मान मन्दिर महल, ग्वालियर

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मान मन्दिर महल, ग्वालियर
मान मन्दिर महल
मान मन्दिर महल
विवरण 'मान मन्दिर महल' ग्वालियर का प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। यह हिन्दू वास्तुकला का सुंदर उदाहरण है।
राज्य मध्य प्रदेश
ज़िला ग्वालियर
निर्माता राजा मानसिंह
निर्माण काल 1486 से 1517 ई.
प्रसिद्धि ऐतिहासिक पर्यटन स्थल
हवाई अड्डा ग्वालियर हवाईअड्डा
रेलवे स्टेशन ग्वालियर
संबंधित लेख मध्य प्रदेश पर्यटन, मध्य प्रदेश का इतिहास, ग्वालियर क़िला, राजा मानसिंह, औरंगज़ेब


अन्य जानकारी इस महल के तहखानों में एक कैदखाना है, इतिहास कहता है कि मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब ने यहां अपने भाई मुराद को कैद करके रखवाया था और बाद में उसे समाप्त करवा दिया।

मान मन्दिर महल मध्य प्रदेश राज्य के ग्वालियर शहर में स्थित है। इसका निर्माण 1486 से 1517 ई. के बीच राजा मानसिंह द्वारा करवाया गया था। यह महल ऐतिहासिक महत्त्व का स्थान है। इससे कई हृदयस्पर्शी कहानियाँ भी जुड़ी हुई हैं। यह हिन्दू वास्तुकला के साथ मिश्रित मध्ययुगीन वास्तुकला का अच्छा उदाहरण है। इस संरचना में चार मंजिलें हैं, जिसमें से दो मंजिलें भूमिगत हैं।

  • मान मन्दिर महल 1486 से 1517 ई. के बीच राजा मानसिंह द्वारा बनवाया गया था।
  • सुन्दर रंगीन टाइलों से सजे इस क़िले की समय ने भव्यता छीनी अवश्य है, किन्तु इसके कुछ आन्तरिक व बाह्य हिस्सों में इन नीली, पीली, हरी, सफ़ेद टाइल्स द्वारा बनाई उत्कृष्ट कलाकृतियों के अवशेष अब भी इस क़िले के भव्य अतीत का पता देते हैं।
  • इस क़िले के विशाल कक्षों में अतीत आज भी स्पंदित है। यहां जालीदार दीवारों से बना संगीत कक्ष है, जिनके पीछे बने जनाना कक्षों में राज परिवार की स्त्रियां संगीत सभाओं का आनंद लेतीं और संगीत सीखतीं थीं।
  • इस महल के तहखानों में एक कैदखाना है, इतिहास कहता है कि मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब ने यहां अपने भाई मुराद को कैद करके रखवाया था और बाद में उसे समाप्त करवा दिया।
  • 'जौहर कुण्ड' भी यहां स्थित है। इसके अतिरिक्त क़िले में इस शहर के प्रथम शासक के नाम से एक कुण्ड है- 'सूरज कुण्ड'।
  • नवीं शती में प्रतिहार वंश द्वारा निर्मित एक अद्वितीय स्थापत्य कला का नमूना विष्णु का तेली का मन्दिर है, जो कि 100 फीट की ऊंचाई का है। यह द्रविड स्थापत्य और आर्य स्थापत्य का बेजोड़ संगम है।
  • भगवान विष्णु का ही एक और मन्दिर है- 'सास-बहू का मन्दिर'।
  • यहां एक सुन्दर गुरुद्वारा है, जो सिक्खों के छठे गुरु हरगोबिंद सिंह की स्मृति में निर्मित हुआ था, जिन्हें जहाँगीर ने दो वर्षों तक यहां बन्दी बना कर रखा था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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