हन्टर शिक्षा आयोग की स्थापना ब्रिटिश शासनकाल में लॉर्ड रिपन (1880-1884 ई.) द्वारा 1882 ई. में की गई थी। चार्ल्स वुड के घोषणा पत्र द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में हुई प्रगति की समीक्षा के लिए सरकार ने विलियम विलसन हन्टर की अध्यक्षता में इस आयोग की नियुक्ति की थी। इस आयोग में आठ भारतीय सदस्य भी थे। 'हन्टर शिक्षा आयोग' को प्राथमिक शिक्षा एवं माध्यमिक शिक्षा की समीक्षा तक ही सीमित कर दिया गया था।
आयोग के सुझाव
'हन्टर शिक्षा आयोग' ने जो महत्त्वपूर्ण सुझाव दिए, वे निम्नलिखित थे-
- हाई स्कूल स्तर पर दो प्रकार की शिक्षा की व्यवस्था हो, जिसमें एक व्यवसायिक एवं व्यापारिक शिक्षा दिये जाने पर बल दिया जाये तथा दूसरी ऐसी साहित्यिक शिक्षा दी जाये, जिससे विश्वविद्यालय में प्रवेश हेतु सहायता मिले।
- प्राथमिक स्तर पर शिक्षा के महत्व पर बल एवं स्थानीय भाषा तथा उपयोगी विषय में शिक्षा देने की व्यवस्था की जाये।
- शिक्षा के क्षेत्र में निजी प्रयासों का स्वागत हो, लेकिन प्राथमिक शिक्षा उसके बगैर भी दी जाये।
- प्राथमिक स्तर पर शिक्षा का नियंत्रण ज़िला व नगर बोर्डों को सौंप दिया जाये।
शिक्षा में सुधार
उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सरकार से अनुरोध किया गया कि वह इन संस्थाओं पर अपने नियंत्रण के अधिकार को वापस ले ले। आयोग ने महिला शिक्षा के क्षेत्र में पर्याप्त व्यवस्था न होने के कारण चिन्ता व्यक्त की। आयोग के सुझाव के बाद माध्यमिक एवं कॉलेज स्तर की शिक्षा के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आये। 1882 ई. में पंजाब एवं 1887 ई. में 'इलाहाबाद विश्वविद्यालय' की स्थापना हुई। 1882 से 1902 ई. के मध्य शिक्षा के क्षेत्र में हुए विस्तार को निम्नलिखित आंकड़ों से देखा जा सकता है-
- 1881-1882 ई. में जहाँ माध्यमिक पाठशालाओं की संख्या 3,916 थी, वहीं 1901-1902 ई. में यह बढ़कर 5,124 हो गई।
- इन पाठशालाओं में छात्रों की संख्या, जो 1881-1882 ई. में 2,14,077 थी, 1901-1902 ई. में बढ़कर 4,90,129 हो गई।
- व्यवसायिक एवं तकनीक कॉलेजों की संख्या, जो 1881-1882 ई. में मात्र 72 थी, 1901-1902 ई. में बढ़कर 191 हो गई।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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