मंगलनाथ मंदिर, उज्जैन
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विवरण | 'मंगलनाथ मंदिर' उज्जैन में क्षिप्रा नदी के किनारे स्थित है। जो लोग मंगल दोष से पीड़ित रहते हैं, वे मंगल की शांति के लिए इस मंदिर में आते हैं। |
राज्य | मध्य प्रदेश |
ज़िला | उज्जैन |
प्रबंधक | 'मंगलनाथ मंदिर प्रबंधन समिति' |
निर्माण काल | मंदिर सदियों पुराना है, जिसका पुनर्निर्माण सिंधिया राजघराने ने करवाया था। |
भौगोलिक स्थिति | क्षिप्रा नदी के किनारे, उज्जैन, मध्य प्रदेश |
संबंधित लेख | मंगल देवता, मंगल ग्रह, उज्जैन
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विशेष | ऐसे व्यक्ति जिनकी कुंडली में मंगल भारी रहता है, वे अपने अनिष्ट ग्रहों की शांति के लिए 'मंगलनाथ मंदिर' में पूजा-पाठ करवाने आते हैं। |
अन्य जानकारी | वैसे तो भारत में मंगल देवता के कई मंदिर हैं, लेकिन उज्जैन में इनका जन्म-स्थान होने के कारण यहाँ की पूजा को ख़ास महत्व दिया जाता है। |
मंगलनाथ मंदिर मध्य प्रदेश की धार्मिक नगरी कहे जाने वाले उज्जैन में क्षिप्रा नदी के किनारे स्थित है। उज्जैन को पुराणों में मंगल की जननी कहा जाता है। ऐसे व्यक्ति जिनकी कुंडली में मंगल भारी रहता है, वे अपने अनिष्ट ग्रहों की शांति के लिए 'मंगलनाथ मंदिर' में पूजा-पाठ करवाने आते हैं। मान्यता है कि मंगल ग्रह की शांति के लिए दुनिया में 'मंगलनाथ मंदिर' से बढ़कर कोई स्थान नहीं है। कर्क रेखा पर स्थित इस मंदिर को देश का नाभि स्थल माना जाता है। मंगल को भगवान शिव और पृथ्वी का पुत्र कहा कहा गया है।। इस कारण इस मंदिर में मंगल की उपासना शिव रूप में भी की जाती है।
निर्माण
वैसे तो भारत में मंगल देवता के कई मंदिर हैं, लेकिन उज्जैन में इनका जन्म-स्थान होने के कारण यहाँ की पूजा को ख़ास महत्व दिया जाता है। कहा जाता है कि यह मंदिर सदियों पुराना है। सिंधिया राजघराने में इसका पुनर्निर्माण करवाया गया था। उज्जैन शहर को भगवान महाकाल की नगरी कहा जाता है, इसलिए यहाँ मंगलनाथ भगवान की शिव रूपी प्रतिमा का पूजन किया जाता है। हर मंगलवार के दिन इस मंदिर में श्रद्धालुओं का ताँता लगा रहता है।[1]
पौराणिक उल्लेख
- 'स्कन्दपुराण' के 'अंवतिकाखंड' में इस मंदिर के जन्म से जुड़ी कथा है। कथा के अनुसार अंधाकासुर नामक दैत्य ने भगवान शिव से वरदाना पाया था कि उसके रक्त की बूँदों से नित नए दैत्य जन्म लेते रहेंगे। इन दैत्यों के अत्याचार से त्रस्त जनता ने शिव की अराधना की। तब शिव शंभु और दैत्य अंधाकासुर के बीच घनघोर युद्ध हुआ। ताकतवर दैत्य से लड़ते हुए शिवजी के पसीने की बूँदें धरती पर गिरीं, जिससे धरती दो भागों में फट गई और मंगल ग्रह की उत्पत्ति हुई। शिवजी के वारों से घायल दैत्य का सारा लहू इस नए ग्रह में मिल गया, जिससे मंगल ग्रह की भूमि लाल रंग की हो गई। दैत्य का विनाश हुआ और शिव ने इस नए ग्रह को पृथ्वी से अलग कर ब्रह्मांड में फेंक दिया। इस दंतकथा के कारण जिन लोगों की पत्रिका में मंगल भारी होता है, वह उसे शांत करवाने के लिए इस मंदिर में दर्शन और पूजा-अर्चना के लिए आते हैं। इस मंदिर में मंगल को शिव का ही स्वरूप दिया गया है।
- उज्जैन में अंकपात के निकट क्षिप्रा नदी के तट के टीले पर मंगलनाथ का मंदिर है। 'मत्स्यपुराण' में लिखा है कि- "अवन्र्त्यांच कुजाजातों मगधेच हिमाशुन:" तथा संकल्प में भी ‘अवन्तिदेशोतभव भो भोम’ इत्यादि अनेक प्रमाणों से मंगल की जन्म भूमि उज्जैन मानी जाती है,[2] यहाँ मंगल की उत्पत्ति हुई है। अत: सर्वदा मंगल ही होता रहता है। संभवत: कभी मंगल ग्रह की खोज यहाँ से हुई होगी, ऐसी मान्यता है। यह बड़ा रम्य स्थल है।
देव स्वरूप
मंगल भगवान का स्थान नवग्रहों में आता है। यह 'अंगारका' और 'खुज' नाम से भी जाना जाता है। वैदिक पौराणिक कथाओं के अनुसार मंगल ग्रह शक्ति, वीरता और साहस के परिचायक है तथा धर्म के रक्षक माने जाते हैं। मंगल देव को चार हाथ वाले त्रिशूल और गदा धारण किए दर्शाया गया है। मंगल देवता की पूजा से मंगल ग्रह से शांति प्राप्त होती है तथा कर्ज से मुक्ति और धन लाभ प्राप्त होता है। मंगल के रत्न रूप में मूंगा धारण किया जाता है। मंगल दक्षिण दिशा के संरक्षक माने जाते हैं।[3]
मंदिर में मंगलवार को दिन भर पूजन होता रहता है, यात्रा भी होती हैं। वैशाख मास में यात्रा भी लगती है। मंगलवार की अमावस्या को जनता यहाँ स्नान, दान कर दर्शन करती है। इसी के निकट इंदौर के सरदार किबे साहब का एक बड़ा विशाल एवं सुंदर 'गंगा-घाट' है। यहाँ की भात पूजा भी बड़ा महत्व रखती हैं। इस स्थान से क्षिप्रा नदी के निर्मल जल और प्रकृति के मोहक दृश्य का ऐसा सुंदर-मादक चित्र नेत्र के सामने उपस्थित होता है कि एक क्षण के लिए अशांत चित्त भी शांत और प्रफुल्लित हो जाता है।
मंगल दोष
मंगल दोष एक ऐसी स्थिति है, जो जिस किसी जातक की कुंडली में बन जाये तो उसे बड़ी ही अजीबो-गरीब परिस्थिति का सामना करना पड़ता है, मंगल दोष कुंडली के किसी भी घर में स्थित अशुभ मंगल के द्वारा बनाए जाने वाले दोष को कहते हैं, जो कुंडली में अपनी स्थिति और बल के चलते जातक के जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में समस्याएँ उत्पन्न कर सकता है। मंगल दोष पूरी तरह से ग्रहों की स्थति पर आधारित है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार यदि किसी जातक के जन्म चक्र के पहले, चौथे, सातवें, आठवें और बारहवें घर में मंगल हो तो ऐसी स्थिति में पैदा हुआ जातक 'मांगलिक' कहा जाता है। यह स्थिति विवाह के लिए अत्यंत अशुभ मानी जाती है। संबंधों में तनाव व बिखराव, घर में कोई अनहोनी व अप्रिय घटना, कार्य में बेवजह बाधा और असुविधा तथा किसी भी प्रकार की क्षति और दंपत्ति की असामायिक मृत्यु का कारण मांगलिक दोष को माना जाता है। ज्योतिषशास्त्र की दृष्टि में एक मांगलिक को दूसरे मांगलिक से ही विवाह करना चाहिए। यदि वर और वधु मांगलिक होते है तो दोनों के मंगल दोष एक दूसरे से के योग से समाप्त हो जाते हैं। मूल रूप से मंगल की प्रकृति के अनुसार ऐसा ग्रह योग हानिकारक प्रभाव दिखाता है, लेकिन वैदिक पूजा-प्रक्रिया के द्वारा इसकी भीषणता को नियंत्रित कर सकते हैं। मंगल ग्रह की पूजा के द्वारा मंगल देव को प्रसन्न किया जाता है तथा मंगल द्वारा जनित विनाशकारी प्रभावों को शांत व नियंत्रित कर सकारात्मक प्रभावों में वृद्धि की जा सकती है। ऐसे व्यक्ति जिनकी कुंडली में मंगल भारी रहता है, वे अपने अनिष्ट ग्रहों की शांति के लिए 'मंगलनाथ मंदिर' में पूजा-पाठ करवाने आते हैं, क्योंकि पुराणों में उज्जैन को मंगल की जननी कहा गया है। पूरे भारत से लोग यहाँ पर आकर मंगल देव की पूजा आराधना करते हैं, जिनकी कुंडली में मंगल भारी होता है, वह मंगल शांति हेतु यहाँ भात पूजा करवाते हैं।[4]
भात पूजन
'मंगलनाथ मंदिर प्रबंधन समिति' ने मंदिर की व्यवस्था और भात पूजन कराने के लिए सात पुजारियों को अधिकृत किया है। बड़ी संख्या में आने वाले श्रद्धालुओं को देखते हुए सात पुजारियों के पचास से अधिक प्रतिनिधि पूजन सम्पन्न कराते हैं। भात पूजन के लिए श्रद्धालु को समिति की ओर से निर्धारित सौ रुपये की रसीद दी जाती है। इसके अलावा पंडित को एक हजार रुपए की राशि देनी होती है। मंदिर समिति के सूत्रों के अनुसार इस समय देश के विभिन्न भागों से प्रतिदिन कम से कम 25 श्रद्धालु भात पूजन कराने के लिए मंदिर में आते हैं। मंगलवार के दिन उनकी संख्या सौ-डेढ़ सौ तक पहुँच जाती है और त्योहारों के अवसर पर तो श्रद्धालुओं का तांता ही लग जाता है।[5]
प्रबंध तथा विस्तार
मंदिर के प्रबंधन की व्यवस्था सरकार के अधीन है। श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या को देखते हुए पिछले एक दशक में उनकी सुरक्षा और सुविधा के लिए व्यापक प्रबंध तथा मंदिर का विस्तार किया गया है। उज्जैन में 2016 में 'उज्जयिनी कुंभ', 'सिंहस्थ पर्व' का आयोजन होगा, जिसमें भारी संख्या में श्रद्धालुओं के आगमन की संभावना के मद्देनजर मंगलनाथ सहित छह मंदिरों के जीर्णोद्धार और विकास कार्यों के लिए लगभग चार करोड़ रुपए की एक कार्य योजना तैयार की गई है। इस योजना के तहत मंदिर के चारों ओर गलियारा बनाया जाएगा और पार्किंग, दुकानों तथा श्रद्धालुओं के बैठने के लिए मंदिर के आस-पास की सरकारी भूमि का उपयोग किया जाएगा। अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि योजना के तहत किए जाने वाले जीर्णोद्धार कार्यों में मंदिर के मूल स्वरूप में किसी तरह का बदलाव किए बिना ही श्रद्धालुओं के लिए सुविधाओं का प्रबंध किया जाए।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मंगलनाथ मंदिर (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 15 अक्टूबर, 2013।
- ↑ ‘यत्रहि मंगल जनिभू: सावती मंगल स्थिते र्हेतु:’।
- ↑ मंगलनाथ मंदिर (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 15 अक्टूबर, 2013।
- ↑ मंगल दोष से मुक्ति (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 15 अक्टूबर, 2013।
- ↑ मंगलनाथ मंदिर, जहाँ होता है मंगल दोष निवारण (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 15 अक्टूबर, 2013।
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