सूर्य मन्दिर मोढेरा
सूर्य मंदिर | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- सूर्य मंदिर (बहुविकल्पी) |
सूर्य मन्दिर मोढेरा
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विवरण | 'मोढेरा का सूर्य मन्दिर' गुजरात राज्य के मोढेरा में स्थित है। यह मन्दिर अहमदाबाद से लगभग सौ किलोमीटर की दूरी पर पुष्पावती नदी के तट पर स्थित है। यह मन्दिर अब 'पुरातत्व विभाग' की देख-रेख में आता है। |
राज्य | गुजरात |
निर्माता | भीमदेव प्रथम |
निर्माण काल | 1026 ई. |
प्रसिद्धि | यह मन्दिर भारत के प्रसिद्ध सूर्य मन्दिरों में से एक है। |
अहमदाबाद हवाईअड्डा | |
अहमदाबाद रेलवे स्टेशन | |
बस एवं टैक्सी | |
अन्य जानकारी | यह सूर्य मन्दिर स्थापत्य कला एवं शिल्प का बेजोड़ नमूना है। इसके निर्माण में हिन्दू-ईरानी शैली का प्रयोग किया गया है। सोलंकी राजा भीमदेव ने इस मन्दिर को दो हिस्सों में बनवाया था। इसके प्रथम भाग में गर्भगृह तथा द्वितीय भाग में सभामंडप है। |
मोढेरा का सूर्य मन्दिर गुजरात राज्य के मोढेरा में स्थित है। यह मन्दिर अहमदाबाद से लगभग सौ किलोमीटर की दूरी पर पुष्पावती नदी के तट पर स्थित है। इस सूर्य मन्दिर का निर्माण सूर्यवंशी सोलंकी राजा भीमदेव प्रथम ने 1026 ई. में करवाया था। मोढेरा का सूर्य मन्दिर अब पुरातत्व विभाग की देख-रेख में आता है और हाल ही में यहाँ पर्यटन स्थलों के रख-रखाव में काफ़ी सुधार हुआ है। इस प्रसिद्ध मन्दिर के आस-पास बगीचा बना हुआ है और साफ-सफाई का भी पूरा ध्यान रखा गया है। चूंकि यहाँ पूजा-अर्चना आदि नहीं होती, इसीलिए श्रद्धालुओं की भीड़ बहुत कम होती है।
परिचय
भारत अपनी प्राचीन काल से ही स्थापत्य कला के लिए विश्व में प्रसिद्ध रहा है। यहाँ के राजाओं द्वारा निर्मित करवाये गए कई मन्दिरों का आज भी कोई मुकाबला नहीं है। भारत में कई सूर्य मन्दिर हैं, जिनमें से कुछ के नाम इस प्रकार हैं-
- उड़ीसा में कोणार्क सूर्य मन्दिर
- जम्मू में स्थित मार्तंड सूर्य मंदिर
- गुजरात के मोढेरा का सूर्य मन्दिर
- उत्तर प्रदेश में प्रतापगढ़ का सूर्य मंदिर
- सूर्य मन्दिर अल्मोड़ा
गुजरात के प्रसिद्ध शहर अहमदाबाद से क़रीब 100 किलोमीटर दूर और पाटण नामक स्थान से 30 किलोमीटर दक्षिण दिशा में पुष्पावती नदी के किनारे बसा एक प्राचीन स्थल है- मोढेरा। इसी मोढेरा नामक गाँव में भगवान सूर्य देव का विश्व प्रसिद्ध सूर्य मन्दिर है, जो गुजरात के प्रमुख ऐतिहासिक व पर्यटक स्थलों के साथ ही गुजरात की प्राचीन गौरवगाथा का भी प्रमाण है।[1]
इतिहास
मोढेरा के सूर्य मन्दिर का निर्माण सोलंकी वंश के राजा भीमदेव प्रथम ने सन 1026 ई. में करवाया था। इस तथ्य के प्रमाण यहाँ से प्राप्त शिलालेखों से मिलते हैं। मन्दिर के गर्भगृह की दीवार पर लगे एक शिलालेख पर लिखा गया है- "विक्रम संवत 1083 अर्थात् (1025-1026 ईसा पूर्व)।" यहाँ के सोलंकी राजा सूर्यवंशी थे और भगवान सूर्य इनके कुल देवता के रूप में पूजे जाते थे। इसी कारण उन्होंने यहाँ इस विशाल सूर्य मन्दिर की स्थापना करवाई थी। सोलंकी राजा इस मन्दिर में अपने आद्यदेव सूर्य भगवान की आराधना किया करते थे। यह समय विदेशी आक्रमणकारी महमूद ग़ज़नवी के आंतंक का समय था। उसने सोमनाथ और इसके आस-पास के क्षेत्रों को अपने कब्जे में कर लिया था। महमूद के आक्रमण के प्रभाव से सोलंकियों की शक्ति और वैभव को भी अपार क्षति पहुँची थी। सोलंकी साम्राज्य की राजधानी कही जाने वाली अन्हिलवाड़ का गौरव और वैभव भी क्षीण होता जा रहा था। इसी गौरव की पुनर्स्थापना के लिए सोलंकी राज परिवार और वहाँ के धनाढ़्य वर्ग व व्यापारियों ने एकजुट होकर भव्य मन्दिरों के निर्माण की शुरूआत की थी।
मन्दिर की क्षति
मुस्लिम आक्रांता अलाउद्दीन ख़िलज़ी के आक्रमण के दौरान इस मन्दिर को काफ़ी नुकसान पहुँचा था। यहाँ पर उसने लूटपाट की और मन्दिर की अनेक मूर्तियों को खंडित कर दिया था। आज इस मन्दिर के संरक्षण की जिम्मेदारी 'भारतीय पुरातत्व विभाग' के पास है। समय के थपेडों को सहते हुए भी यह मन्दिर अपनी भव्यता का प्रमाण प्रस्तुत करता है। वर्तमान में इस मन्दिर में पूजा-अर्चना आदि करना निषेध है।[1]
पौराणिक महत्ता
गुजरात का यह प्रसिद्ध सूर्य मन्दिर महत्त्वपूर्ण पर्यटन व धार्मिक स्थलों में से एक है। दूर-दूर से श्रद्धालु एवं सैलानी यहाँ दर्शन के लिए आते हैं। यह मन्दिर और यह स्थान अपने पौराणिक महत्व के कारण भी दर्शनीय है। विभिन्न पुराणों में भी मोढेरा का उल्लेख मिलता है। 'स्कंदपुराण' और 'ब्रह्मपुराण' के अनुसार प्राचीन काल में मोढेरा के आस-पास का पूरा क्षेत्र 'धर्मरण्य' के नाम से जाना जाता था। विभिन्न धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान श्रीराम ने लंका के राजा रावण के संहार के बाद अपने गुरु वशिष्ठ को एक ऐसा स्थान बताने के लिए कहा, जहाँ पर जाकर वह अपनी आत्मा की शुद्धि कर सकें और ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति पा सकें। तब गुरु वशिष्ठ ने श्रीराम को 'धर्मरण्य' जाने की सलाह दी थी। कहा जाता है भगवान राम ने ही धर्मारण्य में आकर एक नगर बसाया जो आज मोढेरा के नाम से जाना जाता है। श्रीराम यहाँ एक यज्ञ भी किया था। वर्तमान में यही वह स्थान है, जहाँ पर यह सूर्य मन्दिर स्थापित है।
अद्भुत स्थापत्य कला
यह सूर्य मन्दिर स्थापत्य कला एवं शिल्प का बेजोड़ नमूना है। इसके निर्माण में हिन्दू-ईरानी शैली का प्रयोग किया गया है। सोलंकी राजा भीमदेव ने इस मन्दिर को दो हिस्सों में बनवाया था। इसके प्रथम भाग में गर्भगृह तथा द्वितीय भाग में सभामंडप है। गर्भगृह काफ़ी विस्तृत है। इसकी लंबाई 51 फुट 9 इंच तथा चौड़ाई 25 फुट 8 इंच है। मन्दिर के सभामंडप में 52 स्तंभ हैं, जिन पर उत्कृष्ट कारीगरी की गई है। इन स्तंभों की विशेषता यह है कि नीचे की ओर देखने पर अष्टकोणाकार और ऊपर की ओर देखने पर वह गोल प्रतीत होते हैं। इन स्तंभों पर देवी-देवताओं के चित्र तथा रामायण, महाभारत आदि के प्रसंगों को अद्भुत सुन्दरता व बारीकी से उकेरा गया है। इस मन्दिर की स्थापत्य कला अति विशिष्ट है। इसका निर्माण इस प्रकार से किया गया है कि सूर्योदय होने पर सूर्य की पहली किरण मन्दिर के गर्भगृह में प्रवेश करती है। मन्दिर में एक विशाल कुंड है, जिसे 'सूर्यकुंड' तथा 'रामकुंड' कहा जाता है। मोढेरा के इस सूर्य मन्दिर को गुजरात का खजुराहो के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इस मन्दिर की शिलाओं पर भी खजुराहो जैसी ही नक़्क़ाशीदार अनेक शिल्प कलाएँ मौजूद हैं। इस विश्व प्रसिद्ध मन्दिर की स्थापत्य कला की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि पूरे मन्दिर के निर्माण में जुड़ाई के लिए कहीं भी चूने बिल्कुल भी नहीं हुआ है।[1]
संरचना
मन्दिर तक जाने के लिए पक्की पगदंडी है और दोनों ओर सुन्दर बगीचा है। मुख्य द्वार से पक्की पगदंडी पर दोनों ओर बने सुन्दर बगीचों से गुजरते हुए सुनहरे-से बलुआ-पत्थर से निर्मित मन्दिर प्रागंण तक जाया जाता है। मन्दिर के मुख्य तीन हिस्से हैं। इसमें सबसे आगे स्थित है- सूर्यकुंड, जिसे 'रामकुंड' भी कहा जाता है। ज्यामितिय संरचना वाले इस कुंड के घेरे में 108 देवताओं के छोटे-बड़े मन्दिर भी हैं। वास्तु के हिसाब से दिशा तय कर मन्दिर में प्रवेश के लिए तोरण बनवाया गया था। कुंड के बाद दांई ओर मन्दिर में प्रवेश करने के लिए तोरण बना हुआ था, जिसके अब दोनो खम्भे ही अब बचे हैं, ख़िलज़ी शासक अलाउद्दीन ख़िलज़ी ने मन्दिर को खंडित करते समय तोरण को तोड़ दिया था। यहाँ से गुजरते हुए सभामंडप में प्रवेश किया जाता है। यह वर्ष के 52 सप्ताह को ध्यान में रखते हुए 52 स्तम्भों से बना हुआ है। स्तम्भों पर पौराणिक कथाएँ उकेरी गई हैं।
इसके बाद है मुख्य मन्दिर। अब यहाँ पूजा-अर्चना नहीं होती, क्योंकि मन्दिर अलाउद्दीन ख़िलज़ी द्वारा खंडित कर दिया गया था। इसके साथ ही भगवान सूर्य देव की स्वर्ण प्रतिमा तथा गर्भगृह के खजाने को भी इस मुस्लिम शासक ने लूट लिया था। कमल का फूल भगवान सूर्य का फूल माना जाता है। इसलिए पूरा मंडप औंधे कमल के आकार के आधार पर निर्मित किया गया है। मुख्य मंडप पत्थर के स्तम्भों को अष्टकोणीय योजना से खड़े कर निर्मित किया गया है। चारों दिशाओं से प्रवेश के लिए अलंकृत तोरण बने हुए हैं। मंडप के बाहरी ओर चारों और 12 आदित्यों, दिक्पालों, देवियों और अप्सराओं की मूर्तियाँ प्रतिष्ठित हैं। मन्दिर के बाहरी ओर चारो तरफ़ दिशाओं के हिसाब से उनके देवताओं की मूर्तियाँ प्रतिष्ठित की गई हैं। इसमें सूर्य देवता की प्रतिमा को घुटनों तक के जूते पहनाये गए हैं। सामान्य रूप से कोई देवता पादुकाएँ पहने नहीं दिखाई देते।[2]
कैसे पहुँचें
इस प्रसिद्ध सूर्य मन्दिर तक आसानी से पहुँचा जा सकता है। यहाँ आने के लिए लगभग सभी तरह के साधन उपलब्ध हैं। यदि वायुमार्ग द्वारा यहाँ आना हो तो निकटतम हवाईअड्डा अहमदाबाद है। यहाँ से निकटतम रेलवे स्टेशन अहमदाबाद है, जो लगभग 102 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। अहमदाबाद से ही यहाँ जाने के लिए बस एवं टैक्सी की सुविधा भी उपलब्ध है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 मोढेरा का सूर्य मन्दिर (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 2 मई, 2013।
- ↑ सूर्य मन्दिर, मोढेरा (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 2 मई, 2013।
बाहरी कड़ियाँ
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