विजय मंदिर विदिशा, मध्य प्रदेश में स्थित है। किले की सीमा के अंदर पश्चिम की तरफ अवस्थित इस मंदिर के नाम पर ही विदिशा का नाम भेलसा पड़ा। सर्वप्रथम इसका उल्लेख सन् 1024 में महमूद ग़ज़नी के साथ आये विद्धान अलबरूनी ने किया है। अपने समय में यह देश के विशालतम मंदिरों में से एक माना जाता था। साहित्यिक साक्ष्यों के अनुसार यह आधा मील लंबा-चौड़ा था तथा इसकी ऊँचाई 105 गज थी, जिससे इसके कलश दूर से ही दिखते थे। सालों भर यात्रियों का मेला लगा रहता था तथा दिन- रात पूजा आरती होती रहती थी।
निर्माण
कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण चालुक्य वंशी राजा कृष्ण के प्रधानमंत्री वाचस्पति ने अपनी विदिशा विजय के उपरांत किया। नृपति के सूर्यवंशी होने के कारण भेल्लिस्वामिन (सूर्य) का मंदिर बनवाया गया। इस भेल्लिस्वामिन नाम से ही इस स्थान का नाम पहले भेलसानी और कालांतर में भेलसा पड़ा। अपनी विशालता, प्रभाव व प्रसिद्धि के कारण यह मंदिर हमेशा से मुस्लिम शासकों के आँखों का कांटा बना रहा। कई बार इसे लूटा गया और तोड़ा गया और वहाँ के श्रद्धालुगणों ने हर बार उसका पुननिर्माण कर पूजनीय बना डाला।[1]
मंदिर की वास्तुकला तथा मूर्तियों की बनावट यह संकेत देते हैं कि 10वीं-11वीं सदी में शासकों ने इस मंदिर का पुननिर्माण किया था। मुस्लिम शासकों के आक्रमणों की शुरुआत परमार काल से ही आरंभ हो गयी थी। पहला आक्रमण सन् 1233-34 ई. में दिल्ली के गुलाम वंश के शासक इल्तुतमिश ने किया। उसने पुरे नगर में लूट-खसोट की। सन् 1250 ई. इसका पुननिर्माण किया गया, लेकिन सन् 1290 ई. में पुनः अलाउद्दीन खिलजी के मंत्री मलिक काफ़ूर ने इस पर आक्रमण कर अपार लूटपाट की । वहाँ की 8 फुट ऊँची अष्टधातु की प्रतिमा को दिल्ली स्थित बदायूँ दरवाजे की मस्जिद की सीढियों में जड़ दिया गया।
सन् 1459-60 ई. में मांडू के शासक महमूद खिलजी ने इस मंदिर को तो लूटा ही, साथ- साथ भेलसा नगर व लोह्याद्रि पर्वत के अन्य मंदिरों को भी अपना निशाना बनाया। इसके बाद 1532 ई. में गुजरात के शासक बहादुरशाह ने मंदिर को पुनर्विनाश किया। अंत मे औरंगजेब ने 1682 ई. में इसे तोपों से उड़वा दिया। शिखरों को तोड़ डाला गया। मंदिर के अष्टकोणी भाग को चुनवाकर चतुष्कोणी बना दिया। अवशेष पत्थरों का प्रयोग कर दो मीनारें बनवा दी तथा उसे एक मस्जिद का रुप दे दिया। मंदिर के पार्श्व भाग में तोप के गोलों को स्पष्ट निशान है। औरंगजेब के मृत्योपरांत वहाँ की टूटी- फूटी मूर्तियों को फिर से पूजा जाने लगा। सन् 1760 ई. में पेशवा ने इसका मस्जिद स्वरूप नष्ट कर दिया।
शिलालेख
ज्यादातर शिलालेख आक्रमणकारियों ने नष्ट कर दिये हैं। स्तंभ पर मिला एक संस्कृत का अभिलेख यह स्पष्ट करता है कि यह मंदिर चर्चिका देवी का था। संभवतः इसी देवी का दूसरा नाम विजया था, जिसके नाम से इसे विजय मंदिर के रूप से जाना जाता रहा। यह नाम बीजा मंडल के रूप में आज भी प्रसिद्ध है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ विजय मंदिर (हिंदी) ignca.gov.in। अभिगमन तिथि: 07 अगस्त, 2020।