हिन्दू धर्म -स्वामी विवेकानन्द
हिन्दू धर्म -स्वामी विवेकानन्द
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लेखक | स्वामी विवेकानन्द |
मूल शीर्षक | हिन्दू धर्म |
अनुवादक | पं. द्वारकानाथ जी तिवारी और सी.पी. दुर्ग |
प्रकाशक | रामकृष्ण मठ |
प्रकाशन तिथि | 1 जनवरी, 2008 |
देश | भारत |
भाषा | हिंदी |
मुखपृष्ठ रचना | अजिल्द |
विशेष | इस पुस्तक में स्वामी विवेकानन्द द्वारा भारत तथा विदेश में हिन्दू धर्म पर दिये गये भाषाणों का संकलन है। |
हिन्दू धर्म नामक इस पुस्तक में स्वामी विवेकानन्द द्वारा भारत तथा विदेश में हिन्दू धर्म पर दिये गये भाषाणों का संकलन है। उन्होंने अपने इन भाषाणों में हिन्दू धर्म के भिन्न भिन्न अंगों पर प्रकाश डाला है तथा उनका सूक्ष्म रूप से विश्लेषण किया है जिससे इस महान् प्राचीन धर्म की पूर्ण रूप में प्राप्त हो जाती है। जो हिन्दू-धर्म प्रेमी हैं तथा जो इस धर्म में मूलभूत सिद्धान्तों को जानने के इच्छुक हैं। उन्हें इस पुस्तक से बहुत ही लाभ होगा। यह अनुवाद हिन्दी के प्रसिद्ध लेखक पं. द्वारकानाथ जी तिवारी, बी.ए., एल.एल., बी, दुर्ग, सी.पी. ने करके दिया है। उनका यह अनुवाद भाषा तथा भाव दोनों ही की दृष्टि से सच्चा रहा है।
हिन्दू धर्म की सार्वभौमिकता
ऐतिहासिक युग के पूर्व के केवल तीन ही धर्म आज संसार में विद्यामान हैं- हिन्दू धर्म, पारसी धर्म और यहूदी धर्म। ये तीन धर्म अनेकानेक प्रचण्ड आघातों के पश्चात् भी लुप्त न होकर आज भी जीवित हैं, यह उनकी आन्तरिक शक्ति का प्रमाण है। पर जहाँ हम यह देखते हैं कि यहूदी धर्म ईसाई धर्म को नहीं पचा सका, वरन् अपनी सर्वविजयी सन्तान-ईसाई धर्म-द्वारा अपने जन्म स्थान से निर्वासित कर दिया गया, और यह है कि केवल मुट्ठी-भर पारसी ही अपने महान् धर्म की गाथा गाने के लिये अब अवशेष हैं- वहाँ भारत में एक के बाद एक अनेकों धर्म-पन्थों का उद्भव हुआ और वे पन्थ वेदप्रणीत धर्म को जड़ से हिलाते- से प्रतीत हुये; पर भयंकर भूकम्प के समय समुद्री किनारे की जलतरंगों के समान यह धर्म कुछ समय के लिये इसीलिए पीछे हट गया कि तत्पश्चात् हजार गुना अधिक बलशाली होकर सम्मुखस्थ सब को डुबानेवाली बाढ़ के रूप में लौट आये; और जब यह सारा कोलाहल शान्त हो गया, तब सारे धर्म-सम्प्रदाय अपनी जन्मदात्री मूल हिन्दू धर्म की विराट काया द्वारा आत्मसात् कर लिये गये, पचा लिये गये। आधुनिक विज्ञान के मानवीय आविष्कार जिसकी केवल प्रतिध्वनि मात्र हैं, ऐसे वेदान्तों के अत्युच्च आध्यात्मिक भाव से लेकर सामान्य मूर्तिपूजा एवं तदानुषंगिक अनेक पौराणिक दन्त-कथाओं, और इतना ही नहीं बल्कि बौद्धों के अज्ञेयवाद तथा जैनों के निरीश्वरवाद-इनमें से प्रत्येक के लिए हिन्दू धर्म में स्थान है। [1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिन्दू धर्म (हिंदी) भारतीय साहित्य संग्रह। अभिगमन तिथि: 19 जनवरी, 2014।
बाहरी कड़ियाँ
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