तारा चेरियन
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पूरा नाम | तारा चेरियन |
जन्म | मई, 1913 |
जन्म भूमि | मद्रास |
मृत्यु | 7 नवम्बर, 2000 |
पति/पत्नी | पी.वी चेरियन |
कर्म भूमि | भारत |
शिक्षा | स्नातक |
विद्यालय | वीमेन्ट्र क्रिश्चियन कॉलेज |
पुरस्कार-उपाधि | 'पद्म भूषण' (1967) |
प्रसिद्धि | समाज सेविका |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | तारा चेरियन के मन में विकलाँगों की सहायता करने का विषेय महत्त्व था। वह कहती थीं कि जो निरुपाय, असहाय, पराश्रित हैं, ऐसे अपंगों की सेवा मानवता की सबसे महान सेवा है। |
तारा चेरियन (अंग्रेज़ी: Tara Cherian, जन्म: मई, 1913, मद्रास; मृत्यु: 7 नवम्बर, 2000) भारत की समाज सेविका थीं। वह मद्रास की पहली महिला थीं, जो मेयर बनीं। मेयर के रूप में उन्होंने स्कूली बच्चों के लिये शिक्षा पद्धति में सरलता एवं सानुकूलता का समावेश कराया तथा उनके स्वास्थ्य के लिये दोपहर में पोषक तत्वों से पूर्ण स्वल्पाहार की व्यवस्था कराई, जिसके फलस्वरूप बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार हुआ। स्वास्थ्य में सुधार होने से बच्चों में पढ़ने की रुचि बढ़ने लगी, जिसको देखकर प्रायः सभी नागरिक अपने बच्चों को पाठशाला भेजने के लिये समुत्सुक होने लगे। तारा चेरियन के सेवाभाव को देखकर ही भारत सरकार ने उन्हें 1967 में पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया था।[1]
परिचय
तारा चेरियन का जन्म मई, 1913 को मद्रास (वर्तमान चेन्नई) में हुआ था। उन्होंने वीमेन्ट्र क्रिश्चियन कॉलेज से स्नातक किया था। उनका विवाह पी.वी चेरियन के साथ हुआ था, जो मद्रास के गवर्नर थे। चेरियन दम्पत्ति पाँच बच्चों के माता-पिता बने थे।
विद्यार्थी जीवन
तारा चेरियन विद्यार्थी जीवन में कभी भी किताबी कीड़ा बनकर नहीं रहीं, बल्कि कॉलेज के विविध कार्यक्रमों से लेकर खेल-कूद तक में भाग लेती थीं। इनका सदैव यह विश्वास रहा है कि जो अपने जीवन में कोई विशेष उन्नति करना चाहता है, अपने व्यक्तित्व को ठीक-ठीक विकसित करना चाहता है, तो उसे उपलब्ध कार्य-क्रमों में पूरे मन से भाग लेना चाहिए। अपने इसी विश्वास के आधार पर ये अपने कॉलेज की मूर्धन्य कार्यकर्त्री रहीं और अनेक बार मद्रास विश्व विद्यालय के सीनेट की सदस्या चुनी गईं। अपनी कुशाग्रता, तत्परता और निःसंकोचता से ये अपने कॉलेज की गौरव बनी रहीं। कॉलेज की प्रत्येक प्रतियोगिता में भाग लेना, प्रत्येक कार्यक्रम में सम्मिलित होना इन्होंने अपना एक नैतिक कर्त्तव्य बना लिया था। अनेक बार प्रतियोगिताओं में असफल होने पर जब कोई उनसे पूछता क्यों तारा, अब आगे की प्रतियोगिता के लिए क्या इरादा है? तो उनका केवल एक ही उत्तर रहता था कि प्रतियोगिता की हार-जीत से प्रभावित होने वाले व्यक्ति निर्बल-हृदय के होते हैं। मैं तो प्रत्येक प्रतियोगिता में बुद्धि-विकास के दृष्टिकोण से भाग लेती हूँ, किसी पुरस्कार के लोभ से नहीं।
समाज सेवा
तारा चेरियन के बच्चे जब कुछ बड़े हो गये तो इन्होंने सार्वजनिक कार्यों में अभिरुचि लेना प्रारम्भ किया। सबसे पहले अपनी विद्या, बुद्धि एवं अनुभव के विकास के लिये इन्होंने विदेश यात्रा की। जिसमें ये ब्रिटेन, बर्लिन और सान्फ्राँसिस्को में विशेष रूप से घूमी। अपनी विदेश-यात्रा के समय इन्होंने मनोरंजक स्थानों की अपेक्षा जन-सेवी संस्थाओं को अधिक महत्त्व दिया। मनोरंजक कार्यक्रमों में भाग लेने के बजाय इन्होंने समाज-सेवा के स्थलों और कार्य-विधियों का गम्भीरता के साथ अध्ययन किया। जिसका लाभ इन्होंने अपनी समाज-सेवाओं में उठाया। विदेशों से वापिस आने पर इनकी योग्यता का लाभ उठाने के लिये अनेक संस्थाओं ने इन्हें अपने में सम्मिलित करने के लिये आमन्त्रित किया। श्रीमती तारा चेरियन ने पहले ‘एग्मोर’ स्थित महिलाओं और बच्चों के अस्पताल के सलाहकार मण्डल की अध्यक्षा के रूप में पदार्पण किया। अपनी कार्यकुशलता से श्रीमती चेरियन ने संस्था में चार-चाँद लगा दिये। इनका कार्यक्रम अध्यक्ष के कार्यालय तक ही सीमित ही नहीं रहा, बल्कि ये अस्पताल में प्रत्येक स्त्री-बच्चे के पास स्वयं जातीं, उनका दुःख-सुख पूछतीं और यथासम्भव दूर करने का प्रयत्न करतीं। इन्होंने अस्पताल की कमियों को दूर किया और अपने उदाहरण से कार्यकर्त्ताओं तथा कर्मचारियों में सच्ची सेवा-भावना का जागरण किया। श्रीमती चेरियन की सहानुभूतिपूर्ण सेवा भावना का ही यह परिणाम था कि वे उक्त अस्पताल के सलाहकार-मण्डल की बीस वर्ष तक अध्यक्षा रहीं। श्रीमती तारा चेरियन के सेवा कार्यों से प्रभावित होकर मद्रास की जनता ने इन्हें नगरमहापालिका का अध्यक्ष मनोनीत किया था।
मेयर रूप में किये कार्य
श्रीमती तारा चेरियन ने महानगरपालिका का अध्यक्ष पद सँभालने के दिन से ही अपने को नगर-कल्याण के सेवा-कार्यों में स्वयं को डुबा दिया था। ये जब नगर का दौरा करतीं, गन्दी और ग़रीब बस्तियों को देखतीं, तो उनके सुधार की व्यवस्था करतीं और असहायों को सहानुभूति के साथ सहायता प्रदान करतीं। विकलाँगों की सहायता इनके कार्यक्रम का विशेष अंग था। यह कहती थीं कि जो निरुपाय, असहाय, पराश्रित हैं, ऐसे अपंगों की सेवा मानवता की सबसे महान् सेवा होती है। यह एक समाज-सुधार कार्य होने के साथ-साथ धार्मिक पुण्य भी है। श्रीमती तारा चेरियन विकलाँग सेवा के इस तथ्य से अनभिज्ञ नहीं थी। इन्होंने उनके लिये अनेक आश्रमों एवं कार्य-शालाओं की स्थापना का प्रयास किया, तथा उनकी आर्थिक तथा शारीरिक सहायता की व्यवस्था की। एक सुसंस्कृत, संभ्रान्त एवं सभ्य समाज की रचना के दृष्टिकोण से इन्होंने स्कूली बच्चों की ओर समुचित ध्यान दिया तथा उनकी शिक्षा पद्धति में सरलता एवं सानुकूलता का समावेश कराया। उनके स्वास्थ्य के लिये दोपहर में पोषक तत्वों से पूर्ण स्वल्पाहार की व्यवस्था कराई, जिसके फलस्वरूप बच्चों के स्वास्थ्य में ध्यानाकर्षण सुधार हुआ। स्वास्थ्य में सुधार होने से बच्चों में पढ़ने की रुचि बढ़ने लगी, जिसको देखकर प्रायः सभी नागरिक अपने बच्चों को पाठशाला भेजने के लिये समुत्सुक होने लगे। महानगरपालिका की अध्यक्षा होने के साथ-साथ श्रीमती तारा चेरियन - महिला कल्याण विभाग, बाल मन्दिर, स्कूल ऑफ़ शोसल-वर्कस एण्ड द गिल्ड ऑफ़ सर्विस, भारतीय समाज सेवा संगठन, अखिल भारतीय महिला खाद्यान्न परिषद्, क्षेत्रीय पर्यटन सलाहकार समिति तथा जीवन-बीमा निगम की सलाहकार परिषद् की अभिभाविका एवं कार्यकर्त्री भी थीं।
मृत्यु
तारा चेरियन की मृत्यु 7 नवम्बर 2000 को हो गईं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ परम परिश्रमी-श्रीमती तारा चेरियन (हिन्दी) literature.awgp.orglanguage। अभिगमन तिथि: 7 फ़रवरी, 2017।