सोनपुर मेला

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सोनपुर मेला (Sonepur Mela) भारतीय राज्य बिहार के सोनपुर में लगता है। यह एशिया के सबसे बड़े और पुराने पशु मेलों में से एक है। यह मेला कार्तिक पूर्णिमा को आयोजित किया जाता है। कार्तिक पूर्णिमा अक्सर नवंबर के महिने में आती है। यह मेला पटना से लगभग 30 कि.मी. दूर स्थित सोनपुर में गंगा और गंडक नदियों के संगम पर आयोजित होता है। हिंदुओं के लिए यह पवित्र स्थल माना जाता है। कई तीर्थयात्री यहां इन दो नदियों के संगम पर डुबकी लगाकर हरिहरनाथ मंदिर में पूजा करने जाते हैं। कहा जाता है कि चन्द्रगुप्त मौर्य की सेना के लिए घोड़े और हाथी यहीं से खरीदे जाते थे।

इतिहास

बिहार की राजधानी पटना से लगभग 30 कि.मी. तथा वैशाली जिले के मुख्यालय हाजीपुर से तीन किलोमीटर दूर सोनपुर में गंडक के तट पर लगने वाले इस मेले ने देश में पशु मेलों को एक अलग पहचान दी है। यह मेला कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान के बाद शुरू होता है। एक समय इस पशु मेले में मध्य एशिया से कारोबारी आया करते थे। अब भी यह एशिया का सबसे बडा पशु मेला माना जाता है। सोनपुर पशु मेला में आज भी नौटंकी और नाच देखने के लिए भीड़ उमड़ती है। एक जमाने में यह मेला जंगी हाथियों का सबसे बड़ा केंद्र था। मौर्य वंश के संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य, मुग़ल बादशाह अकबर और 1857 के संग्राम के नायक वीर कुँवर सिंह ने भी से यहां हाथियों की खरीद की थी। सन 1803 में रॉबर्ट क्लाइब ने सोनपुर में घोड़े का बड़ा अस्तबल भी बनवाया था। एक दौर में सोनपुर मेले में नौटंकी की मल्लिका गुलाब बाई का जलवा होता था।

आधुनिकता

प्राचीन काल में पशु व्यापारी और खरीददार यहां मध्य एशिया से आया करते थे। 14 दिवसीय इस मेले की शुरूआत मंदिर में पूजा से की जाती है और कार्तिक पूर्णिमा के शुभ अवसर पर भक्त नदी में डुबकी लगाते हैं। आज इस मेले में कपड़ों, फर्नीचर और खिलौनों से लेकर बर्तन, कृषि उपकरण, आभूषण और हस्तशिल्प तक सब कुछ बिकता है। यहां स्थानीय संगीत, नृत्य और जादुई शो का आनंद भी लिया जाता है। सोनपुर मेला को 'हरिहर क्षेत्र मेला' भी कहा जाता है। इस मेले को देखने एशिया भर से आगंतुक आते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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