"बृहदनन्तवीर्य": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
No edit summary |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "==टीका टिप्पणी और संदर्भ==" to "{{संदर्भ ग्रंथ}} ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==") |
||
(2 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 4 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
*इससे उसका महत्त्व जान पड़ता है। | *इससे उसका महत्त्व जान पड़ता है। | ||
*अन्वेषकों को इसका पता लगाना चाहिए। | *अन्वेषकों को इसका पता लगाना चाहिए। | ||
*इन्होंने अकलंकदेव के पदों का जिस कुशलता और बुद्धिमत्ता से मर्म खोला है उसे देखकर आचार्य [[वादिराज]]<ref> | *इन्होंने अकलंकदेव के पदों का जिस कुशलता और बुद्धिमत्ता से मर्म खोला है उसे देखकर आचार्य [[वादिराज]]<ref>ई. 1025</ref> और प्रभाचन्द्र<ref>ई. 1953</ref> कहते हैं कि 'यदि अनन्तवीर्य अकलंक के दुरूह एवं जटिल पदों का मर्मोद्घाटन न करते तो उनके गूढ़ पदों का अर्थ समझने में हम असमर्थ रहते। | ||
*उनके द्वारा किये गये व्याख्यानों के आधार से ही हम ([[प्रभाचन्द्र]] और वादिराज, क्रमश: लघीयस्त्रय की व्याख्या (लघीयस्त्रयालंकार- न्यायकुमुदचन्द्र) एवं न्यायविनिश्चय की टीका (न्यायविनिश्चयालंकार अथवा न्यायविनिश्चय विवरण) लिख सके हैं।<ref>वीर सेवा मन्दिर ट्रस्ट प्रकाशन, 1977</ref> | *उनके द्वारा किये गये व्याख्यानों के आधार से ही हम ([[प्रभाचन्द्र]] और वादिराज, क्रमश: लघीयस्त्रय की व्याख्या (लघीयस्त्रयालंकार- न्यायकुमुदचन्द्र) एवं न्यायविनिश्चय की टीका (न्यायविनिश्चयालंकार अथवा न्यायविनिश्चय विवरण) लिख सके हैं।<ref>वीर सेवा मन्दिर ट्रस्ट प्रकाशन, 1977</ref> | ||
==टीका टिप्पणी== | {{संदर्भ ग्रंथ}} | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
<references/> | <references/> | ||
==संबंधित लेख== | |||
{{जैन धर्म2}} | |||
{{जैन धर्म}} | |||
[[Category:दर्शन कोश]] | [[Category:दर्शन कोश]] | ||
[[Category:जैन_दर्शन]] | [[Category:जैन_दर्शन]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
10:10, 21 मार्च 2011 के समय का अवतरण
आचार्य बृहदनन्तवीर्य
- ये विक्रम संवत 9वीं शती के प्रतिभा सम्पन्न तार्किक हैं।
- इन्होंने अकलंकदेव के 'सिद्धिविनिश्चय' और 'प्रमाणसंग्रह' इन दो न्याय-ग्रन्थों पर विशाल व्याख्याएँ लिखी हैं।
- सिद्धिविनिश्चय पर लिखी 'सिद्धिविनिश्चयालंकार' व्याख्या उपलब्ध है, परन्तु प्रमाणसंग्रह पर लिखा 'प्रमाणसंग्रहभाष्य' अनुपलब्ध है।
- इसका उल्लेख स्वयं अनन्तवीर्य ने 'सिद्धिविनिश्चयालंकार' में अनेक स्थलों पर विशेष जानने के लिए किया है।
- इससे उसका महत्त्व जान पड़ता है।
- अन्वेषकों को इसका पता लगाना चाहिए।
- इन्होंने अकलंकदेव के पदों का जिस कुशलता और बुद्धिमत्ता से मर्म खोला है उसे देखकर आचार्य वादिराज[1] और प्रभाचन्द्र[2] कहते हैं कि 'यदि अनन्तवीर्य अकलंक के दुरूह एवं जटिल पदों का मर्मोद्घाटन न करते तो उनके गूढ़ पदों का अर्थ समझने में हम असमर्थ रहते।
- उनके द्वारा किये गये व्याख्यानों के आधार से ही हम (प्रभाचन्द्र और वादिराज, क्रमश: लघीयस्त्रय की व्याख्या (लघीयस्त्रयालंकार- न्यायकुमुदचन्द्र) एवं न्यायविनिश्चय की टीका (न्यायविनिश्चयालंकार अथवा न्यायविनिश्चय विवरण) लिख सके हैं।[3]