भारतीय दूरसंचार उद्योग दुनिया का सबसे तेज़ीसे बढ़ता दूरसंचार उद्योग है, जिसके पास अगस्त 2010 तक 706.37 मिलियन टेलीफोन (लैंडलाइन्स और मोबाइल) ग्राहक तथा 670.60 मिलियन मोबाइल फोन कनेक्शन्स हैं।[1] वायरलेस कनेक्शन्स की संख्या के आधार पर यह दूरसंचार नेटवर्क मुहैया करने वाले देशों में जनवादी गणराज्य चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारतीय मोबाइल ग्राहक आधार आकार में कारक के रूप में एक सौ से अधिक बढ़ी है, 2001 में देश में ग्राहकों की संख्या लगभग 5 मिलियन थी, जो अगस्त 2010 में बढ़कर 670.60 मिलियन हो गयी है।
दूरसंचार बुनियादी सुविधा
भारत संचार निगम लिमिटेड की 42 प्रशिक्षण केंद्रों की व्यापक प्रशिक्षण व्यवस्था है जिसमें तीन शीर्ष स्तरीय प्रशिक्षण केंद्र यथा गाजियाबाद में उच्च स्तरीय दूरसंचार प्रशिक्षण केंद्र (एएलटीटीसी), जबलपुर में भारत रत्न भीमराव अंबेडकर इंस्टीट्यूट ऑफ टेलीकॉम ट्रेनिंग (बीआरबीआरएआईटीटी) ,हैदराबाद में नेशनल अकादमी ऑफ टेलीकॉम फाइनेंस एंड मैनेजमेंट (एनएटीएफएम) तथा प्रादेशिक, सर्किल और ज़िला स्तरों पर 39 अन्य दूरसंचार प्रशिक्षण केंद्र शामिल हैं। ये प्रशिक्षण केंद्र विभिन्न प्रशिक्षण ज़रूरतों यथा दूरसंचार प्रशिक्षण केंद्र शामिल हैं। ये प्रशिक्षण केंद्र विभिन्न प्रशिक्षण ज़रूरतों यथा दूरसंचार प्रौद्योगिकी, प्रबंधन, कंप्यूटर, वित्त, निर्माण विज्ञान इत्यादि में बीएसएनएल के कार्यपालक और गैर-कार्यपालक सभी कर्मचारियों की आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।
यूनाइटेड नेशन्स डेवलपमेंट प्रोग्राम (यूएनडीपी) तथा अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार संघ (आईटीयू), की सहायता से भारत सरकार द्वारा 1975 में संस्थापित एएलटीटीसी गाजियाबाद एशिया की अग्रगणय प्रशिक्षण केंद्रों में से एक है और यह बीएसएनएल तथा ईएससीएपी व एपीटी के सदस्य देशों के दूरसंचार प्रशासन की प्रशिक्षण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करता है। यह केंद्र निम्न, मध्यम तथा उच्च स्तरीय दूरसंचार इंजीनियरों तथा प्रबंधकों के लिए हाईटेक दूरसंचार और आधुनिक प्रबंधन प्रथाओं का विकास करता है और उसमें प्रशिक्षण प्रदान करता है। यह विकसित पाठ्यक्रम सामग्री ऑडियों विजुअल निर्देशात्मक उपकरण, कंप्यूटर आधारित प्रशिक्षण, सॉफ्टवेयर इत्यादि प्रदान करने में संसाधन केंद्र के रूप में कार्य करता है। यह केंद्र प्रशिक्षणार्थियों को भी प्रशिक्षण प्रदान करता है। एएलटीटीसी, गाजियाबाद, एक आईएसओ 9001-2000 प्रमाणित संस्थान है।
बीआरबीआरएआईटीटी, जबलपुर बीएसएनएल का एक अन्य प्रमुख संस्थान है जो कि दूरसंचार और सूचना प्रौद्योगिकी में उच्च गुणवत्ता का प्रशिक्षण प्रदान करता है। यह अपने अध्यापन की गुणवत्ता के कारण बीएसएनएल आईएसओ 9001-2000 प्रमाणित भी है। क्षेत्रीय दूरसंचार प्रशिक्षण केंद्र जैसे आरटीटीसी, तिरूवनंतपुरम, आरटीटीसी मैसूर, आटीटीसी हैदराबाद, आरटीटीसी कल्याणी और सीटीटीसी चेन्नई अन्य प्रशिक्षण केंद्र हैं जो आईएसओ प्रमाणपत्र हासिल करने में सफल रहे हैं। भारत में दूरसंचार क्षेत्र तेज़ीसे बदलाव के दौर से गुजर रहा है। नई सेवाएं जैसे ब्रॉडबैंड, वाईफाई, मोबाइल, वीपीएन आदि आम हो रही हैं। सेवा प्रदाताओं की तेज़ीसे बढ़ती संख्या की वजह से बीएसएनएल के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ गई है। बीएसएनएल के पास विशाल प्रशिक्षण बुनियादी सुविधाएं हैं जिसकी सहायता से वह तकनीकी चुनौतियों का सामना करने में सक्षम है।
दूरसंचार अधिनियम और नीतियां
- नई दूरसंचार नीति 1999
- राष्ट्रीय दूरसंचार नीति 1994
- भारतीय तार अधिनियम, 1885
- भारतीय बेतार अधिनियम, 1933
- भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई), 1997
मूल सेवाएं
भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई), की सिफारिशों के आधार पर सरकार ने 25 जनवरी 2001 को लाइसेंस जारी करने के लिए अप्रतिबंधित खुली प्रविष्टि, छह सेवा क्षेत्र जहां पहले से निजी लाइसेंस मिले हुए हैं, के साथ नए बेसिक सर्विस ऑपरेटर दिशा निर्देशों की घोषणा की। अब, केवल दो बुनियादी सेवा प्रदाता हैं अर्थात् बीएसएनएल (बाहरी विंडो में खुलने वाली वेबसाइट) और एमटीएनएल । सभी निजी ऑपरेटर, जो बुनियादी सेवा प्रदान कर रहे थे, को दूरसंचार विभाग के 11 नवंबर 2003 के दिशानिर्देशों के अनुसार एकीकृत अभिगम सेवा लाइसेंस के लिए स्थानांतरित किया गया। एनटीपी-1999 के एकीकृत अभिगम (बेसिक और सेलुलर) को बदल दिया गया। भारतीय तार अधिनियम, 1885 (वर्ड - 86 KB) को जनवरी 2004 में संशोधित किया गया और इसके परिणामस्वरूप 1 अप्रैल 2002 से यूएसओ फंड अस्तित्व में आया। एकीकृत लाइसेंस व्यवस्था की शुरुआत:दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) की सिफारिशों को सरकार द्वारा स्वीकार करने के परिणामस्वरूप 31 अक्टूबर 2003 को दूरसंचार विभाग द्वारा नई दूरसंचार नीति-1999 में एक संशोधन कर एकीकृत पहुंच (बेसिक और सेल्युलर) सेवा को शामिल किया गया। पुरानी नीति जहां एक विशेष तकनीक के द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में सभी दूरसंचार/टेलीग्राफ सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित की गई वहीं संशोधन ने एक निश्चित क्षेत्र में किसी भी तकनीक के द्वारा बेसिक और/या सेल्युलर सेवा प्रदान करने की छूट सेवा प्रदाता को दे दी। इस समय 76 एकीकृत पहुंच सेवा लाइसेंस प्रदान किए जा चुके हैं।
राष्ट्रीय लंबी दूरी सेवा
राष्ट्रीय लंबी दूरी (एनएलडी) सेवा निजी क्षेत्र के लिए दिनांक 13, अगस्त 2000 से खोली गई थी। 2.5 करोड़ रु; के नेटवर्क और 2.5 करोड़ रु. की प्रदत्त इक्विटी वाली पंजीकृत भारतीय आवेदन करने की पात्र हैं। संपूर्ण लाइसेंस अवधि के दौरान किसी भी समय आवेदक कंपनी में कुल विदेशी इक्विटी 74 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए। अनिवासी भारतीय/ओसीबी/अंतरराष्ट्रीय वित्त पोषण एजेंसियों द्वारा आवेदक कंपनी की इक्विटी में निवेश को इसकी विदेशी इक्विटी में गिना जाएगा। लाइसेंस करार पर हस्ताक्षर करने से पहले 2.5 करोड़ का प्रवेश शुल्क प्रस्तुत करना होता है। प्रचालकों की संख्या पर कोई प्रतिबंध नहीं है। एक एनएलडी प्रचालक देश में अंतर सर्किल परियात का वहन कर सकता है। एनएलडीओ के लिए लाइसेंस गैर-विशिष्ट आधार पर 20 वर्ष की अवधि के लिए जारी किया जाता है और इसे एक बारगी 10 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है। भारत संचार निगम लिमिटेड के अतिरिक्त और 28 कंपनियों ने राष्ट्रीय लंबी दूरी सेवा हेतु लाइसेंस करार पर हस्ताक्षर किए हैं। उक्त प्रतिस्पर्धा के परिणामस्वरूप प्रशुल्क में कमी आई है।
अंतरराष्ट्रीय लंबी दूरी सेवा
अंतरराष्ट्रीय लंबी दूरी सेवा मुख्य रूप से विदेशी कैरियरों द्वारा प्रचालित नेटवर्क को अंतरराष्ट्रीय संयोजकता प्रदान करने वाली एक नेटवर्क कैरिज सेवा है। नई दूरसंचार नीति – 1999 के अनुसार, सरकार ने अंतरराष्ट्रीय लंबी दूरी सेवा 1 अप्रैल, 2002 से निजी प्रचालकों के लिए खोली दी है। प्रचालकों की संख्या पर कोई प्रतिबंध नहीं है। 2.5 करोड़ रुपये के नेटवर्थ वाली पंजीकृत भारतीय कंपनियां आवेदन करने की पात्र हैं। संपूर्ण लाइसेस अवधि के दौरान किसी भी समय आवेदन कंपनी कंपनी में कुल विदेशी इक्विटी 74 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए। अनिवासी भारतीय/ओसीबी/अंतरराष्ट्रीय वित्त पोषण एजेंसियों द्वारा आवेदक कंपनी की इक्विटी में निवेश को इसकी विदेशी इक्विटी में गिना जाएगा। लाइसेंस करार पर हस्ताक्षर करने से पहले 2.5 करोड़ रुपये का निष्पादन बैंक गारंटी सहित 2.5 करोड़ रुपये का प्रवेश शुल्क प्रस्तुत करना होता है। लाइसेंस करार की तारीख से 20 वर्षों के लिए वैध है। अंतरराष्ट्रीय लंबी दूरी सेवा के लिए अब तक 24 कंपनियों ने लाइसेंस करार पर हस्ताक्षर किए हैं।
सेलुलर सेवा
यूएएस के साथ साथ सीएमटीएस के लिए देश 19 (उन्नीस) दूर संचार सर्किल सेवा क्षेत्रों और 4 (चार) मेट्रो सेवा क्षेत्रों में विभाजीत है। चेन्नई महानगर और तमिलनाडु दूरसंचार सर्किल सेवा क्षेत्र का विलय कर 15 सितंबर 2005 से नया लाइसेंस दिया गया। प्रत्येक सेवा क्षेत्र में 5-8 सेवा प्रदाता हैं। वर्तमान में 185.13 लाख से अधिक ( 30 जून 2007 तक) सेलुलर उपभोक्ता हैं और यह 6 से 8 लाख प्रतिमाह की दर से बढ़ रहे है। वर्तमान में 60 सीएमटीएस लाइसेंस हैं। लाइसेंस शुल्क, जो राजस्व हिस्सेदारी के रूप में है, समायोजित सकल राजस्व के 6 प्रतिशत /8 प्रतिशत/10 प्रतिशत है, जो अपने ऑपरेशन क्षेत्र पर निर्भर करता है।
इंटरनेट सेवा
31 अगस्त 2008 तक इंटरनेट सेवाओं के प्रावधान के लिए 355 लाइसेंस है। इंटरनेट सेवा प्रदाताओं से प्राप्त रिपोर्टों के आधार पर भारत में मार्च 2008 तक लगभग 11.05 लाख इंटरनेट ग्राहक हैं।
- वीसैट-
इनसेट उपग्रह प्रणाली के माध्यम से उनके सीयूजी संचार के लिए वीसैट नेटवर्क की स्थापना और संचालन के लिए 33 कंपनियों/संगठनों को लाइसेंस जारी किए गए हैं। इसके अलावा, 11 वाणिज्यिक वीसैट लाइसेंसधारी वाणिज्यिक वीसैट सेवाओं का संचालन कर रहे हैं जिन्हें वीसैट की पेशकश की अनुमति है और भारत में 284 पृथ्वी स्टेशन काम कर रहे हैं। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 49% से बढ़कर 74% हो गया है।
एकीकृत संदेश सेवा
वॉयस मेल/ऑडियोटैक्स सेवा के लिए नई नीति, एनटीपी-1999 के संदर्भ में नई एकीकृत संदेश सेवा (यूएमएस) जुलाई 2001 में घोषित की गई थी। यूएमएस एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें वॉयस मेल, फैक्स और ईमेल (तीनों) एक मेल बॉक्स में टेलीफोन उपकरण, फैक्स मशीन, मोबाइल फोन, इंटरनेट ब्राउजर आदि का उपयोग करके प्राप्त किया जा सकता है। वर्तमान में, सात शहरों में इन सेवाओं को उपलब्ध कराने के लिए आठ कंपनियों के पास 15 लाइसेंस हैं।
उपग्रह द्वारा ग्लोबल मोबाइल निजी संचार के लिए नीति
एनटीपी-1999 के अनुसार ग्लोबल मोबाइल निजी संचार उपग्रह (जीएमपीसीएम) के लिए लाइसेंस प्रदान करने संबंधी नीति को 2 नवंबर, 2001 को अंतिम रूप दिया गया और इसकी घोषणा की गई। जीएमपीसीएस लाइसेंस प्रदान करने की प्रक्रिया एक पेचीदा प्रक्रिया है। जीएमपीसीएस लाइसेंस का आवेदन समस्त प्रस्ताव सहित विधि प्रवर्तन एजेंसी को सुरक्षा निकासी हेतु प्रस्तुत किया जाता है। प्रस्ताव को अंतर-मंत्रालय समिति जिसमें सचिव, कैबिनेट सचिव, रक्षा सचिव, गृह सचिव, सचिव (अंतरिक्ष विभाग) और निदेशक (इंटेलिजेंस ब्यूरो) होते हैं, से सुरक्षा के दृष्टिकोण से अनापत्ति प्राप्त होने के पश्चात आशय पत्र जारी किया जाता है। इस समय एक आवेदक कंपनी को जीएमपीसीएस लाइसेंस के लिए आशय पत्र जारी किया जा चुका है और लाइसेंस पर अब हस्ताक्षर किए जाने हैं। इस प्रक्रिया में सुरक्षा निगरानी के संबंध में जीएमपीसीएस गेटवे और भू-स्टेशन की जांच की शामिल है। लाइसेंस शुल्क, जो राजस्व भागीदारी के रूप में है, समायोजित सकल राजस्व का 10 (दस) प्रतिशत है और प्रवेश शुल्क एक करोड़ रुपए है।
डाक संचार
आजादी के वक्त देश भर में 23,344 डाकघर थे। इनमें से 19,184 डाकघर ग्रामीण क्षेत्रों में और 4,160 शहरी क्षेत्रों में थे। देश भर में 31 मार्च, 2008 तक 1,55,035 डाकघर थे। जिनमें से 1,39,173 डाकघर ग्रामीण क्षेत्रों और 15,862 शहरी क्षेत्रों में थे। पोस्टल नेटवर्क में इस सात गुने विकास के परिणामस्वरूप आज भारत में विश्व का सबसे बड़ा पोस्टल नेटवर्क है।
पोस्टल नेटवर्क के विस्तार में, ख़ास तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में, काफ़ी हद तक, डाक विभाग के विशिष्ट तंत्र अंशकालिक अतिरिक्त विभागीय डाकखानों को शुरू करने का योगदान रहा है। इस व्यवस्था के अंतर्गत विशेष प्रावधानों के अनुसार स्थानीय निवासियों को नियुक्त किया जाता है, जो पोस्ट ऑफिस की अधिकतम 5 घंटों की अवधि तक देखभाल करते हैं और निश्चित भत्तों के भुगतान पर पत्रों को लाने एवं पहुंचाने का काम करते हैं। भारत में एक डाकघर 21.20 वर्ग कि.मी. क्षेत्र और 7174 लोगों की जनसंख्या को अपनी सेवा प्रदान करता है। विभाग द्वारा निर्धारित जनसंख्या, आय एवं दूरी से संबंधित मानकों के अनुरूप ही डाकघर खोले जाते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में डाकघर खोलने पर सब्सिडी दी जाती है जो पर्वतीय, रेगिस्तानी और दुर्गम क्षेत्रों में लागत की 85 प्रतिशत तक होती है और सामान्य ग्रामीण क्षेत्रों में लागत की 68 प्रतिशत तक होती है।
पोस्टल नेटवर्क में चार श्रेणियों के डाकघर हैं – प्रधान डाकघर, उप डाकघर, अतिरिक्त विभागीय उप-डाकघर और अतिरिक्त विभागीय शाखा डाकघर। सभी श्रेणियों के डाकघर समान पोस्टल सेवाएं प्रदान करते हैं। हालांकि डिलीवरी का काम विशिष्ट डाकघरों के लिए निश्चित है। प्रबंध-नियंत्रण के लिए शाखा डाकघरों से कोष को उप-डाकघरों में और अंत में प्रधान डाकघर में लाकर जमा किया जाता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ Telecommunication (हिंदी) (एएसपी) IBEF। अभिगमन तिथि: 29 नवम्बर, 2012।
बाहरी कड़ियाँ
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