गौड़
गौड़ बंगाल का प्राचीन सामान्य नाम है। स्कंदपुराण के अनुसार गौड़ देश की स्थिति वंगदेश से लेकर भुवनेश[1] तक थी- 'वंगदेशं समारभ्य भुवनेशांतग: शिवे, गौड़ देश: समाख्यात: सर्वविद्या विशारद:।' पद्म पुराण[2] में गौड़ नरेश नरसिंह का नाम आया है। अभिलेखों में गौड़ देश का सर्वप्रथम उल्लेख 553 ई. के हराहा अभिलेख में है जिसमें ईश्वर वर्मन मौखरी की गौड़देश पर विजय का उल्लेख है। बाणभट्ट ने गौड़नरेश शशांक का वर्णन किया है जिसने हर्षवर्धन के ज्येष्ठ भ्राता राज्यवर्धन का वध किया था। माधाईनगर के ताम्रपट्ट लेख से सूचित होता है कि गौड़नरेश लक्ष्मणसेन का कलिंग तक प्रभुत्व था। गौड़ देश के नाम पर संस्कृत काव्य की पुरुषावृत्ति का नाम ही गौड़ी पड़ गया था। कायस्थों आदि की कई जातियाँ आज भी गौड़ कहलाती है। कुछ विद्वानों का मत है कि गुड़ के व्यापार का केंद्र होने के कारण ही इस प्रदेश का नाम गौड़ हो गया था।[3]
अन्य नाम
प्राचीन 'लक्ष्मणावती' या 'लखनौती' (बंगाल) का मध्ययुगीन नाम था। कहा जाता है कि इस प्रदेश से प्रचुर मात्रा में गुड़ का निर्यात होने के कारण ही इसे 'गौड़' कहा जाता था। बाणभट्ट के 'हर्षचरित' में गौड़ के नरेश शशांक का उल्लेख मिलता है। आज इस मध्ययुगीन सुन्दर नगर के मात्र खंडहर ही शेष हैं।
इतिहास
नवीं-दसवीं शताब्दी में गौड़ पर पाल वंश के राजाओं का आधिपत्य था। सेन वंश के शासनकाल (12वीं शताब्दी) में बंगाल की राजधानी लखनौती थी। मुग़ल शासकों में हुमायूँ ने बंगाल की राजधानी गौड़ पर कुछ वर्षों के लिए अधिकार कर लिया था, परंतु अफ़ग़ानों ने तुरंत ही उसे वहाँ से बाहर निकाल दिया। सन 1576 ई. में दो वर्ष के संघर्षपूर्ण घटना-चक्र के पश्चात् बंगाल मुग़ल साम्राज्य का एक सूबा बना दिया गया।
राजधानी परिवर्तन
मुस्लिमों के बंगाल पर आधिपत्य होने के बाद इस सूबे की राजधानी कभी गौड़ और कभी पांडुआ में रही। पांडुआ गौड़ से 20 मील (लगभग 32 कि.मी.) दूर है। आज इस मध्ययुगीन भव्य नगर के केवल खंडहर ही शेष हैं। इनमें अनेक हिन्दू मंदिरों तथा मूर्तियों के अवशेष हैं, जिनका मसजिदों के निर्माण में प्रयोग किया था। 1575 ई. में बादशाह अकबर के सूबेदार ने गौड़ के सौंदर्य से आकृष्ट होकर राजधानी पांडुआ से हटाकर गौड़ में बनाई, जिसके फलस्वरूप गौड़ में एक बारगी बहुत भीड़भाड़ हो गई थी।
महामारी का प्रकोप
अपनी सम्पन्नता के थोड़े ही दिनों बाद गौड़ में महामारी का भी प्रकोप हुआ, जिससे गौड़ की जनसंख्या को भारी क्षति पहुँची। बहुत से निवासी गौड़ छोड़कर भाग गए। पांडुआ में भी महामारी का प्रकोप फैला और बंगाल के ये दोनों प्रमुख नगर जहाँ भव्य इमारतें खड़ी हुईं थीं तथा चारों ओर व्यस्त नर-नारियों का कोलाहल रहता था, इस महामारी के पश्चात् श्मशानवत् दिखलाई पड़ने लगे और उनकी सड़कों पर अब घास उग आई और दिन दहाड़े हिंसक पशु घूमने लगे। पांडुआ से गौड़ जाने वाली सड़क पर अब घने जंगल बन गए थे। तत्पश्चात् प्राय: 300 वर्षों तक बंगाल की शानदार नगरी गौड़ खंडहरों के रूप में घने जंगलों के बीच छिपी रही। अब कुछ ही वर्ष पहले वहाँ के प्राचीन वैभव को खुदाई द्वारा प्रकाश में लाने का प्रयत्न किया गया है।
स्थापत्य
लखनौती में 9वीं-10वीं शती ई. में पाल राजाओं का आधिपत्य था तथा 12वीं शती तक सेन नरेशों का। इस काल में यहाँ अनेक हिन्दू मंदिर बने, जिन्हें गौड़ के परवर्ती मुस्लिम बादशाहों ने नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। गौड़ की मुस्लिम कालीन इमारतों के बहुत से अवशेष अब भी यहाँ हैं। इनकी मुख्य विशेषता इनकी ठोस बनावट तथा विशालता है। सोना मसजिद प्राचीन मंदिरों की सामग्री से बनी है। यह यहाँ के जीर्ण किले के अंदर स्थित है। इसकी निर्माण-तिथि 1526 ई. है। इसके अतिरिक्त 1530 ई. में बनी नुसरतशाह की मसजिद भी कला की दृष्टि से उल्लेखनीय है।
- अन्य प्रसंग
एक अन्य प्रसंगानुसार गौड़ बंगाल का एक प्राचीन सामान्य नाम था। 'गौड़' या 'गौड़पुर' का उल्लेख पाणिनि[4] ने भी में किया है। कहा जाता है कि 'पुंड्र' या 'पौंड्र'[5] देश से गुड़ का प्रचुर मात्रा में निर्यात इस प्रदेश द्वारा होने के कारण ही इसे गौड़ कहा जाता था। गौड़पुर को गौड़भृत्यपुर भी कहा गया है। बाण के 'हर्षचरित' में गौड़ (बंगाल) के नरेश शशांक का उल्लेख है। संस्कृत काव्य की एक वृत्ति का नाम भी गौड़ी है, जो गौड़ देश से ही संबंधित है। इसके अतिरिक्त कई जातियों को भी गौड़ नाम से अभिहित किया जाता था।
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