राम न जाते हरिन संग -रहीम
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राम न जाते हरिन संग, सीय न रावन-साथ ।
जो ‘रहीम’ भावी कतहुँ, होत आपने हाथ ॥
- अर्थ
होनहार यदि अपने हाथ में होती, उस पर अपना वश चलता, तो माया-मृग के पीछे राम क्यों दौड़ते, और रावण क्यों सीता को हर ले जाता।
रहीम के दोहे |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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