मैनूँ की होया मैथों गई गवाती मैं -बुल्ले शाह

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मैनूँ की होया मैथों गई गवाती मैं -बुल्ले शाह
बुल्ले शाह
बुल्ले शाह
कवि बुल्ले शाह
जन्म 1680 ई.
जन्म स्थान गिलानियाँ उच्च, वर्तमान पाकिस्तान
मृत्यु 1758 ई.
मुख्य रचनाएँ बुल्ले नूँ समझावन आँईयाँ, अब हम गुम हुए, किते चोर बने किते काज़ी हो
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
बुल्ले शाह की रचनाएँ

मैनूँ की होया मैथों गई गवाती मैं,
जियों कमली आखे लोकों मैनूं की होया
मैं विच वेखन ते नैं नहीं बण दी,
मैं विच वसना तूं।
सिर तो पैरीं तीक वी तू ही,
अन्दर बाहर तूँ।


हिन्दी अनुवाद

मुझे क्या हो गया है?
मुझमें से 'ममत्व' लुप्त हो गया है।
मैं एक पगली के समान कहता हूँ-
ओ लोगो, मुझे क्या हो गया है
जब मैं अपने अन्तःकरण में झाँकता हूँ
तो मैं वहाँ स्वयं को नहीं पाता। तुम ही मेरे भीतर निवास करते हो
सिर से पैर तक तुम ही विद्यमान हो।
भीतर और बाहर तुम ही हो।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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