श्रेणी:किष्किंधा काण्ड
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अ
- अंगद कहइ जाउँ मैं पारा
- अंगद बचन सुन कपि बीरा
- अंगद सहित करहु तुम्ह राजू
- अति सभीत कह सुनु हनुमाना
- अनुज क्रिया करि सागर तीरा
- अनुज बधू भगिनी सुत नारी
- अब नाथ करि करुना
- अब प्रभु कृपा करहु एहि भाँति
- अर्क जवास पात बिनु भयऊ
- अर्ध राति पुर द्वार पुकारा
- अस कपि एक न सेना माहीं
- अस कहि गरुड़ गीध जब गयऊ
- अस कहि चला महा अभिमानी
- अस कहि परेउ चरन अकुलाई
ए
क
- कतहुँ रहउ जौं जीवति होई
- कतहुँ होइ निसिचर सैं भेटा
- कनक बरन तन तेज बिराजा
- कपि सेन संग सँघारि निसिचर
- कबहु दिवस महँ निबिड़
- कबहुँ प्रबल बह मारुत
- करि बिनती मंदिर लै आए
- कवन सो काज कठिन जग माहीं
- कह अंगद बिचारि मन माहीं
- कह अंगद लोचन भरि बारी
- कह प्रभु सुनु सुग्रीव हरीसा
- कह बाली सुनु भीरु
- कह सुग्रीव सुनहु रघुबीरा
- कहइ रीछपति सुनु हनुमाना
- कहत अनुज सन कथा अनेका
- कहहु पाख महुँ आव न जोई
- कीन्हि प्रीति कछु बीच न राखा
- को तुम्ह स्यामल गौर सरीरा
- कोसलेस सुत लछिमन रामा
च
ज
- जग कारन तारन भव
- जदपि नाथ बहु अवगुन मोरें
- जद्यपि प्रभु जानत सब बाता
- जनकसुता कहुँ खोजहु जाई
- जन्म जन्म मुनि जतनु कराहीं
- जमिहहिं पंख करसि जनि चिंता
- जरठ भयउँ अब कहइ रिछेसा
- जरत सकल सुर बृंद
- जानतहूँ अस प्रभु परिहरहीं
- जानहिं यह चरित्र मुनि ग्यानी
- जामवंत अंगद दुख देखी
- जिन्ह कें असि मति सहज न आई
- जे न मित्र दुख होहिं दुखारी
- जेहिं सायक मारा मैं बाली
- जो कछु कहेहु सत्य सब सोई
- जो नाघइ सत जोजन सागर
त
द
न
प
- पंक न रेनु सोह असि धरनी
- पठए बालि होहिं मन मैला
- परा बिकल महि सर के लागें
- पवन तनय सब कथा सुनाई
- पाछें पवन तनय सिरु नावा
- पापिउ जाकर नाम सुमिरहीं
- पिता बधे पर मारत मोही
- पुनि धीरजु धरि अस्तुति कीन्ही
- पुनि पुनि चितइ चरन चित दीन्हा
- प्रगट सो तनु तव आगे सोवा
- प्रथमहिं देवन्ह गिरि गुहा
- प्रभु पहिचानि परेउ गहि चरना
ब
- बचन सुनत सब बानर
- बदरीबन कहुँ सो गई
- बरषहिं जलद भूमि निअराएँ
- बरषा गत निर्मल रितु आई
- बरषा बिगत सरद रितु आई
- बलि बाँधत प्रभु बाढ़ेउ
- बहु छल बल सुग्रीव कर
- बहु प्रकार सीतहि समुझाएहु
- बानर कटक उमा मैं देखा
- बालि त्रास ब्याकुल दिन राती
- बालि परम हित जासु प्रसादा
- बालि महाबल अति रनधीरा
- बिनु घन निर्मल सोह अकासा
- बिबिध जंतु संकुल महि भ्राजा
- बिषय बस्य सुर नर मुनि स्वामी
म
- मंगलरूप भयउ बन तब ते
- मंत्रिन्ह पुर देखा बिनु साईं
- मंत्रिन्ह सहित इहाँ एक बारा
- मज्जनु कीन्ह मधुर फल खाए
- मन क्रम बचन सो जतन बिचारेहु
- मम लोचन गोचर सोई आवा
- महाबृष्टि चलि फूटि किआरीं
- मास दिवस तहँ रहेउँ खरारी
- मुक्ति जन्म महि जान
- मुनि एक नाम चंद्रमा ओही
- मूढ़ तोहि अतिसय अभिमाना
- मूदहु नयन बिबर तजि जाहू
- मृदुल मनोहर सुंदर गाता
- मेली कंठ सुमन कै माला
- मैं देखउँ तुम्ह नाहीं
- मोहि लै जाहु सिंधुतट
र
ल
स
- सखा बचन सुनि हरषे
- समिटि समिटि जल भरहिं तलावा
- ससि संपन्न सोह महि कैसी
- सहित सहाय रावनहि मारी
- सादर मिलेउ नाइ पद माथा
- सुंदर बन कुसुमित अति सोभा
- सुखी मीन जे नीर अगाधा
- सुनत बालि क्रोधातुर धावा
- सुनत राम अति कोमल बानी
- सुनहु नील अंगद हनुमाना
- सुनहु राम स्वामी
- सुनि खग हरष सोक जुत बानी
- सुनि संपाति बंधु कै करनी
- सुनि सुग्रीवँ परम भय माना
- सुनु कपि जियँ मानसि जनि ऊना
- सुनु सुग्रीव मारिहउँ
- सुनु हनुमंत संग लै तारा
- सेवक सठ नृप कृपन कुनारी
- सो अनन्य जाकें असि
- सो नयन गोचर जासु गुन
- सो पुनि गई जहाँ रघुनाथा
- सोइ गुनग्य सोई बड़भागी