हाशिम अंसारी

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हाशिम अंसारी
हाशिम अंसारी
हाशिम अंसारी
पूरा नाम हाशिम अंसारी
जन्म 1921
मृत्यु 20 जुलाई, 2016
कर्म भूमि भारत
प्रसिद्धि अयोध्या-बाबरी मस्जिद विवाद के मुख्य पैरोकार।
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी हाशिम अंसारी जब 2015 में हज के लिए मक्का गए तो कई जगह उन्हें भाषण देने के लिए बुलाया गया। हाशिम जी ने वहाँ लोगों को बताया कि हिंदुस्तान में मुसलमानों को कितनी आज़ादी है और वे कई मुस्लिम मुल्कों से बेहतर हैं।

हाशिम अंसारी (अंग्रेज़ी: Hashim Ansari, जन्म- 1921; मृत्यु- 20 जुलाई, 2016) अयोध्या-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद के मुख्य पैरोकार थे। वे पिछले साठ वर्षों से लगातार बाबरी मस्जिद के लिए क़ानूनी लड़ाई लड़ते रहे। वे सन 1949 से बाबरी मस्जिद के लिए पैरवी कर रहे थे।

परिचय

हाशिम अंसारी का परिवार कई पीढ़ियों से अयोध्या में रह रहा है। हाशिम साल 1921 में पैदा हुए, लेकिन जब वे सिर्फ ग्यारह साल के थे, तब सन 1932 में उनके पिता की मृत्यु हो गई। हाशिम ने महज दूसरी कक्षा तक पढ़ाई की और फिर सिलाई यानी दर्जी का कम करने लगे। बाद में उनका विवाह पास ही के ज़िले फ़ैजाबाद में हुआ। उनके दो बच्चे हुए। एक बेटा और एक बेटी। हाशिद अंसारी के परिवार की आर्थिक हालत ठीक नहीं रही।[1]

22-23 जनवरी, 1949 को विवादित ढाँचे में रामलला के प्रकट होने की घटना को अयोध्या कोतवाली के तत्कालीन इन्स्पेक्टर ने दर्ज किया था, जिसमें हाशिम अंसारी गवाह के रूप में सबसे पहले सामने आये और फिर 18 दिसंबर, 1961 को एक दूसरा मुकदमा हाशिम अंसारी, हाजी फेंकू सहित 9 मुस्लिमों की ओर से मालिकाना हक के लिए फ़ैजाबाद के सिविल कोर्ट में लाया गया। राम मंदिर के प्रमुख पक्षकार दिगंबर अखाड़ा के तत्कालीन महंत परमहंस रामचन्द्र दास जो बाद में श्रीराम जन्मभूमि के अध्यक्ष हुए, उनसे इनकी मित्रता काफ़ी चर्चा में रही।[2]

बाबरी मस्जिद के पैरोकार

हाशिम अंसारी के अनुसार, 1934 का बलवा भी उन्हें याद था, जब हिन्दू वैरागी संन्यासियों ने बाबरी मस्जिद पर हमला बोला था। उनके मुताबिक़ ब्रिटिश हुकूमत ने सामूहिक जुर्माना लगाकर मस्जिद की मरम्मत कराई थी और जो लोग मारे गए थे, उनके परिवारों को मुआवज़ा दिया था। सन 1949 में जब विवादित मस्जिद के अंदर मूर्तियां रखी गईं, उस समय प्रशासन ने शांति व्यवस्था के लिए जिन लोगों को गिरफ़्तार किया था, उनमें हाशिम अंसारी भी शामिल थे। हाशिम अंसारी का कहना था कि- "क्योंकि उनका सभी के साथ सामाजिक मेलजोल था, इसलिए लोगों ने उनसे मुकदमा करने को कहा और इस तरह वे बाबरी मस्जिद के पैरोकार बन गए।" बाद में 1961 में जब सुन्नी वक्फ़ बोर्ड ने मुक़दमा किया तो उसमें भी हाशिम जी एक मुद्दई बने। पुलिस प्रशासन की सूची में नाम होने की वजह से 1975 के आपात काल में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें आठ महीने तक बरेली की केन्द्रीय जेल में रखा गया।

6 दिसंबर, 1992 के बलवे में बाहर से आए दंगाइयों ने हाशिम अंसारी का घर जला दिया, लेकिन अयोध्या के हिन्दुओं ने उन्हें और उनके परिवार को दंगाईयों की भीड़ से बचाया। इस घटना के बाद हाशिम अंसारी को सरकार की तरफ़ से जो कुछ मुअावज़ा मिला, उससे उन्होंने अपने छोटे से घर को दोबारा बनवाया और एक पुरानी अंबेसडर कार खरीदी। हाशिम अंसारी का कहना था कि उन्होंने बाबरी मस्जिद की पैरवी कभी राजनीतिक फायदे के लिए नहीं की। लोगों का मानना है कि 6 दिसंबर, 1992 की घटना के बाद एक बड़े नेता ने उनको दो करोड़ रुपए और पेट्रोल पम्प देने की पेशकश की तो हाशिम जी ने उसे ठुकरा दिया। हाशिम अंसारी की कोशिश अयोध्या के विवाद को मिलजुल कर सुलझाने की थी। अपनी मृत्यु से पहले हाशिम अंसारी ने कहा था कि- "वे फैसले का भी इंतजार कर रहे हैं और मौत का भी, लेकिन वे चाहते हैं कि मौत से पहले बाबरी मस्जिद और राम जन्मभूमि का फैसला देख लें।

अयोध्या के गाँधी

हाशिम अंसारी बाबारी मस्जिद-राम जन्मभूमि मुद्दे के समाधान का लगातार प्रयास करते रहे। हनुमानगढ़ी के महंत और 'अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद' के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष ज्ञान दास के साथ मिलकर सुलह-समझौते की पहल भी उन्होंने शुरू की थी। उच्च न्यायालय के फैसले के बाद भी समझौते का दौर वे चलाते रहे, लेकिन सुलह-समझौता परवान चढ़ता कि इसी बीच अन्य पक्षकार सर्वोच्च न्यायालय चले गए और हाशिम अंसारी जी के प्रयासों को धक्का लगा। फिर भी उन्होंने अपने प्रयास नहीं छोड़े और इसीलिए कुछ लोग हाशिम जी को अयोध्या का गांधी भी मानते हैं। हाशिम अंसारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ख़ास मुरीद थे और मुस्लिम समुदाय से भी नरेंद्र मोदी का समर्थन करने की अपील करते रहे। उन्होंने अपने जर्जर भवन में अभावग्रस्त जीवन व्यतीत किया और देश-दुनिया से समय-समय पर आये बड़े से बड़े प्रलोभनों को ठुकरा दिया।

हिन्दुओं से भाईचारा

स्थानीय हिन्दू साधु-संतों से हाशिम अंसारी जी के रिश्ते कभी ख़राब नहीं हुए। हमेशा अड़ोस-पड़ोस के हिन्दू युवक उन्हें 'चचा-चचा' कहते हुए उनसे बतियाते रहते थे। हाशिम अंसारी जी का कहना था कि- "मैं सन 1949 से मुक़दमे कि पैरवी कर रहा हूँ, लेकिन आज तक किसी हिन्दू ने हमको एक लफ़्ज़ ग़लत नहीं कहा। हमारा उनसे भाईचारा है। वो हमको दावत देते हैं। मैं उनके यहाँ सपरिवार दावत खाने जाता हूँ।" विवादित स्थल के दूसरे प्रमुख दावेदारों में निर्मोही अखाड़ा के राम केवल दास और दिगंबर अखाड़ा के रामचंद्र परमहंस से हाशिम जी की अंत तक गहरी दोस्ती रही। परमहंस और हाशिम जी तो अक्सर एक ही रिक्शे या कार में बैठकर मुक़दमे की पैरवी के लिए अदालत जाते थे और साथ ही चाय, नाश्ता करते थे। उनके ये दोनों दोस्त अब जीवित नहीं रहे। मुक़दमे के एक और वादी भगवान सिंह विशारद भी नहीं रहे। हाशिम अंसारी के समकालीन लोगों में निर्मोही अखाड़ा की ओर से मुक़दमे के मुख्य पैरोकार महंत भास्कर दास जीवित हैं।[3]

अयोध्या अवध की मिली जुली गंगा-यमुना तहजीब का केंद्र रहा है। हाशिम अंसारी का परिवार कई पीढ़ियों से अयोध्या में रह रहा है। हाशिम जी भी इसी संस्कृति में पले बढे़, जहां मुहर्रम के जुलूस पर हिन्दू फूल बरसाते हैं और नवरात्रि के जुलूस पर मुसलमान फूलों की बारिश करते हैं। हाशिम जी जब 2015 में हज के लिए मक्का गए तो कई जगह उन्हें भाषण देने के लिए बुलाया गया। हाशिम अंसारी ने वहाँ लोगों को बताया कि हिंदुस्तान में मुसलमानों को कितनी आज़ादी है और वे कई मुस्लिम मुल्कों से बेहतर हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जानिए, कौन हैं हाशिम अंसारी (हिन्दी) jagran.com। अभिगमन तिथि: 25 फ़रवरी, 2017।
  2. हाशिम अंसारी की मौत के बाद अब रामलला के मुकदमे का क्या होगा? (हिन्दी) ichowk.in। अभिगमन तिथि: 25 फ़रवरी, 2017।
  3. साठ साल से क़ानूनी लड़ाई लड़ते हाशिम अंसारी (हिन्दी) bbc.com। अभिगमन तिथि: 25 फ़रवरी, 2017।

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