सिगरेट का धुआं -राजेंद्र प्रसाद
सिगरेट का धुआं -राजेंद्र प्रसाद
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विवरण | राजेंद्र प्रसाद |
भाषा | हिंदी |
देश | भारत |
मूल शीर्षक | प्रेरक प्रसंग |
उप शीर्षक | राजेंद्र प्रसाद के प्रेरक प्रसंग |
संकलनकर्ता | अशोक कुमार शुक्ला |
एक बार पूर्व राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद नाव से अपने गांव जा रहे थे। नाव में कई लोग सवार थे। राजेंद्र बाबू के नजदीक ही एक अंग्रेज बैठा हुआ था। वह बार-बार राजेंद्र बाबू की तरफ व्यंग्य से देखता और मुस्कराने लगता। कुछ देर बाद अंग्रेज ने उन्हें तंग करने के लिए एक सिगरेट सुलगा ली और उसका धुआं जानबूझकर राजेंद्र बाबू की ओर फेंकता रहा।
कुछ देर तक राजेंद्र बाबू चुप रहे। लेकिन वह काफ़ी देर से उस अंग्रेज की ज्यादती बर्दाश्त कर रहे थे। उन्हें लगा कि अब उसे सबक सिखाना ज़रूरी है। कुछ सोचकर वह अंग्रेज से बोले,
'महोदय, यह जो सिगरेट आप पी रहे हैं क्या आपकी है?' यह प्रश्न सुनकर अंग्रेज व्यंग्य से मुस्कराता हुआ बोला, 'अरे, मेरी नहीं तो क्या तुम्हारी है? महंगी और विदेशी सिगरेट है।'
अंग्रेज के इस वाक्य पर राजेंद्र बाबू बोले,
'बड़े गर्व से कह रहे हो कि विदेशी और महंगी सिगरेट तुम्हारी है। तो फिर इसका धुआं भी तुम्हारा ही हुआ न। उस धुएं को हम पर क्यों फेंक रहे हो? तुम्हारी सिगरेट तुम्हारी चीज है। इसलिए अपनी हर चीज संभाल कर रखो। इसका धुआं हमारी ओर नहीं आना चाहिए। अगर इस बार धुआं हमारी ओर मुड़ा तो सोच लेना कि तुम अपनी जबान से ही मुकर जाओगे। तुम्हारी चीज तुम्हारे पास ही रहनी चाहिए, चाहे वह सिगरेट हो या धुआं।'
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