बी. पी. मंडल
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पूरा नाम | बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल |
जन्म | 25 अगस्त, 1918 |
जन्म भूमि | ज़िला मधेपुरा, बिहार |
मृत्यु | 13 अप्रॅल, 1982 |
पति/पत्नी | सीता मंडल |
संतान | सात (7) |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | राजनीतिज्ञ |
पार्टी | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
पद | मुख्यमंत्री, बिहार- 1 फ़रवरी 1968 से 2 मार्च 1968 तक |
संबंधित लेख | मुख्यमंत्री, बिहार के मुख्यमंत्री |
अन्य जानकारी | बी. पी. मंडल को दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष के रूप में की गई सिफ़ारिशों के कारण ही इतिहास में नायक, खासकर पिछड़ा वर्ग के एक बड़े आइकन के रूप में याद किया जाता है। |
बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल (अंग्रेज़ी: Bindheshwari Prasad Mandal, जन्म- 25 अगस्त, 1918, ज़िला मधेपुरा, बिहार; मृत्यु- 13 अप्रॅल, 1982) भारतीय राजनीतिक तथा बिहार के मुख्यमंत्री थे। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता थे, जो 1 फ़रवरी 1968 से 2 मार्च 1968 तक मुख्यमंत्री रहे। बी. पी. मंडल को दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष के रूप में की गई सिफ़ारिशों के कारण ही इतिहास में नायक, खासकर पिछड़ा वर्ग के एक बड़े आइकन के रूप में याद किया जाता है।
परिचय
बी. पी. मंडल का जब जन्म हुआ, तब उनके पिता रास बिहारी लाल मंडल बीमार थे और बनारस में आखिरी सांसें गिन रहे थे। जन्म के अगले ही दिन बी. पी. मंडल के सिर से पिता का साया उठ गया। मृत्यु के समय रास बिहारी लाल मंडल की उम्र सिर्फ़ 54 साल थी। बी. पी. मंडल का ताल्लुक बिहार के मधेपुरा ज़िले के मुरहो गांव के एक जमींदार परिवार से था। मधेपुरा से पंद्रह किलोमीटर की दूरी पर बसा है मुरहो। इसी गांव के किराई मुसहर साल 1952 में मुसहर जाति से चुने जाने वाले पहले सांसद थे।
मुसहर अभी भी बिहार की सबसे वंचित जातियों में से एक है। किराई मुसहर से जुड़ी मुरहो की पहचान अब लगभग भुला दी गई है। अब ये गांव बी. पी. मंडल के गांव के रूप में ही जाना जाता है। राष्ट्रीय राजमार्ग-107 से नीचे उतरकर मुरहो की ओर बढ़ते ही बी. पी. मंडल के नाम का बड़ा सा कंक्रीट का तोरण द्वार है। गांव में उनकी समाधि भी है। बी. पी. मंडल की शुरुआती पढ़ाई मुरहो और मधेपुरा में हुई। हाई स्कूल की पढ़ाई दरभंगा स्थित राज हाई स्कूल से की। स्कूल से ही उन्होंने पिछड़ों के हक़ में आवाज़ उठाना शुरू कर दिया था।[1]
राजनीतिक शुरुआत
राज हाईस्कूल में बी. पी. मंडल हॉस्टल में रहते थे। वहां पहले अगड़ी कही जाने वाली जातियों के लड़कों को खाना मिलता उसके बाद ही अन्य छात्रों को खाना दिया जाता था। उस स्कूल में फॉरवर्ड बेंच पर बैठते थे और बैकवर्ड नीचे। उन्होंने इन दोनों बातों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई और पिछड़ों को भी बराबरी का हक मिला। स्कूल के बाद की पढ़ाई उन्होंने बिहार की राजधानी के पटना कॉलेज से की। पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने कुछ दिन तक भागलपुर में मजिस्ट्रेट के रूप में भी सेवाएं दीं और साल 1952 में भारत में हुए पहले आम चुनाव में वे मधेपुरा से कांग्रेस के टिकट पर बिहार विधानसभा के सदस्य बने। बी. पी. मंडल को राजनीति विरासत में भी मिली थी। उनके पिता कांग्रेस के संस्थापक सदस्यों में से एक थे।
स्वास्थ्य मंत्री
बी. पी. मंडल साल 1967 में लोकसभा के लिए चुने गए। हालांकि तब तक वे कांग्रेस छोड़कर राम मनोहर लोहिया की अगुवाई वाली संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के प्रमुख नेता बन चुके थे। 1967 के चुनाव के बाद बिहार में महामाया प्रसाद सिन्हा के नेतृत्व में पहली गैर कांग्रेस सरकार बनी जिसमें बी. पी. मंडल स्वास्थ्य मंत्री बने। ये एक गठबंधन सरकार थी और इसके अपने अंतर्विरोध थे। ये सरकार करीब 11 महीने ही टिक पाई।
मुख्यमंत्री
इस बीच बी. पी. मंडल के भी अपने दल से गंभीर मतभेद हो गए। उन्होंने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से अलग होकर शोषित दल बनाया और फिर अपने पुराने दल कांग्रेस के ही समर्थन से 1 फ़रवरी, 1968 को बिहार के मुख्यमंत्री बने। मगर इस पद पर वे महज पचास दिन तक ही रहे। उनके मुख्यमंत्री बनने के पहले केवल पांच दिन के लिए बिहार के कार्यवाहक मुख्यमंत्री रहे बी. पी. मंडल के मित्र सतीश प्रसाद सिंह उस दौर के घटनाक्रम को याद करते हुए कहते हैं, "मुख्यमंत्री बनने के पहले उनका बिहार विधान परिषद का सदस्य बनना ज़रूरी था। एक एमएलसी परमानंद सहाय ने इस्तीफ़ा दिया। इसके बाद कैबिनेट की मीटिंग बुलाकर मैंने मंडल जी को एमएलसी बनाने की सिफ़ारिश की और फिर अगले दिन विधान परिषद का सत्र बुलाकर उनको शपथ भी दिला दी। इस तरह उनके मुख्यमंत्री बनने का रास्ता साफ़ कर दिया।"[1]
मंडल आयोग
मंडल आयोग का गठन मोरारजी देसाई की सरकार के समय 1 जनवरी, 1979 को हुआ और इस आयोग ने इंदिरा गांधी के कार्यकाल के दौरान 31 दिसंबर 1980 को रिपोर्ट सौंपी। उनके मित्र रहे बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री सतीश प्रसाद सिंह बताते हैं, "1980 के आम चुनाव में मैं कांग्रेस पार्टी के टिकट पर सांसद बना था। सरकार बदलने के बाद बी. पी. मंडल के कहने पर मैंने आयोग का कार्यकाल बढ़ाने की सिफारिश तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से की थी। जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया।" बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र कहते हैं कि उन्हें छोटे भाई के रूप में बी. पी. मंडल का स्नेह मिला। बी. पी. मंडल ने अपनी रिपोर्ट में इंदिरा गांधी की तारीफ भी की है।
मंडल आयोग की सिफारिशों के आधार पर पहले 1990 में पिछड़ा वर्ग को नौकरियों में आरक्षण मिला और बाद में मनमोहन सिंह की सरकार के कार्यकाल के दौरान साल 2006 में उच्च शिक्षा में ये व्यवस्था लागू की गई। मंडल आयोग की सिफ़ारिशें लागू होने, ख़ास कर नौकरी संबंधी सिफ़ारिश के लागू होने के बाद पिछड़ा वर्ग से आने वाली एक बड़ी आबादी अब जवान हो चुकी है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 बीपी मंडल जिनकी सिफ़ारिशों ने भारत की राजनीति बदल दी (हिंदी) bbc.com। अभिगमन तिथि: 22 सितंबर, 2020।
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