प्रियरंजन दासमुंशी

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प्रियरंजन दासमुंशी
प्रियरंजन दासमुंशी
प्रियरंजन दासमुंशी
पूरा नाम प्रियरंजन दासमुंशी
जन्म 13 नवम्बर, 1945
जन्म भूमि पश्चिम बंगाल
मृत्यु 20 नवम्बर, 2017
पति/पत्नी दीपा दासमुंशी
संतान एक पुत्र
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि राजनीतिज्ञ
पार्टी कांग्रेस
कार्य काल लोकसभा सांसद - 1984 से 1989; 1996 से 1998; 1999 और 2004

सूचना और प्रसारण मंत्री - 28 मई, 2004 से 12 अक्टूबर, 2008

अन्य जानकारी प्रियरंजन दासमुंशी 1985 में वे पहली बार केंद्र में मंत्री बने। उनकी खेलों में भी खासी दिलचस्पी रही, वे करीब 20 साल तक 'ऑल इंडिया फ़ुटबॉल फ़ेडरेशन' के अध्यक्ष भी रहे।

प्रियरंजन दासमुंशी (अंग्रेज़ी: Priyaranjan Dasmunsi, जन्म- 13 नवम्बर, 1945; मृत्यु- 20 नवम्बर, 2017) कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तथा पूर्व ऑल इंडिया फ़ुटबॉल फ़ेडरेशन के अध्यक्ष थे। वे भारत की 14वीं लोकसभा में सांसद थे। पश्चिम बंगाल की रायगंज लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से वे सांसद थे। प्रियरंजन दासमुंशी भारत के पूर्व सूचना और प्रसारण मंत्री रह चुके थे।

परिचय

प्रियरंजन दासमुंशी का जन्म 13 नवम्बर, 1945 को पश्चिम बंगाल में हुआ था। वह पहली बार 1971 में दक्षिणी कोलकाता लोकसभा सीट से सांसद चुने गए थे। 1985 में वे पहली बार राजीव गांधी के मंत्रिमंडल में शामिल हुए थे। प्रियरंजन दासमुंशी अंतिम बार वर्ष 2004 में रायगंज सीट से ही लोकसभा चुनाव लड़े और जीते थे। प्रियरंजन दासमुंशी की खेलों में बहुत रूची थी। वे 20 साल तक ऑल इंडिया फ़ुटबॉल फ़ेडरेशन के प्रेसिडेंट रहे। उनके कार्यकाल के दौरान ही नेशनल फ़ुटबॉल लीग की शुरूआत 1996 में हुई थी। इसमें देश के चोटी के फ़ुटबॉल क्लबों ने हिस्सा लेना शुरू किया था। राष्ट्रीय फ़ुटबॉल लीग को अब आईलीग के नाम से जाना जाता है।

राजनीतिक सफ़र

  • प्रियरंजन दासमुंशी 25 साल की उम्र में 1970 में पश्चिम बंगाल यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष बन गए थे। अगले साल 1971 में वे दक्षिण कलकत्ता सीट जीतकर संसद में पहुंच गए। इसके बाद उन्‍होंने साल 1984 में हावड़ा लोकसभा सीट जीती।
  • 1985 में वे पहली बार केंद्र में मंत्री बने।
  • दासमुंशी को चुनावों में हार का समाना भी करना पड़ा। उन्‍हें दो बार 1989 और 1991 में हावड़ा सीट गंवानी पड़ी थी। लेकिन फिर वह लगातार दो बार 1999 और 2004 में रायगंज सीट पर कब्‍जा कर लोकसभा पहुंच गए।
  • प्रियरंजन दासमुंशी की खेलों में भी खासी दिलचस्पी रही, वे करीब 20 साल तक 'ऑल इंडिया फ़ुटबॉल फ़ेडरेशन' के अध्यक्ष भी रहे। पश्चिम बंगाल में फ़ुटबॉल के प्रति आकर्षण क्रिकेट से किसी भी लिहाज से कम नहीं है।

विवादित फ़ैसले

साल 2004 में मनमोहन सिंह की सरकार में प्रियरंजन दासमुंशी न सिर्फ़ सूचना प्रसारण मंत्री थे बल्कि संसदीय कार्य मंत्री भी रहे। सूचना प्रसारण मंत्री के तौर पर वे काफ़ी चर्चा में रहते थे। कभी उन्‍होंने एएक्सएन और फैशन टीवी पर प्रतिबंध लगाया तो कभी खेलों के प्रसारण का अध‍िकार दूरदर्शन को दिला दिया। यही नहीं वह मीडिया पर भी नियंत्रण करना चाहते थे और इस संबंध में क़ानून लाने की तैयारी में थे, लेकिन फिर वह बीमार हो गए। अपने इन फ़ैसलों की वजह से उन्‍हें काफ़ी आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा था।

निजी जीवन

प्रियरंजन दासमुंशी ने लंबी दोस्‍ती के बाद कोलकाता की समाज सेविका दीपा दासमुंशी के साथ साल 1994 में विवाह रचाया था। दोनों का एक बेटा प्रियदीप दासमुंशी है। एक बार बीबीसी को दिए साक्षात्कार में उन्‍होंने कहा था, "दोस्त तो मेरे कितने ही हैं, लेकिन सबसे बड़ी दोस्त हैं मेरी बीवी। एक लंबी दोस्ती के बाद मेरे साथ उनकी शादी हुई, लेकिन दोस्त तो और भी बहुत हैं। दोस्ती के मामले में मैं पार्टी का विचार नहीं करता हूं।" यही वजह थी कि जब केंद्र की सत्ता से कांग्रेस बेदख़ल हुई और भारतीय जनता पार्टी ने सत्ता संभाली तो यह संदेह कई ओर से ज़ाहिर किया जा रहा था कि दासमुंशी के इलाज के लिए सरकार की ओर से दिया जा रहा पैसा रोका जा सकता था। लेकिन उस समय के केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने साफ़ कर दिया था कि सरकार का ऐसा कोई इरादा नहीं है और दासमुंशी की चिकित्सा सरकारी पैसे से जारी रहेगी। हर्षवर्धन ने उस वक्त कहा था कि दासमुंशी ने समाज के लिए काफ़ी काम किया है और अब यह समाज की बारी है कि वह उनके लिए कुछ करे। विपक्षी नेताओं के मुंह से इस तरह की बात अपने आप में किसी नेता की शख़्सियत का अंदाज़ा देती है।[1]

मृत्यु

पूर्व केंद्रीय मंत्री रहे प्रियरंजन दासमुंशी का निधन 20 नवम्बर, 2017 को हुआ। दिल के दौरे के बाद उन्हें एम्स में भर्ती करवाया गया था। इसके बाद उनकी लोगों को पहचानने की क्षमता और बोलने की शक्ति खत्म हो गई थी। इसके बाद वह कोमा में चले गए। तब से वह अपोलो अस्पताल में कोमा में थे। लकवे के बाद उनके मस्तिष्क में रक्त की आपूर्ति बंद हो गई थी। हालांकि, शरीर के बाकी हिस्से को बहुत ज्यादा नुकसान नहीं हुआ था। लेकिन, चूंकि मस्तिष्क ही शरीर के बाकी अंगों को नियंत्रित करता है, लिहाजा दासमुंशी 9 साल तक बेड पर ही रहे। सांस लेने के लिए दासमुंशी के गले में एक ट्यूब डाली गई थी। इसके अलावा पेट में एक नली डाली गई थी, जिसके जरिए दासमुंशी को तरल भोज्य दिया जाता था। वे अपने आसपास के लोगों को पहचान नहीं पाते थे। 2014 में जब एनडीए सत्ता में आई तो केंद्र ने कहा कि सरकार दासमुंशी के इलाज का खर्च उठाना जारी रखेगी।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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