बेणेश्वर मेला (अंग्रेज़ी: Baneshwar Fair) राजस्थान के डूंगरपुर में आयोजित होता है। 'आदिवासियों का कुम्भ' नाम से प्रसिद्ध बेणेश्वर मेला भीलों का सबसे बड़ा मेला है जो माघ माह की पूर्णिमा को डूंगरपुर जिले में सोम, माही एवं जाखम नदियों के त्रिवेणी संगम पर भरता है।
मान्यता
बेणेश्वर धाम पवित्र स्थान सोम और माही नदी के पवित्र संगम पर स्थित है। इस धर्मस्थल और यहां आयोजित होने वाले वार्षिक मेले को लेकर बड़ी धार्मिक मान्यता है। हर साल करीब पांच लाख से ज्यादा लोग इस मेले में शामिल होते है। इस मेले की खासियत आदिवासियों की मौजूदगी है। राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और गुजरात से आदिवासी यहां बड़ी संख्या में पहुंचते है। मान्याता है कि यहां भगवान विष्णु के अवतार मावजी ने तपस्या की थी। मावजी आदिवासियों के पूजनीय है। यही वजह है कि वे अपने पूर्वजों की अस्थियों का विसर्जन करने से लेकर बच्चों का मुंडन, जडूला, जात आदि संस्कार बेणेश्वर धाम में आकर करते हैं।
आयोजन समय
आमतौर पर यह मेला फ़रवरी-मार्च में आयोजित होता है। माघ में शुक्ल पक्ष की एकादशी को मेले का आगाज होता है। पूर्णिमा को मुख्य मेला होता है। माघ पूर्णिमा के दिन इस संगम पर स्नान करने से कई गुणा पुण्य मिलता है। इस वजह से पूर्णिमा के दिन यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु जुटते है और पवित्र नदियों के संगम में स्नान करते है।
पर्यटकों के लिये ख़ास
मेले का मुख्य आकर्षण आदिवासी हैं। इस दौरान आदिवासियों की संस्कृति यहां नजर आती है। इसे देखने के लिये बड़ी संख्या में ट्यूरिस्ट यहां आते है। ट्रेवल और ट्यूर एजेंसियों ने इस मेले को ट्यूर पैकेज में शामिल करना शुरू कर दिया है। इसे आदिवासियों का कुंभ, वागड़ प्रयाग या वागड़ वृन्दावन भी कहा जाता है। यहां प्राचीनतम बेणेश्वर शिवालय, राधा-कृष्ण मंदिर, वेदमाता, गायत्री, जगत पिता ब्रह्मा, वाल्मीकी के प्रसिद्ध मंदिर हैं। मेले में परंपरागत भजन गायकी प्रसिद्ध है। तानपूरे, तम्बूरे, कौण्डियों, ढोल, मंजीरे, हारमोनियम आदि की संगत पर स्वर लहरियां मेले में जगह-जगह सुनाई देती हैं।
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