बिजोलिया किसान आन्दोलन भारतीय इतिहास में हुए कई किसान आन्दोलनों में से महत्त्वपूर्ण था। यह 'किसान आन्दोलन' भारत भर में प्रसिद्ध रहा, जो मशहूर क्रांतिकारी विजय सिंह पथिक के नेतृत्व में चला था। बिजोलिया किसान आन्दोलन सन 1847 से प्रारम्भ होकर क़रीब अर्द्ध शताब्दी तक चलता रहा। जिस प्रकार इस आन्दोलन में किसानों ने त्याग और बलिदान की भावना प्रस्तुत की, इसके उदाहरण अपवादस्वरूप ही प्राप्त हैं। किसानों ने जिस प्रकार निरंकुश नौकरशाही एवं स्वेच्छाचारी सामंतों का संगठित होकर मुक़ाबला किया, वह इतिहास बन गया।
आन्दोलन के चरण
पंचायतों के माध्यम से समानांतर सरकार स्थापित कर लेना एवं उसका सफलतापूर्वक संचालन करना अपने आप में आज भी इतिहास की अनोखी व सुप्रसिद्ध घटना प्रतीत होती है। इस आन्दोलन के प्रथम भाग का नेतृत्व पूर्णरूप से स्थानीय था, दूसरे भाग में नेतृत्व का सूत्र विजय सिंह पथिक के हाथ में था और तीसरे भाग में राष्ट्रीय नेताओं के निर्देशन में आन्दोलन संचालित हो रहा था। किसानों की माँगों को लेकर 1922 में समझौता हो गया था, परंतु इस समझौते को क्रियांवित नहीं किया जा सका। इसीलिए 'बिजोलिया किसान आन्दोलन' ने तृतीय चरण में प्रवेश कर लिया था। निस्सन्देह बिजोलिया किसान आन्दोलन ने राजस्थान ही नहीं, भारत के अन्य किसान आन्दोलनों को भी प्रभावित किया था।
विजय सिंह पथिक का नेतृत्व
जब 'लाहौर षड़यंत्र केस' में विजय सिंह पथिक का नाम उभरा और उन्हें लाहौर ले जाने के आदेश हुए तो किसी तरह यह खबर पथिक जी को मिल गई। वे टाडगढ़ के क़िले से फरार हो गए। गिरफ्तारी से बचने के लिए पथिक जी ने अपना वेश राजस्थानी राजपूतों जैसा बना लिया और चित्तौडगढ़ क्षेत्र में रहने लगे। बिजोलिया से आये एक साधु सीताराम दास उनसे बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने पथिक जी को बिजोलिया आन्दोलन का नेतृत्व सम्भालने को आमंत्रित किया। बिजोलिया उदयपुर रियासत में एक ठिकाना था। जहाँ पर किसानों से भारी मात्रा में मालगुज़ारी वसूली जाती थी और किसानों की दशा अति शोचनीय थी। विजय सिंह पथिक 1916 में बिजोलिया पहुँच गए औरउन्होंने आन्दोलन की कमान अपने हाथों में सम्भाल ली।
पंचायत का निर्णय
प्रत्येक गाँव में किसान पंचायत की शाखाएँ खोली गईं। किसानों की मुख्य माँगें भूमि कर, अधिभारों एवं बेगार से सम्बन्धित थीं। किसानों से 84 प्रकार के कर वसूले जाते थे। इसके अतिरिक्त युद्ध कोष कर भी एक अहम मुद्दा था। एक अन्य मुद्दा साहूकारों से सम्बन्धित भी था, जो ज़मींदारों के सहयोग और संरक्षण से किसानों को निरन्तर लूट रहे थे। पंचायत ने भूमि कर न देने का निर्णय लिया।
आन्दोलन का प्रचार
किसान वास्तव में 1917 की रूसी क्रान्ति की सफलता से उत्साहित थे, पथिक जी ने उनके बीच रूस में श्रमिकों और किसानों का शासन स्थापित होने के समाचार को खूब प्रचारित किया था। विजय सिंह पथिक ने कानपुर से प्रकाशित गणेश शंकर विद्यार्थी द्वारा सम्पादित पत्र 'प्रताप' के माध्यम से बिजोलिया के किसान आन्दोलन को समूचे देश में चर्चा का विषय बना दिया।
राजस्थान सेवा संघ की स्थापना
1919 में अमृतसर कांग्रेस में पथिक जी के प्रयत्न से बाल गंगाधर तिलक ने बिजोलिया सम्बन्धी प्रस्ताव रखा। पथिक जी ने बम्बई जाकर किसानों की करुण कथा महात्मा गाँधी को सुनाई। गाँधीजी ने वचन दिया कि यदि मेवाड़ सरकार ने न्याय नहीं किया तो वह स्वयं बिजोलिया सत्याग्रह का संचालन करेंगे। महात्मा गाँधी ने किसानों की शिकायत दूर करने के लिए एक पत्र महाराणा को लिखा, पर कोई हल नहीं निकला। विजय सिंह पथिक ने बम्बई यात्रा के समय गाँधीजी की पहल पर यह निश्चय किया गया कि वर्धा से 'राजस्थान केसरी' नामक पत्र निकाला जाये। यह पत्र सारे देश में लोकप्रिय हो गया, परन्तु पथिक जी और जमनालाल बजाज की विचारधारा ने मेल नहीं खाया और वे वर्धा छोड़कर अजमेर चले गए। 1920 में पथिक जी के प्रयत्नों से अजमेर में 'राजस्थान सेवा संघ' की स्थापना हुई।
प्रदर्शनी का आयोजन
शीघ्र ही इस संस्था की शाखाएँ पूरे प्रदेश में खुल गईं। इस संस्था ने राजस्थान में कई जन आन्दोलनों का संचालन किया। अजमेर से ही पथिक जी ने एक नया पत्र 'नवीन राजस्थान' प्रकाशित किया। 1920 में पथिक जी अपने साथियों के साथ नागपुर अधिवेशन में शामिल हुए और बिजोलिया के किसानों की दुर्दशा और देशी राजाओं की निरंकुशता को दर्शाती हुई एक प्रदर्शनी का आयोजन किया। गाँधीजी विजय सिंह पथिक के बिजोलिया आन्दोलन से प्रभावित तो हुए, परन्तु उनका रुख देशी राजाओं और सामन्तों के प्रति नरम ही बना रहा। कांग्रेस और गाँधीजी यह समझने में असफल रहे कि सामन्तवाद साम्राज्यवाद का ही एक स्तम्भ है और ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विनाश के लिए साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष के साथ-साथ सामन्तवाद विरोधी संघर्ष आवश्यक है। गाँधीजी ने अहमदाबाद अधिवेशन में बिजोलिया के किसानों को 'हिजरत' (क्षेत्र छोड़ देने) की सलाह दी। पथिक जी ने इसे अपनाने से इनकार कर दिया।
किसानों की विजय
दूसरी ओर कांग्रेस के असहयोग आन्दोलन शुरू करने से भी सरकार को स्थिति और बिगड़ने की भी आशंका होने लगी। अंतत: सरकार ने राजस्थान के ए.जी.जी. हालैण्ड को 'बिजोलिया किसान पंचायत बोर्ड' और 'राजस्थान सेवा संघ' से बातचीत करने के लिए नियुक्त किया। शीघ्र ही दोनों पक्षों में समझौता हो गया। किसानों की अनेक माँगें मान ली गईं। चौरासी में से पैंतीस लागतें माफ कर दी गईं। जुल्मी कारिन्दे बर्खास्त कर दिए गए और किसानों की अभूतपूर्व विजय हुई।
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