आर्यावर्त का शाब्दिक अर्थ है- 'आर्यो आवर्तन्तेऽत्र' अर्थात् 'आर्य जहाँ सम्यक प्रकार से बसते हैं।' आर्यावर्त का दूसरा अर्थ है- 'पुण्यभूमि'। मनुस्मृति[1] में आर्यावर्त की परिभाषा इस प्रकार दी हुई है-
आसमुद्रात्तु वै पूर्वादासमुद्रात्तु पश्चिमात्।
तयोरेवान्तरं गिर्योरार्यावर्त विदुर्बुधा: ॥[2]
- मेधातिथि मनुस्मृति के उपर्युक्त श्लोक का भाष्य करते हुए लिखते हैं:
"आर्या आवर्तन्ते तत्र पुन: पुनरूद्भवन्ति।
आक्रम्याक्रम्यापि न चिरं तत्र म्लेच्छा: स्थातारो भवन्ति।"[3]
- प्राचीन संस्कृत साहित्य में आर्यावर्त नाम से उत्तर भारत के उस भाग को अभिहित किया जाता था जो पूर्व समुद्र से पश्चिम समुद्र तक और हिमालय से विंध्याचल तक विस्तृत है।[4]
- अच्युत आर्यावर्त के राजाओं में से एक हैं।
शाब्दिक अर्थ
इसका शाब्दिक अर्थ है- जहां आर्य निवास करते हैं। प्राचीन वांड्मय में इस स्थान के बारे में विभिन्न मत हैं।
- ऋग्वेद इसे 'सप्तसिंधु प्रदेश' बताता है।
- उपनिषद काल में यह काशी और विदेह जनपदों तक फैल गया था।
- मनुस्मृति में इसकी परिभाषा देते हुए कहा गया है कि पूर्व में समुद्र तट, पश्चिम में समुद्र तट, उत्तर में हिमालय से दक्षिण में विंध्याचल तक के प्रदेश को विद्वान् आर्यावर्त कहते हैं।
- पतंजलि के मत से गंगा और यमुना के मध्य का भू-भाग आर्यावर्त है। इन कथनों से विदित होता है कि उस समय उत्तर भारत के सभी जनपद इसमें सम्मिलित थे और आर्य संस्कृति का विस्तार इतना ही था। पुराणों का समय आते-आते यह देशव्यापी हो गई और भारतवर्ष और आर्यावर्त पर्यायवाची माने जाने लगे।
मध्यकालीन इतिहास में
- भारत के मध्यकालीन इतिहास में उत्तर भारत के लिए 'आर्यावर्त' शब्द का प्रयोग मिलता है। मनुस्मृति में आर्यावर्त की सीमाओं का निर्देश करते हुए उत्तर भारत में हिमालय, दक्षिण में विन्ध्याचल पर्वत तथा पूर्व और पश्चिम में समुद्रतटों तक उसका विस्तार बताया गया है।
- आर्यावर्त के लिए अन्य अन्य पाँच भौगोलिक नामों का भी उल्लेख मिलता है-
- उदीची (उत्तर)
- प्रतीची (पश्चिम)
- प्राची (पूर्व)
- दक्षिण
- मध्य
आर्यावर्त का मध्य भाग ही हिन्दी भाषा और साहित्य का उद्गम एवं विकास स्थल मध्यदेश कहलाता है। 12 वीं शती तक के साहित्य में इस नाम का निरन्तर प्रयोग हुआ है। तत्पश्चात् इसका प्रयोग कम होता गया। विभिन्न युगों में आर्य संस्कृति के विस्तार एवं विकास के साथ आर्यावर्त की भी सीमाएँ बदलती रहीं हैं[5]
आजकल यह समझा जाता है कि इसके उत्तर में हिमालय श्रृंखला, दक्षिण में विन्ध्यमेखला, पूर्व में पूर्वसागर (वंग आखात) और पश्चिम में पश्चिम पयोधि (अरब सागर) है। उत्तर भारत के प्राय: सभी जनपद इसमें सम्मिलित हैं। परन्तु कुछ विद्वानों के विचार में हिमालय का अर्थ है पूरी हिमालय श्रृखंला, जो प्रशान्त महासागर से भूमध्य महासागर तक फैली हुई है और जिसके दक्षिण में सम्पूर्ण पश्चिमी एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया के प्रदेश सम्मिलित थे। इन प्रदेशों में सामी और किरात प्रजाति बाद में आकर बस गयी।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मनुस्मृति 2.22
- ↑ [पूर्व में समुद्र तक और पश्चिम में समुद्र तक, (उत्तर दक्षिण में हिमालय, विन्ध्याचल) दोनों पर्वतों के बीच अन्तराल (प्रदेश) को विद्वान् आर्यावर्त कहते हैं।]
- ↑ आर्य वहाँ बसते हैं, पुन: पुन: उन्नति को प्राप्त होते हैं। कई बार आक्रमण करके भी म्लेच्छ (विदेशी) स्थिर रूप से वहाँ नहीं बस पाते।
- ↑ आसमुद्रात्तु वै पूर्वादासमुद्राच्च पश्चिमात् तयोरेवान्तरंगिर्यो: (हिमवतविन्ध्यों:) आर्यावर्त विदुर्बुधा:'- मनुस्मृति 2,22
- ↑ 'स्कन्दगुप्त', पृ. 70 [सहायक ग्रन्थ-मध्य देश: डॉ. धीरेन्द्र वर्मा।] ----रा0कु0