सिय निंदक अघ ओघ नसाए
सिय निंदक अघ ओघ नसाए
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास | |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस | |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि | |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर | |
भाषा | अवधी भाषा | |
शैली | सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा | |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा | |
काण्ड | बालकाण्ड | |
टिप्पणी | ;श्री सीताराम-धाम-परिकर वंदना |
प्रगटेउ जहँ रघुपति ससि चारू। बिस्व सुखद खल कमल तुसारू॥ |
- भावार्थ-
जहाँ (कौशल्या रूपी पूर्व दिशा) से विश्व को सुख देने वाले और दुष्ट रूपी कमलों के लिए पाले के समान श्री रामचन्द्रजी रूपी सुंदर चंद्रमा प्रकट हुए। सब रानियों सहित राजा दशरथजी को पुण्य और सुंदर कल्याण की मूर्ति मानकर मैं मन, वचन और कर्म से प्रणाम करता हूँ। अपने पुत्र का सेवक जानकर वे मुझ पर कृपा करें, जिनको रचकर ब्रह्माजी ने भी बड़ाई पाई तथा जो श्री रामजी के माता और पिता होने के कारण महिमा की सीमा हैं॥3-4॥
सिय निंदक अघ ओघ नसाए |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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