शाफ़ीया, जो 'मज़हब शाफ़ई' भी कहा जाता है, इस्लाम में सुन्नी संप्रदाय के धार्मिक विधान में चार वर्गों में से एक। यह अबू अब्द अल्लाह अश-शफ़ी (767-820) की शिक्षाओं पर आधारित है।
- यह वैधानिक संप्रदाय (मज़हब) इस्लामी क़ानूनी सिद्धांत के आधार को स्थिर करता है और अल्लाह की इच्छा तथा मानवीय परिकल्पना, दोनों को मान्यता देता है।
- परंपरागत सामूहिक जीवन पद्धति 'सुन्नत' को नकारते हुए यह 'हदीस'[1] को यथावत स्वीकारने में विश्वास रखता है। यही क़ानूनी और धार्मिक निर्णयों का प्रमुख आधार है।
- यदि क़ुरआन या हदीस में कोई स्पष्ट निर्देश न पाए जा सकें, तो 'क़यास'[2] का प्रयोग किया जाए। 'इज्मा'[3] भी स्वीकार्य है, लेकिन उस पर ज़ोर नहीं दिया गया।
- शाफ़ीया विचारधारा पूर्वी अफ़्रीका, अरब के कुछ भागों तथा इंडोनेशिया में प्रभावी है।[4]
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