मुस्लिम विवाह
मुस्लिम विवाह को 'निकाह' कहा जाता है। अवधारणा के स्तर पर मुस्लिम विवाह एक सामाजिक समझौता या नागरिक समझौता है। परंन्तु व्यावहारिक स्तर पर भारत में मुस्लिम विवाह भी धार्मिक है। भारतीय मुसलमानों में अन्य समुदायों की तुलना में तलाक की दर अधिक है। पति-पत्नी के बीच वैवाहिक संबंध की तुलनात्मक स्थिरता भारतीय संस्कृति की साझी विरासत है। भारत में मुस्लिम विवाह अरब दुनिया तथा अन्य स्थानों की तुलना में ज्यादा स्थायी पाया गया है।
भारत में मुस्लिम समुदाय दो प्रमुख सम्प्रदायों- शिया एवं सुन्नी में विभाजित है। मोटे तौर पर वे लोग तीन समूहों में विभाजित है।
- अशरफ (सैयद, शेख, पठान, इत्यादि)
- अजलब (मोमिन, मंसूर, इब्राहिम, इत्यादि)
- अरजल (हलालखोर, इत्यादि)
ये सभी समूह अंतर्विवाही माने जाते है तथा इनके बीच बहिर्विवाह को प्रोत्साहन नहीं दिया जाता। कर्मकाण्ड की दृष्टि से विभिन्न सम्प्रदायों तथा समूहों में अंतर पाया जाता है। परन्तु हर मुस्लिम विवाह (निकाह) की पारिभाषिक विशेषताएँ एक समान होती हैं।[1]
विवाह में भागीदार
मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार मुस्लिम विवाह में चार भागीदारों का होना आवश्यक है :-
- दूल्हा
- दुल्हन
- काजी
- गवाह (दो पुरुष या चार स्त्री गवाह) जो सामाजिक धार्मिक क़ानूनी समझौता (निकाह) के साक्षी होते हैं।
दूल्हा तथा दुल्हन को क़ाज़ीऔपचारिक रूप से (एकत्रित स्थानीय समुदाय तथा चुने हुए गवाहों के सामने) पूछता है कि वे इस विवाह के लिए स्वेच्छा से राजी है या नहीं। यदि वे इस विवाह के लिए 'स्वेच्छा' से राजी होने की औपचारिक घोषणा करते हैं तो निकाहनामा पर समझौते की प्रक्रिया पूरी की जाती है। इस निकाहनामे में महर (या मेहर) की रकम शामिल होती है जिसे विवाह के समय या बाद में दूल्हा-दुल्हन को देता है। महर एक प्रकार का स्त्री-धन है। भारत में विवाह की रस्म हिन्दुओं तथा मुसलमानों दोनों समुदायों में दुल्हन के घर पर ही करने की प्रथा है। एक क्षेत्र के हिन्दुओं तथा मुसलमानों में कई प्रथायें समान रूप से मानी जाती हैं। उदाहरण के लिए केरल के मोपला मुसलमानों में 'कल्याणम' नामक हिन्दू कर्मकाण्ड पारंपरिक निकाह का आवश्यक अंग माना जाता है। चचेरे भाई बहनों का विवाह मुसलमानों में पसंदीदा विवाह माना जाता है। पुनर्विवाह मुस्लिम समुदाय में निषिद्ध नहीं है। मुसलमानों में दो प्रकार के विवाह की अवधरणा है। 'सही' या नियमित तथा 'फसीद' या अनियमित। अनियमित विवाह निम्नलिखित स्थितियों में हो सकता है :
- यदि प्रस्ताव करते समय या स्वीकृति के समय गवाह अनुपस्थित हो,
- एक पुरुष का पांचवाँ विवाह
- एक स्त्री का 'इद्दत' की अवध में किया गया विवाह।
- पति और पत्नी के धर्म में अंतर होने पर।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 शर्मा, डॉ. अमित कुमार। भारत में मुस्लिम विवाह (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) ब्रांड बिहार डॉट कॉम। अभिगमन तिथि: 9 अप्रॅल, 2013।
बाहरी कड़ियाँ
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