हिन्दी प्रचार सभा, हैदराबाद
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
हिन्दी प्रचार सभा हैदराबाद में स्थित एक हिंदी सेवी संस्था है।
स्थापना
सन् 1932 में हिन्दी के प्रतिकूल वातावरण में सभा की स्थापना हुई। निजाम के सामंती शासनकाल में सभा को अनेक कठिनाइयों का समाना करना पड़ा। हिन्दी का काम करना राजद्रोह समझा जाता था। सन् 1948 के पुलिस एक्शन से हैदराबाद की राजनीतिक और सांस्कृतिक स्थिति में जो परिवर्तन आया उसका सुप्रभाव हिन्दी प्रचार पर भी पड़ा। हैदराबाद में जब लोकतांत्रिक सरकार की स्थापना हुई तो इस संस्था को शैक्षणिक संस्था के रूप में स्वीकार किया गया।
उद्देश्य
हिन्दी प्रचार सभा के मुख्य उद्देश्य हैं:
- अहिन्दी भाषियों में हिन्दी का प्रचार करना
- हिन्दी साहित्य के प्रति जनता में रुचि उत्पन्न करना
- प्रांतीय भाषाओं से हिन्दी का परस्पर आदान-प्रदान करना
- संविधान की धाराओं के आधार पर केंद्रीय राजकाज तथा अंतप्रांतीय कामकाज के लिए हिन्दी को व्यवहारोपयोगी बनाया है।
विशेषताएँ
- हिन्दी शिक्षण की व्यवस्था 200 केंद्रों में होती है। इसके अतिरिक्त जेलों में बंदियों के लिए शिक्षा कि व्यवस्था की जाती है और उन्हें सभा अपनी सभी परीक्षाओं में नि:शुल्क प्रवेश देती है। इन परीक्षाओं में सफलता प्राप्त करने वाले बंदियों की सजा में राज्य सरकार कटौती करती है।
- सभा द्वारा संचालित विशारद, भाषण तथा विद्वान की परीक्षाओं को भारत सरकार ने क्रमश: मैट्रिक, इंटर तथा बी. ए. के हिन्दी स्तर के समकक्ष स्थायी मान्यता प्रदान की है।
- हिन्दी प्रचार सभा ने अनेक उपयोगी पाठ्यपुस्तकों का प्रकाशन किया है। इंटरमीडिएट बोर्ड तथा विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में सभा की कुछ पाठ्य-पुस्तकों को स्थान प्राप्त हुआ है।
- आंध्र प्रदेश एवं अन्य प्रदेशों और उस्मानिया विश्वविद्यालय द्वारा भी ये परीक्षाएँ मान्य हैं।
- सभा एम. ए. स्तर की एक उच्च परीक्षा ‘हिन्दी वाचस्पति’ भी चलाती है।
- सभा प्रचारात्मक कार्यों के साथ ही साथ सर्जनात्मक कार्य भी नियमित रूप से करती आई है।
- हिन्दी प्रचार सभा ने तेलुगु, मराठी, संस्कृत और कन्नड़ भाषाओं की कुछ साहित्यिक पुस्तकों का हिन्दी में और हिन्दी से प्रादेशिक भाषाओं में प्रकाशन कार्य किया है।
- केंद्रीय सरकार की सहायता से तेलुगु, उर्दू, कन्नड़ और मराठी साहित्य के इतिहास हिन्दी में तैयार किए गए हैं।
- तेलुगु और उर्दू साहित्य का इतिहास प्रकाशित हो चुका है।
- उस्मानिया विश्वविद्यालय की एम. ए. हिन्दी में जो अहिन्दीभाषी छात्र प्रथम श्रेणी में सर्वप्रथम आएगा उसे स्वर्ण पदक दिया जाएगा। यह स्वर्ग पदक ‘हिन्दी प्रचार सभा, हैदराबाद’ द्वारा एल. एन. गुप्त के नाम से दिया जाएगा।[1]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ लोंढे, शंकरराव। हिन्दी की स्वैच्छिक संस्थाएँ (हिंदी) भारतकोश। अभिगमन तिथि: 29 मार्च, 2014।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख