भक्तनामावली
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भक्तनामावली ग्रंथ की रचना ध्रुवदास ने की थी। यह भक्तों का परिचय कराने वाले 'भक्तमाल' कोटि का लद्यु ग्रंथ है। इस नामावली में कुल 124 भक्तों का परिगणन किया गया है और अति संक्षेप में भक्त के शील-स्वभाव का संकेत है। ग्रंथ में कुल 114 दोहे हैं।[1]
- जीवन वृत्त लिखने की ओर लेखक ने ध्यान नहीं दिया है। छन्दोबद्ध होने के कारण संक्षिप्तता की ओर ही लेखक का ध्यान रहा है।
- भक्तों की अपरिमेयता को ध्यान में रखकर ध्रुवदास ने प्रारम्भ में ही कहा है-
"रसिक भक्त भूतल धनें, लघुमति क्यों कहि जाहिं। बुधि प्रमान गाये कछू जो आये उर माहिं ।।"
- कुछ ऐसे भक्त भी इस नामावली में हैं, जो शुद्ध रसिकमार्गी नहीं हैं।
- राधाकृष्णदास ने 'भक्तनामावली' का सम्पादन करके 'काशी नागरी प्रचारिणी सभा' की ओर से 'इण्डियन प्रेस', प्रयाग द्वारा सन 1928 ई. में प्रकाशित किया था। सम्पादन करने में भक्तों का यथास्थान विवरण भी दिया गया है।
- ध्रुवदास जी ने 'भक्तनामावली' में कालक्रम का ध्यान रखकर भक्तों का वर्णन नहीं किया है। पौराणिक, ऐतिहासिक और समसामयिक भक्तों के चरित आगे-पीछे करके लिखे गये है।
- जयदेव और कृष्ण चैतन्य के सम्बन्ध में लिख हुए दो दोहे नीचे उद्धृत किये गए हैं, जिससे ध्रुवदास की शैली का अनुमान किया जा सकता है-
"प्रकट भयो जयदेव मुख अद्भुत गीत गुविन्द। कह्यौ महा सिंगार रस सहित प्रेम मकरंद।। गौड़ देस सब उद्धर्यौ प्रकटे कृष्ण चैतन्य। तैसेहि नित्यानन्द हू रसमय भये अनन्य।।"
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिन्दी साहित्य कोश, भाग 2 |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |संपादन: डॉ. धीरेंद्र वर्मा |पृष्ठ संख्या: 397 |