"सिद्धसेन द्वितीय": अवतरणों में अंतर

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*इन्होंने न्यायशास्त्र का एकमात्र 'न्यायावतार' ग्रन्थ लिखा है, जिसमें जैन न्यायविद्या का 32 कारिकाओं में सांगोपांग निरूपण किया है।  
*इन्होंने न्यायशास्त्र का एकमात्र 'न्यायावतार' ग्रन्थ लिखा है, जिसमें जैन न्यायविद्या का 32 कारिकाओं में सांगोपांग निरूपण किया है।  
*इनकी रची कुछ द्वात्रिंशतिकाएँ भी हैं जिनमें [[तीर्थंकर]] की स्तुति के बहाने [[जैन दर्शन]] और जैन न्याय का भी दिग्दर्शन किया गया है।
*इनकी रची कुछ द्वात्रिंशतिकाएँ भी हैं जिनमें [[तीर्थंकर]] की स्तुति के बहाने [[जैन दर्शन]] और जैन न्याय का भी दिग्दर्शन किया गया है।
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13:32, 20 जून 2011 के समय का अवतरण

  • इनका समय 9वीं शती माना जाता है।
  • इन्होंने न्यायशास्त्र का एकमात्र 'न्यायावतार' ग्रन्थ लिखा है, जिसमें जैन न्यायविद्या का 32 कारिकाओं में सांगोपांग निरूपण किया है।
  • इनकी रची कुछ द्वात्रिंशतिकाएँ भी हैं जिनमें तीर्थंकर की स्तुति के बहाने जैन दर्शन और जैन न्याय का भी दिग्दर्शन किया गया है।

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