वंग
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वंग या 'बंग' बंगाल का प्राचीन नाम है। महाभारत में वंग नरेश पर पाण्डव भीम की चढ़ाई का उल्लेख है[1]-
'उभौ बलभृतौ वीराबुभौतीव्रपराक्रमौ निजित्याजौ महाराज बंगराजमुपाद्रवत।'महाभारत, सभापर्व[2]
- बंग निवासियों के युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में कलिंग और मगध के लोगों के साथ आगमन का वर्णन महाभारत सभापर्व[3] में इस प्रकार है-
'वंगाः कलिंगा मगधास्ताम्रलिप्ताः संपुड्रकाः दौवालिका: सागरकाः पत्रौर्णाः शैशवास्तथा।'
'वंगा नुत्खाव तरसा नेता नौसाधनोद्यतान् निचखान जयस्तंभान्गंगास्त्रोतोन्तरेषु सः।'
अर्थात "रघु ने अनेक नौकाओं के साधन से संपन्न बंग निवासियों को बलात् विस्थापित करके गंगा के स्त्रोतो के बीच विजय स्तंभ गढ़वाये।"
- महरौली के लौह स्तंभ पर 'चंद्र' नामक नरेश के अभिलेख में उसकी विजय का विस्तार बंग देश तक बताया गया है-
'स्योद्वर्तयत: प्रतीपमुरसा शत्रून् सवेत्यागतान, वंगेष्वाहववर्तिनोस भिलिखिता खड्गेनकीर्तिर्भजे...।'[4]
- प्राचीन काल में बंग सामान्य रूप से पूरे बंगाल का नाम था, किंतु कभी-कभी यह शब्द केवल पूर्वी बंगाल के लिए ही प्रयोग होता था।[1]
- 'माधवचंचू' में बंग और गौड़ भिन्न प्रदेश माने गए हैं। सुह्य पश्चिमी-दक्षिणी बंगाल[5] और समतट 'बंगाल की खाड़ी' के तटवर्ती प्रदेश का नाम था।
- 'राढ़' या 'राढ़ी' भी बंगाल का एक भाग[6] था।
- 'पुंड्र' गंगा की मुख्य धारा (ब्रह्मपुत्र-गंगा की संयुक्त धारा) के उत्तर में स्थित प्रदेश का नाम था।
- डाउसन[7] के अनुसार प्राचीन काल में बंग भागीरथी के उत्तर में स्थित भाग का नाम था, जिसमें जैसोर और कृष्णनगर के ज़िले सम्मिलित थे।
- जैन साहित्य में बंग का कई स्थानों पर उल्लेख है।
- 'प्रज्ञापणा सूत्र' में बंग को अंग के साथ ही आर्यजनों का श्रेष्ठ स्थान बताया गया है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 827 |
- ↑ सभापर्व 30, 23
- ↑ सभापर्व 52, 18
- ↑ नई खोजो के अनुसार इस अभिलेख का वंग शायद सिंध देश का एक भाग था।
- ↑ राजधानी ताम्रलिप्ति
- ↑ बर्दवान कमिश्नरी
- ↑ देखें क्लासिकल डिक्शनरी