रँग गई पग-पग धन्य धरा,--- हुई जग जगमग मनोहरा । वर्ण गन्ध धर, मधु मकरन्द भर, तरु-उर की अरुणिमा तरुणतर खुली रूप - कलियों में पर भर स्तर स्तर सुपरिसरा । गूँज उठा पिक-पावन पंचम खग-कुल-कलरव मृदुल मनोरम, सुख के भय काँपती प्रणय-क्लम वन श्री चारुतरा ।