वे मधु दिन जिनकी स्मृतियों की धुँधली रेखायें खोईं, चमक उठेंगे इन्द्रधनुष से मेरे विस्मृति के घन में! झंझा की पहली नीरवता- सी नीरव मेरी साधें, भर देंगी उन्माद प्रलय का मानस की लघु कम्पन में! सोते जो असंख्य बुदबुद से बेसुध सुख मेरे सुकुमार; फूट पड़ेंगे दु:ख सागर की सिहरी धीमी स्पन्दन में! मूक हुआ जो शिशिर-निशा में मेरे जीवन का संगीत, मधु-प्रभात में भर देगा वह अन्तहीन लय कण कण में।