उच्च न्यायालय

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उच्च न्यायालय, कर्नाटक

संविधान के अनुच्छेद 214 के अनुसार प्रत्येक राज्य के लिए एक उच्च न्यायालय होगा, लेकिन विधि द्वारा दो या अधिक राज्यों के लिए अथवा दो या अधिक राज्यों और किसी संघ राज्य क्षेत्र के लिए एक ही उच्च न्यायालय स्थापित कर सकती है। वर्तमान समय में पंजाब तथा हरियाणा के लिए एक ही उच्च न्यायालय है और असम, नागालैण्ड, मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा, मिजोरम तथा अरुणाचल प्रदेश के लिए एक उच्च न्यायालय है। मुम्बई उच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार महाराष्ट्र और गोवा राज्यों तथा दमन और दीव एवं दादरा और नागर हवेली संघ राज्य क्षेत्रों पर है। इसी प्रकार कलकत्ता उच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार अण्डमान तथा निकोबार द्वीप समूह, मद्रास उच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार पाण्डिचेरी तथा केरल उच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार लक्षद्वीप संघ राज्य क्षेत्र पर है। सात संघ शासित राज्यों में से केवल दिल्ली ही एक ऐसा संघ राज्य क्षेत्र है, जिसका अपना उच्च न्यायालय है। इस समय भारत में कुल 21 उच्च न्यायालय हैं।  

गठन

प्रत्येक उच्च न्यायालय का गठन एक मुख्य न्यायाधीश तथा ऐसे अन्य न्यायाधीशों को मिलाकर किया जाता है, जिन्हें राष्ट्रपति समय-समय पर नियुक्त करे।[1] इस प्रकार भिन्न-भिन्न उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की संख्या भी भिन्न है। उदाहरणार्थ, गौहाटी उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या सबसे कम 3 है। जबकि इलाहाबाद उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या सबसे ज़्यादा 58 है। भारत के सभी उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की कुल संख्या 456 है।  

न्यायाधीशों की योग्यता

अनुच्छेद 217 के अनुसार कोई व्यक्ति किसी उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के योग्य तब होगा, जब वह–

  1. भारत का नागरिक हो और 62 वर्ष की आयु पूरी न की हो।
  2. कम से कम 10 वर्ष तक न्यायिक पद धारण कर चुका हो। न्यायिक पद धारण करने की अवधि की गणना करने में वह अवधि भी सम्मिलित की जाएगी, जिसके दौरान कोई व्यक्ति पद धारण करने के पश्चात् किसी उच्च न्यायालय का अधिवक्ता रहा है या उसने किसी अधिकरण के सदस्य का पद धारण किया है या संघ अथवा राज्य के अधीन कोई ऐसा पद धारण किया है, जिसके लिए विधि का विशेष ज्ञान अपेक्षित है।
  3. किसी उच्च न्यायालय में एक या से अधिक उच्च न्यायालयों में लगातार 10 वर्ष तक अधिवक्ता रहा हो। किसी उच्च न्यायालय का अधिवक्ता रहने की अवधि की गणना करते समय वह अवधि भी सम्मिलित की जाएगी, जिसके दौरान किसी व्यक्ति ने अधिवक्ता होने के पश्चात् न्यायिक पद धारण किया है या किसी अधिकरण के सदस्य का पद धारण किया है या संघ अथवा राज्य के अधीन कोई ऐसा पद धारण किया है, जिसके लिए विधि का विशेष ज्ञान अपेक्षित है।

 

न्यायाधीशों की नियुक्ति

उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के अतिरिक्त अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश से, उस राज्य के राज्यपाल से तथा सम्बन्धित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श करके की जाती है।[2] इस सम्बन्ध में यह प्रक्रिया अपनाई जाती है कि उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश राज्य के राज्यपाल के पास प्रस्ताव भेजता है और राज्यपाल उस प्रस्ताव पर मुख्यमंत्री से परामर्श करके उसे प्रधानमंत्री के माध्यम से राष्ट्रपति के पास भेजता है। राष्ट्रपति उस प्रस्ताव पर भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श करके न्यायाधीश की नियुक्ति करता है। उच्च न्यायालय के एक पूर्व निर्णय के अनुसार राष्ट्रपति मुख्य न्यायाधीश की राय मानने के लिए बाध्य नहीं है, लेकिन 6 अक्टूबर, 1993 के उच्चतम न्यायालय के द्वारा दिये गये एक निर्णय के अनुसार राष्ट्रपति को भारत के मुख्य न्यायाधीश की राय को वरीयता देनी चाहिए।

1999 में उच्चतम न्यायालय के 9 सदस्यीय संविधान पीठ ने यह अभिनिर्धारित किया है कि उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के मामले में उच्चतम न्यायालय के केवल 2 वरिष्ठतम न्यायाधीशों की सलाह लेना आवश्यक है किन्तु स्थानान्तरण के मामले में उच्चतम न्यायालय के 4 वरिष्ठतम न्यायाधीशों से परामर्श को अनिवार्य बनाया गया है। साथ ही सम्बन्धित उच्च न्यायालयों जिससे स्थानान्तरण किया गया है और जिसको स्थानान्तरण किया जाना है, वे मुख्य न्यायाधीशों से परामर्श करना भी अनिवार्य होगा।  

मुख्य न्यायधीश की नियुक्ति

अनुच्छेद 217 के अनुसार उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा राज्यपाल से विचार-विमर्श के पश्चात् की जाती है और इस सम्बन्ध में यह आवश्यक नहीं है कि उच्च न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश को मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया जाए, लेकिन ऐसी प्रथा का निर्माण हो गया है कि उच्च न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश को ही मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया जाता है, हालाँकि इस प्रथा का अनेक बार उल्लंघन किया गया है। कुछ समय पूर्व सरकार ने यह नीति निर्धारित की है कि उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश अन्य उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों में से नियुक्त किया जाएगा, लेकिन इसमें भी वरिष्ठता का उल्लंघन किया जाता है।  

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति

जब किसी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का पद रिक्त हो या जब मुख्य न्यायाधीश की अनुपस्थिति के कारण या अन्यथा अपने पद के कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ हो, तब राष्ट्रपति न्यायायल के अन्य न्यायाधीशों में से किसी को मुख्य न्यायाधीश के कार्यों का निर्वहन करने के लिए नियुक्त कर सकता है।[3]  

अपर एवं कार्यकारी न्यायाधीशों की नियुक्ति

जब किसी उच्च न्यायालय में कार्य की अस्थायी वृद्धि हो जाये और राष्ट्रपति को यह प्रतीत हो कि कार्य निपटाने के लिए और भी अधिक न्यायाधीशों की आवश्यकता है, तब राष्ट्रपति न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किये जाने के लिए किसी योग्य व्यक्ति को 2 वर्ष तक की अवधि के लिए अपर नयायाधीश के रूप में नियुक्त कर सकता है।[4]

इसी तरह जब उच्च न्यायालय का कोई न्यायाधीश अपने पद के कर्तव्यों का निर्वहन करने में असमर्थ हो जाता है या अनुपस्थिति के कारण अपने पद के कर्तव्यों का निर्वहन नहीं कर पाता है, तब राष्ट्रपति न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति किये जाने के लिए किसी योग्य व्यक्ति को कार्यकारी न्यायाधीश के रूप में नियुक्त कर सकता है।  

सेवा निवृत्त न्यायाधीशों की नियुक्ति

जब उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश किसी समय राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से किसी भी ऐसे व्यक्ति से, जो किसी या उस उच्च न्यायालय में न्यायाधीश के पद पर कार्य कर चुका हो, उच्च न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में कार्य करने का अनुरोध कर सकता है।[5] जब कोई सेवा निवृत्त न्यायाधीश, न्यायाधीश के रूप में कार्य करने का अनुरोध स्वीकार कर कार्य करता है, तब उसको उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सभी अधिकारिता, शक्तियाँ तथा विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं।  

शपथ ग्रहण

उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को उस राज्य, जिसमें उच्च न्यायालय स्थित है, का राज्यपाल उसके पद की शपथ दिलाता है।[6]  

पदावधि

उच्च न्यायालय का न्यायाधीश 62 वर्ष की आयु पूरी करने तक अपना पद धारण कर सकता है। परन्तु वह किसी समय राष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र दे सकता है।[7] यदि त्यागपत्र में उस तिथि का उल्लेख किया गया है, जिस तिथि से त्यागपत्र लागू होगा, तो न्यायाधीश किसी भी समय अपना त्यागपत्र वापस ले सकता है। उदाहरणार्थ–

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति सतीश चन्द्र ने मई, 1977 में दिये अपने त्यागपत्र में लिखा था कि उनका त्यागपत्र 1 अगस्त, 1977 से लागू माना जाए, लेकिन वे 31 जुलाई, 1977 से पहले अपना त्यागपत्र वापस ले लिये थे। इसके विरुद्ध विवाद होने पर उच्चतम न्यायालय ने 4:1 के बहुमत से निर्णय दिया कि त्यागपत्र लागू होने के पूर्व वापस लिया जा सकता है।

इसके अतिरिक्त न्यायाधीश को साबित कदाचार तथा असमर्थता के आधार पर संसद द्वारा दो तिहाई बहुमत से पारित महाभियोग प्रस्ताव के द्वारा राष्ट्रपति द्वारा उसके पद से हटाया जा सकता है।  

आयु के सम्बन्ध में विवाद

जब उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश की आयु के सम्बन्ध में विवाद होता है, तब उसका निर्णय राष्ट्रपति के द्वारा किया जाता है। अब तक उच्च न्यायालय के चार न्यायाधीशों, यथा कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जे. पी. मित्र, मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायाधीश एस. आर. आचार, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के न्यायाधीश पी. वी. दीक्षित तथा आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के न्यायाधीश भास्करन की आयु के बारे में विवाद उत्पन्न हुआ है।  

विधि व्यवसाय पर रोक

उच्च न्यायालय का स्थायी न्यायाधीश उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालय, जिसमें वह न्यायाधीश रहा है, के अतिरिक्त अन्य उच्च न्यायालयों के सिवाय भारत के किसी न्यायालय या किसी प्राधिकारी के समक्ष विधि व्यवसाय नहीं कर सकता।[8]  

न्यायाधीशों का स्थानान्तरण

राष्ट्रपति भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श करके किसी भी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का स्थानान्तरण दूसरे न्यायालय में कर सकता है।[9]  

न्यायाधीशों के वेतन एवं भत्ते

15 जनवरी, 2009 को केन्द्र सरकार द्वारा जारी अध्यादेश के अनुसार उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का वेतन 30,000 रुपये से बढ़ाकर 90,000 रुपये प्रतिमाह तथा अन्य न्यायाधीशों का वेतन 26,000 रुपये से बढ़ाकर 80,000 रुपये प्रतिमाह कर दिया गया है। यह वेतनमान 1 जनवरी, 2006 से प्रभावी किया गया है। इसके लिए दिसम्बर, 2008 में संसद द्वारा उच्च न्यायालय व उच्चतम न्यायालय[10] वेतन एवं सेवा शर्त संधोशन विधेयक, 2008 पारित किया गया है। इससे पूर्व 12 सितम्बर, 2008 को तीन सदस्यीय न्यायाधीशों के पैनल द्वारा सौंपी गयी रिपोर्ट के अनुसार उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का वेतन 30,000 से बढ़ाकर एक लाख रुपये और अन्य न्यायाधीशों का वेतन 26,000 से बढ़ाकर 90,000 रुपये किये जाने का प्रस्ताव था। उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन तथा भत्तों को निर्धारित करने की शक्ति संसद को दी गयी है। न्यायाधीशों के वेतन और भत्ते भारत की संचित निधि पर भारित होते हैं और उनमें उनकी नियुक्ति के पश्चात् कोई अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जाता है।  

उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन एवं भत्ते
वेतन राजसी भत्ता विद्युत भत्ता निवास स्थान व्याय वाहन व्यय पेंशन मृत्यु या निवृत्ति उपदान प्रतिदिन का यात्रा भत्ता
मुख्य न्यायाधीश 90,000 रुपये प्रतिमाह 500 रुपये प्रतिमाह 500 रुपये प्रतिमाह 3000 रुपये प्रतिमाह 500 रुपये प्रतिमाह 5400 रुपये प्रतिमाह 50,000 रुपये 100 रुपये प्रतिदिन
अन्य न्यायाधीश 80,000 रुपये प्रतिमाह 300 रुपये प्रतिमाह 500 रुपये प्रतिमाह 2500 रुपये प्रतिमाह 500 रुपये प्रतिमाह 4800 रुपये प्रतिमाह 50,000 रुपये 100 रुपये प्रतिदिन

उच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार

अपीलीय क्षेत्राधिकार

उच्च न्यायालय को अपने अधीनस्थ सभी न्यायालयों तथा न्यायाधिकरणों के निर्णयों, आदेशों तथा डिक्रियों के विरुद्ध अपील सुनने का अधिकार है।

प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार

उच्च न्यायालय को राजस्व तथा संग्रह के सम्बन्ध में मूल अधिकारों के उल्लंघन के मामले में प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार हैं।[11]

अन्तरण सम्बन्धी क्षेत्राधिकार

यदि उच्च न्यायालय को यह समाधान हो जाए कि उसके अधीनस्थ किसी न्यायालय में लम्बित किसी मामले में संविधान की व्याख्या के बारे में कोई प्रश्न न्यायालय के विचाराधीन है, जिसका उस मामले से सम्बन्ध है, तो वह उस मामले को अपने पास मंगा सकता है और मामले पर निर्णय कर सकता है और निर्णय करके उस मामले को ऐसे प्रश्न पर निर्णय की प्रतिलिपि सहित उस न्यायालय को, जिससे मामला अन्तरित किया गया था, भेजकर उस निर्णय के अनुसार मामले के निपटारे का आदेश दे सकता है। इसके अतिरिक्त उच्च न्यायालय अपने अधीनस्थ न्यायालय मं लम्बित वाद को किसी अन्य अधीनस्थ न्यायालय को स्थानान्तरित कर सकता है।[12]

लेख जारी करने का अधिकार

उच्च न्यायालय मूलाधिकारों के उल्लंघन के मामले में बन्दी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, उत्प्रेषण तथा अधिकार पृच्छा लेख जारी कर सकता है।[13]

अधीक्षण क्षेत्राधिकार

प्रत्येक उच्च न्यायालय को अपनी अधिकारिता के अधीन स्थित सभी न्यायालयों तथा अधिकरणों की अधीक्षण की शक्ति है, जिसके प्रयोग में वह ऐसे न्यायालयों/अधिकरणों

  1. से विवरणी मंगा सकता है,
  2. के अधिकारियों द्वारा रखी जाने वाली प्रविष्टियों और लेखाओं के प्ररूप निश्चित कर सकता है तथा
  3. के शुल्कों को नियत कर सकता है।[14]

अधीनस्थ न्यायालय

संविधान के अनुच्छेद 333 में अधिनस्थ अथवा ज़िला न्यायालय का प्रावधान किया गया है। उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों की तरह ही ज़िला न्यायालयों को कार्यपालिका से स्वतंत्र रखने के लिए संविधान में निम्नलिखित प्रावधान किये गये हैं–

  1. ज़िला न्यायाधीश की नियुक्ति, तैनाती तथा पदोन्नति राज्यपाल द्वारा उच्च न्यायालय से परामर्श करके की जाएगी।
  2. ज़िला न्यायाधीश से भिन्न व्यक्तियों की किसी राज्य की न्यायिक सेवा में नियुक्ति उस राज्य के राज्यपाल के द्वारा लोक सेवा आयोग तथा सम्बद्ध न्यायालय से परामर्श करके निर्मित नियमों के अनुसार की जाएगी।
  3. ज़िला न्यायालय और उनके अधीनस्थ न्यायालयों का नियत्रंण उच्च न्यायालय में निहित है।
  4. ज़िला न्यायाधीशों तथा उनके न्यायिक पदाधिकारियों के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई करने का अधिकार उच्च न्यायालय को ही है।

 

ज़िला न्यायाधीशों की नियुक्ति

उच्च न्यायालय से परामर्श करके राज्यपाल ज़िला न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है। सामान्यत: ज़िला न्यायाधीश की नियुक्ति राज्य की न्यायिक सेवा के अधिकारियों में से वरिष्ठता तथा योग्यता के आधार पर की जाती है लेकिन न्यायालय की सिफ़ारिश पर राज्यपाल उस व्यक्ति को भी ज़िला न्यायाधीश के पद पर नियुक्त कर सकता है, जो कम से कम 7 वर्ष तक किसी न्यायालय में लगातार अधिवक्ता रहा हो।[15]  

ज़िला न्यायाधीशों के अतिरिक्त अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति

ज़िला न्यायाधीशों के अतिरिक्त अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति दो प्रकार से की जाती है। प्रथम, उच्च न्यायालय द्वारा आयोजित उच्च न्यायिक सेवा परीक्षा के परिणाम के आधार पर तथा द्वितीय, राज्य लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित प्रान्तीय न्यायिक सेवा परीक्षा के परिणाम के आधार पर।  

ई-कोर्ट

न्यायालय की प्रक्रिया को सरल बनाने के उद्देश्य से ई-कोर्ट का प्रचलन प्रारम्भ किया गया है। देश में पहला मॉडल ई-कोर्ट गुजरात में अहमदाबाद में अहमदाबाद सिटी सिविल एवं सेशन न्यायालय में स्थापित किया गया है। इसका उदघाटन 8 फरवरी, 2009 को देश के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति के. जी. बालाकृष्णन द्वारा किया गया।

ई-कोर्ट में आरोपी वीडियों कांफ्रेंसिंग के माध्यम से न्यायाधीश के समक्ष अपनी उपस्थिति दर्शा सकेंगे तथा बयान भी दे सकेंगे। इससे कारागारों से उन्हें न्यायालय तक लाने ले जाने की आवश्यकता नहीं होगी। कारागार व पुलिस मुख्यालय के अतिरिक्त फोरेंसिक लेबोरेटरी को भी इस पहले ई-कोर्ट परियोजना में न्यायालय से आन लाइन सम्बद्ध किया गया है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अनुच्छेद 216
  2. अनुच्छेद 217
  3. अनुच्छेद 233
  4. अनुच्छेद 224
  5. अनुच्छेद 228
  6. अनुच्छेद 219
  7. अनुच्छेद 217
  8. अनुच्छेद 220
  9. अनुच्छेद 222
  10. न्यायाधीश
  11. अनुच्छेद 226
  12. अनुच्छेद 228
  13. अनुच्छेद 226
  14. अनुच्छेद 227
  15. अनुच्छेद 233

बाहरी कड़ियाँ

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