लिग्नाइट
लिग्नाइट (अंग्रेज़ी: Lignite) निकृष्ट वर्ग का पत्थर का कोयला है। यह कत्थई रंग का होता है तथा वानस्पतिक ऊतक के रूपांतरण की प्रारंभिक अवस्था को प्रदर्शित करता है।
निर्माण
लाखों वर्ष पूर्व वानस्पतिक विकास की दर संभवत: अधिक तेज थी। वानस्पतिक पदार्थों का संचयन तथा उनके जीव रसायनिक क्षय से पीट[1] की रचना हुई, जो गलित काष्ठ[2] की भाँति होता है। यह प्रथम अवस्था थी। संभवत: द्वितीय अवस्था में मिट्टियों आदि के, जो युगों तक पीट के ऊपर अवसादित होती रहीं, दबाव ने जीवाणुओं की क्रियाओं को समाप्त कर दिया और पीट के पदार्थ को अधिक सघन तथा जलरहित एक लिग्नाइट में परिवर्तित कर दिया। जब लिग्नाइट पर अधिक दबाव विशेषत: क्षैतिज क्षेप और भी बढ़ जाता है, तो लिग्नाइट अधिक सघन हो जाता है तथा इस प्रकार कोयले का जन्म होता है।
भारत में प्राप्ति स्थान
भारत में गुडलूर तथा पांडिचेरी के बीच स्थित तटीय समतलों में लिग्नाइट कोयला मिला है, जिसका अन्वेषण सन 1884 में ही हो चुका था। दक्षिण आर्काडु क्षेत्र में 1930 में भूभिज्ञानियों का ध्यान नेवेली के लिग्नाइट की ओर गया। 1943-1946 के मध्य भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण ने इस क्षेत्र में अनेक वेधन किए, जिनसे लगभग 23 वर्ग मील के क्षेत्र में लिग्नाइट के अस्तित्व की पुष्टि हुई। तत्कालीन मद्रास में ईंधन तथा शक्ति के अभाव के कारण मद्रास की राज्य सरकार का ध्यान लिग्नाइट के विकास की ओर गया। सन 1949-1951 के मध्य और भी अनेक वेधन किए गए, जिनसे अनुमान लगा कि इस क्षेत्र में लिग्नाइट की मात्रा लगभग 200 करोड़ टन है तथा क्षेत्र का विस्तार लगभग 100 वर्ग मील में है। इस क्षेत्र के लगभग केंद्र में साढ़े पाँच वर्ग मील का क्षेत्र मिला है। यहाँ 20 करोड़ टन के लगभग लिग्नाइट के खनन योग्य निक्षेप प्राप्त हुए हैं, जिन पर अत्यंत सुगमता एवं पूर्ण आर्थिक तथा औद्योगिक दृष्टि से कार्य किया जा सकता है। लिग्नाइट स्तर की औसत मोटाई 55 फुट है, जो 180 फुट की गहराई पर स्थित है।
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