पर अर्जुन ने श्रीकृष्ण से इसका कारण पूछा, तब श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया कि- "घायल व थके होने के कारण रथ के घोड़े बार-बार व्यथित हो रहे हैं"। इस पर अर्जुन ने रणभूमि के बीच में ही श्रीकृष्ण को रथ रोकने के लिए कहा। उन्होंने तुरंत रथ के चारों तरफ़ एक बाण पर दूसरा बाण बींधकर एक सुरक्षा दीवार खड़ी कर दी। तीरों से बने इस कक्ष में श्रीकृष्ण ने घोड़ों को रथ से खोल दिया। तब गांडीव से अर्जुन ने धरती में तीर मारकर जल की धारा उत्पन्न कर दी, जिस कारण कक्ष में एक जलाशय-सा बन गया। इसी जलाशय में भगवान वासुदेव ने घोड़ों को अपने हाथों से नहलाकर पानी पिलाया। उनके घावों को स्वच्छतापूर्वक धोकर साफ किया। जिस प्रभु की इच्छा मात्र से संसार का निर्माण और क्षय होता है, वे भक्त वत्सल भगवान एक साधारण सेवक की भांति पूर्ण मनोयोग से घोड़ों की सेवा कर रहे थे। घोड़ों को नहलाने के बाद श्रीकृष्ण ने रथ में पुन: जोत दिया। अर्जुन रथ पर सवार होकर अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए आगे बढ़ गए। जहाँ अर्जुन ने बाण द्वारा गंगा को प्रकट किया और श्रीकृष्ण ने इस जल से घोड़ों की सेवा की, इसलिए यह स्थान आज भी 'बाण गंगा' के नाम से विख्यात है।[1]
अन्य प्रसंग
एक अन्य प्रसंग के अनुसार यह कहा जाता है कि जब पितामह भीष्म शरशैय्या पर आ गये, तब सभी कौरव और पाण्डव उन्हें घेरकर खड़े थे। ऐसे में भीष्म ने जल पीने का इच्छा व्यक्त की। दुर्योधन ने सिपाहियों को आदेश देकर जल लाने के लिए कहा। इस पर भीष्म बोले- "जिसने मुझे ये शरशैय्या दी है, वही मुझे जल पिलाये।" इस पर अर्जुन ने गांडीव धनुष पर बाण चढ़ाकर धरती में मारा और वहाँ से जल धारा फूट पड़ी। इसी जल से पितामह भीष्म ने अपनी प्यास बुझाई।
तीर्थ परिसर
तीर्थ परिसर में एक पुरातन सरोवर निर्मित है। विशाल बजरंग बली की प्रतिमा भी यहाँ दर्शनीय है। प्राचीन सरोवर के दक्षिण-पश्चिम में दयालपुरा गाँव बसा हुआ है। मन को शांति व ऊर्जा प्रदान करने वाला यह एक सुरमय तीर्थ स्थान है। भक्तों द्वारा यहाँ मिट्टी के घोड़े अर्पित किए जाते हैं। वर्तमान समय में अर्जुन के बाण लगने वाले स्थान पर एक कुएँ का निर्माण किया गया है तथा हनुमानजी की विशाल प्रतिमा के साथ-साथ यहाँ शर-शैय्या पर लेटे हुए भीष्म पितामह की मूर्ति भी है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 कुरुक्षेत्र के प्रमुख तीर्थ (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 20 अगस्त, 2013।
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