वी. पी. मेनन
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पूरा नाम | राउ बहादुर वाप्पला पंगुन्नि मेनन |
जन्म | 30 सितंबर, 1893 |
जन्म भूमि | मलाबार, केरल |
मृत्यु | 31 दिसंबर, 1965 |
मृत्यु स्थान | बेंगळूरू |
पति/पत्नी | कनकम्मा |
संतान | दो पुत्र- पंगुन्नि अनंतन मेनन और पंगुन्नि शंकरन मेनन |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | भारतीय प्रशासनिक सेवा के प्रतिष्ठित अधिकारी |
विशेष योगदान | भारत में देशी रियासतों के एकीकरण में वी. पी. मेनन की अहम् भूमिका रही। सरदार पटेल के सहयोगी के रूप में भी वह याद किए जाते हैं। |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | सरदार पटेल और वी. पी. मेनन के बीच का रिश्ता अमूल्य था। मेनन, पटेल के बाएं हाथ जैसे थे और स्वतंत्र भारत की एकता में उन्होंने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था। उन्होंने राज्यों को भारत में मिलाने के लिए राजनीतिक परिपक्वता का बेहतरीन नमूना पेश किया था। |
राउ बहादुर वाप्पला पंगुन्नि मेनन (अंग्रेज़ी: Rao Bahadur Vappala Pangunni Menon, जन्म- 30 सितंबर, 1893, केरल; मृत्यु- 31 दिसंबर, 1965, बेंगळूरू) भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक प्रतिष्ठित अधिकारी थे। भारतीय सिविल सेवा में एक क्लर्क की तरह अपना कॅरियर आरंभ करने वाले मेनन ब्रिटिश भारतीय गवर्नर-जनरल के वैधानिक सलाहकार के पद[1] तक पहुंचे और जब अंतरिम सरकार विफल रही तो मेनन ने ही भारत के विभाजन की सलाह दी। भारत के विभाजन और फिर रियासतों के एकीकरण में वी. पी. मेनन की अहम् भूमिका रही। सरदार पटेल के सहयोगी के रूप में भी वह याद किए जाते हैं। हैदराबाद, जूनागढ़ या फिर कश्मीर सबकी कहानी में मेनन का नाम जरूर आता है।
परिचय
वी. पी. मेनन का जन्म 30 सितम्बर, 1893 को केरल के मलाबार क्षेत्र में हुआ था। उनके पिता एक विद्यालय के प्रधानाचार्य थे। बचपन में अपनी पढ़ाई का बोझ घरवालों के ऊपर से उठाने के लिए मेनन घर से भाग गए। पहले रेलवे में कोयलाझोंक, फिर खनिक और बेंगलोर तंबाकू कंपनी में मुंशी का काम करने के बाद भारतीय प्रशासनिक सेवा में नीचले स्तर से अपनी जीविका शुरू की। अपनी मेहनत के सहारे वी. पी. मेनन ने अंग्रेज सरकार में सबसे उच्च प्रशासनिक सेवक का पद अलंकृत किया। भारत के संविधान के मामले में वी. पी. मेनन पंडित थे। वाइसरायों के अधीन काम करते समय भी वे सुदृढ देशभक्त थे। उनकी पत्नी श्रीमती कनकम्मा थीं। उनके दो पुत्र थे- पंगुन्नि अनंतन मेनन और पंगुन्नि शंकरन मेनन।
सरदार पटेल के कहने पर ही वी. पी. मेनन ने भारत विभाजन, राज्यों के एकीकरण और सत्ता हस्तांतरण पर पुस्तकें लिखी थीं। भारत की आजादी के बाद प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को नेता और मंत्री अच्छी नज़रों से नहीं देखते थे। उनके मन में कहीं न कहीं ये बात बैठी होती थी कि ये अंग्रेजों के लिए काम करते थे। यहाँ तक कि जवाहरलाल नेहरू भी इन नौकरशाहों से दूरी बनाये रखते थे। शायद यही कारण था कि वी. पी. मेनन ने सरदार पटेल की मृत्यु के बाद अवकाश ले लिया था।
रियासतों के एकीकरण में योगदान
सालों की परतंत्रता के बाद भारत जब आज़ाद होने वाला था, तब सदियों की गुलामी के बाद स्वाधीनता की सुगबुगाहट होने लगी थी। अंग्रेज़ अब देश छोड़कर जाने वाले थे। सदियों की लड़ाई के बाद अब देश की आज़ादी का सपना साकार होने वाला था। लेकिन इस सपने के साकारीकरण के सामने एक बहुत बड़ी समस्या थी, भारत में बसे अलग-अलग 565 छोटे-बड़े रजवाड़ों-रियासतों के एकीकरण की। इन रियासतों के विलय के बिना आज़ाद मुल्क की कल्पना बेमानी थी। आखिर इन रियासतों को भारत में विलय के लिए मनाना इतना आसान भी नहीं था। इतिहास में इस अविस्मरणीय कार्य के लिए सरदार बल्लभ भाई पटेल को याद किया जाता रहा है। लेकिन हकीक़त तो यह है कि अगर भारत के तत्कालीन सलाहकार वी. पी. मेनन नहीं होते, तो शायद अकेले बल्लभ भाई पटेल भी भारत को एक नहीं कर पाते।
ऐसा माना जाता है कि भारत की संवैधानिक आज़ादी के लिए जो आधारभूत फार्मूला इस्तेमाल किया गया, वह मेनन ने ही प्रस्तुत किया था। लेकिन इतना कह देने भर से भारत के एकीकरण में मेनन की भूमिका का पता नहीं चलता। इसके लिए इतिहास को खंगालना होगा। ब्रिटिश शासकों द्वारा भारत को आज़ाद करने की घोषणा के बाद जब सत्ता हस्तांतरण का काम चल रहा था, तब अधिकतर रियासतों की प्राथमिकता भारत और पाकिस्तान से अलग स्वतंत्र राज्य के रूप में रहने की थी। आज़ादी की घोषणा के साथ ही देशी रियासतों के मुखियाओं में स्वतंत्र राज्य के रूप में अपनी सत्ता बरकरार रखने की होड़-सी लगी थी।
भारत के लिए यह वक़्त किसी दु:स्वप्न से कम नहीं था। जिस एकीकृत स्वतंत्र भारत की नींव शहीद क्रांतिकारियों ने रखी थी, वो नींव गिरने ही वाली थी। इस वक़्त में जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल के लिए कुछ भी फैसला लेना कठीन था। बल्लभ भाई किसी भी कीमत पर देश के विभाजन के पक्ष में नहीं थे, लेकिन परिस्थिति कुछ ऐसी थी कि अगर देश को आज़ाद रहना है, तो विभाजन के उस दौर से गुजरना ही होगा। लेकिन सभी रियासतों को अपने देश में शामिल करने के लिए कोई तरकीब भी नहीं थी। इस वक़्त सबसे ज़्यादा कोई काम आया, तो वो थे वी. पी. मेनन। दरअसल, वी. पी. मेनन भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक प्रतिष्ठित अधिकारी थे। मेनन भले ही ब्रिटिश राज के एक वफादार अधिकारी थे, लेकिन एक सच्चे देशभक्त और भारतीय भी थे। सरदार पटेल के मंत्रिमंडल में सलाहकार बनने के बाद मेनन की सबसे बड़ी जिम्मेदारी थी, सभी रियासतों को भारत में विलय के लिए मनाना। सबसे खास बात तो ये है कि अगर भारत के छोटे-छोटे टुकड़े होते, तो शायद देश को घातक परिणाम भुगतने पड़ते। दरअसल, मेनन लॉर्ड माउंट बेटन के काफ़ी करीबी भी थे, जो बाद में सरदार पटेल के भी करीबी बन गये। अगर वह सत्ता के माध्यम से कुछ भी मांगना चाहते तो आसानी से मिल जाता, पर मेनन की ऐसी कोई इच्छा नहीं थी।
इधर देश के सामने भारत में राज्यों के विलय की समस्या बनी हुई थी। अधिकांश राज्य और रजवाड़े भारत के साथ मिलना चाहते थे। लेकिन उस समय यहां के 565 रजवाड़ों में से तीन को छोड़कर सभी ने भारत में विलय का फ़ैसला किया। ये तीन रजवाड़े थे- कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद। हैदराबाद की आबादी का अस्सी फ़ीसदी हिन्दू थे, जबकि अल्पसंख्यक होते हुए भी मुसलमान प्रशासन और सेना में महत्वपूर्ण पदों पर बने हुए थे। इन सभी राज्यों को भारत में मिलाए बिना देश का एकीकरण संभव नहीं था। इसके लिए सरदार पटेल और मेनन ने अपनी सूझ-बूझ का बेजोड़ परिचय देते हुए अंतत: इन्हें भारत में शामिल कर ही लिया।
वी. पी. मेनन ने राज्यों को भारत में मिलाने के लिए राजनीतिक परिपक्वता का बेहतरीन नमूना पेश किया। यहां तक कि उन्हें एक बार जान से मारने की धमकी भी दी गई थी। फिर भी उन्होंने भारत सरकार के संदेशों को रजवाड़ों तक पहुंचाने और उन्हें भारत में मिलाने का सिलसिला जारी रखा। जब इस समूचे प्रकरण में मुस्लिम लीग की रणनीति इस पर केंद्रित थी कि अधिक से अधिक रजवाड़े भारत में मिलने से इंकार कर दें, तब सरदार पटेल और वी.पी. मेनन ने एक ताल में काम करते हुए पाकिस्तान के सभी षडयंत्रों को विफल किया। सच बात तो यह है कि अगर सरदार बल्लभ भाई को देश को एक करने के लिए जाना जाता है, तो इसमें कोई दो राय नहीं है कि वी. पी. मेनन की भूमिका इसमें कहीं से कम न थी। अगर वी. पी. मेनन का साथ सरदार पटेल को नहीं मिलता, तो शायद सरदार पटेल देश को एक करने में शायद सफल नहीं हो पाते। इसलिए देश के राजनीतिक एकीकरण में अगर मेनन की भूमिका की बात की जाए तो यह अविस्मरणीय है।[2]
प्रेरक प्रसंग
सन 1947 में वी. पी. मेनन जो एक हिन्दू थे, जब दिल्ली पहुंचे तो उन्होंने पाया कि जो भी पैसा वह साथ लाये थे, सब चोरी हो चुका है। उन्होंने एक वृद्ध सिक्ख से 15 रुपयों की मदद मांगी। उस सिक्ख ने मेनन को पैसे दिए और जब मेनन ने पैसे लौटाने के लिए उस सिक्ख से उसका पता पूछा तो उसने कहा- "नहीं मैं तुमसे पैसे वापस नहीं लूँगा, इस प्रकार जब तक तुम जीवित रहोगे, तब तक तुम हर उस ईमानदार व्यक्ति कि मदद करते रहोगे जो तुमसे मदद मांगेगा।" इस घटना के करीब 30 साल बाद और मेनन की मृत्यु के बस छ: सप्ताह पहले एक भिखारी मेनन के बंगलोर स्थित आवास पर आया। मेनन ने अपनी बेटी से अपना बटुआ मंगाया और 15 रुपये निकाल कर उस भिखारी को दिए। वह अभी भी उस कर्ज को चुका रहे थे।
उत्तर काल
सरदार पटेल और वी. पी. मेनन के बीच का रिश्ता अमूल्य था। मेनन, पटेल के बाएं हाथ जैसे थे और स्वतंत्र भारत की एकता में महत्त्वपूर्ण योगदान निभा चुके थे। हर राजनीतिज्ञ, अंग्रेज सरकार के नीचे काम करने वाले प्रशासनिक कर्मचारियों से असहानुभूतिपूर्ण थे। कुछ काँग्रेसी प्रशासनिक अफसरों को सेवा से वंचित करना चाहते थे, क्योंकि उनकी गिरफ्तारी में इन्हीं अफसरों का हाथ था। पंडित नेहरू तक को प्रशासन के इन कर्मचारियों से ज्यादा प्यार नहीं था। लेकिन वी. पी. मेनन को सन 1951 ओड़िशा के राज्यपाल का स्थान दिया गया। कुछ समय वे वित्त आयोग के सदस्य भी रहे। सरदार पटेल के देहांत के बाद वी. पी. मेनन ने नवनिर्मित भारतीय प्रशासन सेवा से इस्तीफा दे लिया।
मृत्यु
सेवानिर्वृत्ति के बाद वी. पी. मेनन बेंगळूरू में रहने लगे थे। 31 दिसम्बर, 1965 में उनका निधन हो गया। बड़े ही आश्चर्य की बात है कि किसी ने भी आज तक वी. पी. मेनन की आत्मकथा नहीं लिखी है।
रियासतों के एकीकरण में सरदार पटेल की सहायता करने वाले वी. पी. मेनन ने अपनी पुस्तक ‘द स्टोरी ऑफ दी इंटीग्रेशन ऑफ इंडियन स्टेट्स’ में लिखा है कि "भारत एक भौगोलिक इकाई है, फिर भी अपने पूरे इतिहास में वह राजनीतिक दृष्टि से कभी एकरूपता हासिल नहीं कर सका।.... आज देश के इतिहास में पहली दफा एकल केंद्र सरकार की रिट कैलाश से कन्याकुमारी और काठियावाड़ से कामरूप (असम का पुराना नाम) तक पूरे देश को संचालित करती है। इस भारत के निर्माण में सरदार पटेल ने रचनात्मक भूमिका अदा की।"
सरदार पटेल जानते थे कि ‘यदि आप एक बेहतरीन अखिल भारतीय सेवा नहीं रखेंगे तो आप भारत को एकजुट नहीं कर पाएंगे।‘ इसलिए राज्यों के पुनर्गठन का काम प्रारंभ करने से पहले उन्होंने ‘स्टील फ्रेम’ या भारतीय सिविल सेवा में विश्वास व्यक्त किया। सरदार पटेल ने शाही रजवाड़ों के साथ सहमति के जरिए एकीकरण के लिए अथक रूप से कार्य किया। परंतु उन्होंने साम, दाम, दंड और भेद की नीति अपनाने में भी कोई संकोच नहीं किया। सरदार पटेल और उनके सहयोगी वी. पी. मेनन ने ‘यथास्थिति समझौतों और विलय के विलेखों’ के प्रारूप तैयार किए, जिनमें विभिन्न शासकों से अनुरोधों और मांगों को शामिल किया गया था।[3]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ उस समय का भारतीय प्रशासनिक सेवा का उच्चतम पद
- ↑ इतिहास के पन्नों में गुमनाम यह शख़्स अगर नहीं होता, तो अकेले सरदार पटेल भी देश को एक नहीं कर पाते (हिन्दी) hindi.scoopwhoop.com। अभिगमन तिथि: 30 अगस्त, 2018।
- ↑ सरदार पटेल- जिन्होंने भारत को एकता के सूत्र में पिरोया (हिन्दी) pib.nic.in। अभिगमन तिथि: 30 अगस्त, 2018।
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