चिमनभाई पटेल किसी राजनीतिक परिवार की विरासत को लेकर मुख्यमंत्री पद तक नहीं पहुंचे थे। वह किसान के लड़के थे। उन्होंने यह मुकाम हासिल करने के लिए बहुत संघर्ष किया था।
उनका गांव चिकोद्रा वड़ोदरा की शंखेडा तहसील में पड़ता है। वह अपने कॉलेज के दिनों में ही छात्र राजनीति में उतर गए थे।
1950 में चिमनभाई पटेल वड़ोदरा की ‘महाराजा सयाजीराव यूनिवर्सिटी’ के प्रेसिडेंट चुने गए। यहां से उनके राजनीतिक सफ़र की शुरुआत हुई।
चिमनभाई पटेल के सियासी कॅरियर में बुरा दौर आया 1974 के बाद। कांग्रेस छोड़कर उन्होंने नई पार्टी बनाई। लेकिन बात बनी नहीं। इसके बाद वह जनता पार्टी के विभिन्न धड़ों की यात्रा करते हुए जनता दल में पहुंचे। अंत में इसी पार्टी के बैनर पर मुख्यमंत्री बने।
वह सियासत में उलटबांसी को अंजाम देने वाले शख्स थे। जिन चिमनभाई के खिलाफ 1974 में भ्रष्ट्राचार विरोधी नवनिर्माण आंदोलन खड़ा हुआ था, वह 1974 में कांग्रेस से अलग हुए। अपनी नई पार्टी बनाई 'किसान मजदूर लोक पक्ष'।
1977 में आपातकाल खत्म होने के बाद वह गुजरात में जनता पार्टी के झंडाबरदार बन चुके थे। वहां से जनता दल में गए।
1990 में जनता दल के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली। 1991 तक कांग्रेस में जा चुके थे।