हरीश चंद्र वर्मा

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हरीश चंद्र वर्मा

हरीश चंद्र वर्मा (अंग्रेज़ी: Harish Chandra Verma, जन्म- 8 अप्रॅल, 1952, दरभंगा, बिहार) भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर के भौतिकी विभाग के प्रोफेसर रहे हैं। वह अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं। इससे पहले वह पटना विश्वविद्यालय के विज्ञान कॉलेज के लेक्चरर रह चुके थे। न्यूक्लियर फ़िज़िक्स उनका मुख्य विषय है और इससे जुड़े उनके क़रीब 150 शोधपत्र, कई प्रतिष्ठित जर्नल्स में प्रकाशित हो चुके हैं। हरीश चंद्र वर्मा को उनकी उपलब्धियों के लिये वर्ष 2020 में 'पद्म श्री' से सम्मानित किया गया है।

परिचय

8 अप्रैल, 1952 को बिहार के दरभंगा में जन्मे डॉ. हरीश चंद्र वर्मा का ज्यादातर समय पटना में रहकर बीता। उनकी पढ़ाई यहीं हुई। एच.सी. वर्मा ने सीधे कक्षा 6 से अपनी औपचारिक शिक्षा प्रारंभ से की। उनके पिता समस्तीपुर के एक स्कूल में टीचर थे।[1]

पढ़ाई और ठेकुआ

इंटरनेट पर वायरल एक क्लिप में डॉ. वर्मा बताते हैं कि पढ़ने के प्रति उनकी रुचि एक रोचक घटना ने बदली। उन्होंने बताया था कि- "मेरी मां ने कहा था कि मुझे हर घंटे के हिसाब से दो ठेकुआ (छठ पूजा का प्रसाद) खाने को मिलेंगे। शर्त इतनी है कि कॉपी, क़लम और क़िताब लेकर बैठना है। पढ़ने न पढ़ने की कोई शर्त नहीं। बाल मन को लगा कि अगर शर्त में पढ़ना शामिल नहीं तो अच्छा है और बैठ गए एक कमरे में। 5-10 मिनट बीतते न बीतते, बोर होने लगे। सोचा कि चलो क़िताब के पन्ने ही उलट पलट लिए जाएं। इस दौरान महसूस हुआ कि पढ़ना इतना भी बुरा नहीं।"

हरीश चंद्र वर्मा ने बताया था कि ये पहली बार था जब वो हर क़िताब में लिखी हर चीज़ को बड़ी ध्यान से पढ़ रहे थे। उधर ठेकुए का मीटर भी चालू था- 2 ठेकुए प्रति घंटे। उस महीने ख़ूब ठेकुए तो कमाए ही, साथ ही परीक्षा में भी अच्छे नम्बर ले आए। इसके बाद बेशक मोटिवेशन हट चुका था, लेकिन "शुरू मजबूरी में किया था अब मज़ा आने लगा था।" बस उस के बाद हरीश चंद्र वर्मा पढ़ाई के मामले में नित नई ऊंचाइयों को छूता चला गया।

हरीश चंद्र वर्मा ने इंटर पूर्ण करने के बाद आई.आई.टी. या किसी इंजीनियरिंग इन्स्टीट्यूट जाने से बेहतर बी.एस.सी. करना उचित समझा और पटना साइंस कॉलेज के टॉप थ्री टॉपर्स में से एक रहे। फिर आई.आई.टी., कानपुर से एम.एससी. और पीएच.डी पूरी की।[1]

शिक्षण कार्य

हरीश चंद्र वर्मा, राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द से पद्म श्री ग्रहण करते हुए

सन 1979 में, जब इनके अध्यापक सोच रहे थे कि इस विलक्षण छात्र का भी प्रतिभा पलायन निश्चित है, तब उन्होंने शिक्षक बनने की ठानी और वापस उसी कॉलेज पढ़ाने पहुंच गए, जहां से बी.एससी. की थी। 15 साल तक वहां पढ़ाया और फिर 1994 में आई.आई.टी., कानपुर चले गये। 30 जून, 2017, अपने अवकाश ग्रहण तक वहीं पढ़ाते रहे। वर्तमान में हरीश चंद्र वर्मा इंडियन एसोसिएशन ऑफ फ़िज़िक्स टीचर्स की कार्यकारी समिति के सदस्य हैं, जो स्कूलों और कॉलेजों में भौतिकी शिक्षा के लिए काम करता है।

पुस्तक 'कॉन्सेप्ट्स ऑ फ फ़िज़िक्स'

हरीश चंद्र वर्मा देश भर में अपनी पुस्तक ‘कॉन्सेप्ट्स ऑफ फ़िज़िक्स’ के लिए प्रसिद्ध हैं, जिसके बारे में राष्ट्रपति ने भी बात की। ‘कॉन्सेप्ट्स ऑफ फ़िज़िक्स’ के पहले खंड में यांत्रिकी, तरंगें और ऑप्टिक्स शामिल हैं और दूसरे खंड में थर्मोडायनेमिक्स, इलेक्ट्रिसिटी और मॉडर्न फ़िज़िक्स जैसे एडवांस चैप्टर्स हैं। इस पुस्तक को लिखने का विचार प्रो. हरीश चंद्र वर्मा को तब आया जब वह पटना में पढ़ा रहे थे। तब ज़्यादातर अंग्रेज़ी या अन्य भाषाओं से अंग्रेज़ी में अनुवाद की गई पुस्तकें ही पढ़ाई जाती थीं।[1]

बात सिर्फ़ अंग्रेज़ी भाषा की नहीं थी, यह भी थी कि इन क़िताबों में संदर्भ उस देश और काल के हिसाब से थे, जहां की ये पुस्तकें थीं। गांव और छोटे शहरों से आने वाले छात्र फ़िज़िक्स की अवधारणा तो क्या समझते, दुरूह भाषा में ही उलझ कर रह जाते थे। इन परेशानियों से छात्रों को मुक्ति दिलाने के लिए हरीश चंद्र वर्मा ने 8 साल की कड़ी मेहनत के बाद ‘कॉन्सेप्ट्स ऑफ फ़िज़िक्स’ का पहला संस्करण छपवाया। 'एंड रेस्ट इज द हिस्ट्री'। हरीश चंद्र वर्मा कहते हैं कि जब वो दशकों बाद इस किताब को देखते हैं तो लगता है अब भी इसमें बहुत सी कमियां हैं। कमियां तथ्य नहीं, ‘कहन’ या ‘फ़ॉर्मेट’ की हैं। ये किताब उच्च शिक्षा के लिए नहीं, बल्कि सबके लिए फ़िज़िक्स को आसान बनाने के लिए लिखी गई थी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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