"अभिनव धर्मभूषणयति": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
(नया पन्ना: {{Menu}} ==अभिनव धर्मभूषणयति / Abhinav Dharmbhushanyati== *जैन तार्किकों में ये अधिक लोकप...)
 
No edit summary
 
(5 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 9 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{{Menu}}
==अभिनव धर्मभूषणयति / Abhinav Dharmbhushanyati==
*जैन तार्किकों में ये अधिक लोकप्रिय और उल्लेखनीय हैं।  
*जैन तार्किकों में ये अधिक लोकप्रिय और उल्लेखनीय हैं।  
*इनकीं 'न्यायदीपिका' एक ऐसी महत्वपूर्ण एवं यशस्वी कृति है जो न्यायशास्त्र में प्रवेश करने के लिए बहुत ही सुगम और सरल है।  
*इनकीं 'न्यायदीपिका' एक ऐसी महत्त्वपूर्ण एवं यशस्वी कृति है जो न्यायशास्त्र में प्रवेश करने के लिए बहुत ही सुगम और सरल है।  
*न्यायशास्त्र के प्राथमिक अभ्यासी इसी के माध्यम से [[अकलंकदेव]] और [[विद्यानन्द]] के दुरूह एवं जटिल न्यायग्रन्थों में प्रवेश करते हैं।  
*न्यायशास्त्र के प्राथमिक अभ्यासी इसी के माध्यम से [[अकलंकदेव]] और [[विद्यानन्द]] के दुरूह एवं जटिल न्यायग्रन्थों में प्रवेश करते हैं।  
*न्याय का ऐसा कोई विषय नहीं छूटा जिसका धर्मभूषणयति ने इसमें संक्षेपत: और सरल भाषा में प्रतिपादन न किया हो।  
*न्याय का ऐसा कोई विषय नहीं छूटा जिसका धर्मभूषणयति ने इसमें संक्षेपत: और सरल भाषा में प्रतिपादन न किया हो।  
पंक्ति 8: पंक्ति 6:
*अनुमान का विवेचन तो ग्रन्थ के बहुभाग में निबद्ध है और बड़े सरल ढंग से उसे दिया है।  
*अनुमान का विवेचन तो ग्रन्थ के बहुभाग में निबद्ध है और बड़े सरल ढंग से उसे दिया है।  
*वास्तव में यह अभिनव धर्मभूषण की प्रतिभा, योग्यता और कुशलता की परिचायिका कृति है।  
*वास्तव में यह अभिनव धर्मभूषण की प्रतिभा, योग्यता और कुशलता की परिचायिका कृति है।  
*इनका समय ई॰ 1358 से 1418 है।
*इनका समय ई. 1358 से 1418 है।
[[Category:कोश]]
{{menu}}
==संबंधित लेख==
{{जैन धर्म2}}
{{जैन धर्म}}
[[Category:दर्शन कोश]]
[[Category:जैन_दर्शन]]
[[Category:जैन_दर्शन]]
__INDEX__
__INDEX__

12:26, 14 जून 2011 के समय का अवतरण

  • जैन तार्किकों में ये अधिक लोकप्रिय और उल्लेखनीय हैं।
  • इनकीं 'न्यायदीपिका' एक ऐसी महत्त्वपूर्ण एवं यशस्वी कृति है जो न्यायशास्त्र में प्रवेश करने के लिए बहुत ही सुगम और सरल है।
  • न्यायशास्त्र के प्राथमिक अभ्यासी इसी के माध्यम से अकलंकदेव और विद्यानन्द के दुरूह एवं जटिल न्यायग्रन्थों में प्रवेश करते हैं।
  • न्याय का ऐसा कोई विषय नहीं छूटा जिसका धर्मभूषणयति ने इसमें संक्षेपत: और सरल भाषा में प्रतिपादन न किया हो।
  • प्रमाण, प्रमाण के भेदों, नय और नय के भेदों के अलावा अनेकान्त, सप्तभंगी, वीतरागकथा, विजिगीषुकथा जैसे विषयों का भी इस छोटी-सी कृति में समावेश कर उनका संक्षेप में विशद निरूपण किया है।
  • अनुमान का विवेचन तो ग्रन्थ के बहुभाग में निबद्ध है और बड़े सरल ढंग से उसे दिया है।
  • वास्तव में यह अभिनव धर्मभूषण की प्रतिभा, योग्यता और कुशलता की परिचायिका कृति है।
  • इनका समय ई. 1358 से 1418 है।

संबंधित लेख