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*इनके 'प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार' और उसकी व्याख्या 'स्याद्वादरत्नाकर' ये दो तर्कग्रंथ प्रसिद्ध हैं। | *इनके 'प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार' और उसकी व्याख्या 'स्याद्वादरत्नाकर' ये दो तर्कग्रंथ प्रसिद्ध हैं। | ||
*इन दोनों पर आचार्य [[माणिक्यनन्दि]] के 'परीक्षामुख' का शब्दश: और अर्थश: पूरा प्रभाव है। | *इन दोनों पर आचार्य [[माणिक्यनन्दि]] के 'परीक्षामुख' का शब्दश: और अर्थश: पूरा प्रभाव है। | ||
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12:03, 15 जून 2011 के समय का अवतरण
आचार्य देवसूरि
- देवसूरि 'वादि' उपाधि से विभूषित अभिहित हैं।
- इनके 'प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार' और उसकी व्याख्या 'स्याद्वादरत्नाकर' ये दो तर्कग्रंथ प्रसिद्ध हैं।
- इन दोनों पर आचार्य माणिक्यनन्दि के 'परीक्षामुख' का शब्दश: और अर्थश: पूरा प्रभाव है।
- इसके 6 परिच्छेद तो 'परीक्षामुख' की तरह ही हैं और अन्तिम दो परिच्छेद (नयपरिच्छेद तथा वादपरिच्छेद) परीक्षामुख से ज़्यादा हैं।
- पर उन पर भी परीक्षामुख[1] के सूत्रों का प्रभाव लक्षित होता है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ परि0 6/73, 74