"दुर्गा चालीसा": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
छो (1 अवतरण)
छो (Text replace - "{{आरती स्तुति स्त्रोत}}" to "{{आरती स्तुति स्तोत्र}}")
 
(7 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 11 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
==श्री दुर्गा चालीसा / Durga Chalisa==
[[चित्र:Durga-Devi.jpg|thumb|250|[[दुर्गा|दुर्गा देवी]]<br />Durga Devi]]
[[चित्र:Durga-Devi.jpg|thumb|250|[[दुर्गा|दुर्गा देवी]]<br />Durga Devi]]


नमो नमो दुर्गे सुख करनी । नमो नमो अम्बे दुःख हरनी ॥<br />
<blockquote><span style="color: maroon"><poem>नमो नमो दुर्गे सुख करनी । नमो नमो अम्बे दुःख हरनी ॥
 
निराकार है ज्योति तुम्हारी । तिहूं लोक फैली उजियारी ॥
निराकार है ज्योति तुम्हारी । तिहूं लोक फैली उजियारी ॥<br />
शशि ललाट मुख महा विशाला । नेत्र लाल भृकुटी विकराला ॥
 
रुप मातु को अधिक सुहावे । दरश करत जन अति सुख पावे ॥
शशि ललाट मुख महा विशाला । नेत्र लाल भृकुटी विकराला ॥<br />
तुम संसार शक्ति लय कीना । पालन हेतु अन्न धन दीना ॥
 
अन्नपूर्णा हु‌ई जग पाला । तुम ही आदि सुन्दरी बाला ॥
रुप मातु को अधिक सुहावे । दरश करत जन अति सुख पावे ॥<br />
प्रलयकाल सब नाशन हारी । तुम गौरी शिव शंकर प्यारी ॥
 
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें । ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें ॥
तुम संसार शक्ति लय कीना । पालन हेतु अन्न धन दीना ॥<br />
रुप सरस्वती को तुम धारा । दे सुबुद्घि ऋषि मुनिन उबारा ॥
 
धरा रूप नरसिंह को अम्बा । प्रगट भ‌ई फाड़कर खम्बा ॥
अन्नपूर्णा हु‌ई जग पाला । तुम ही आदि सुन्दरी बाला ॥<br />
रक्षा कर प्रहलाद बचायो । हिरणाकुश को स्वर्ग पठायो ॥
 
लक्ष्मी रूप धरो जग माही । श्री नारायण अंग समाही ॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी । तुम गौरी शिव शंकर प्यारी ॥<br />
क्षीरसिन्धु में करत विलासा । दयासिन्धु दीजै मन आसा ॥
 
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी । महिमा अमित न जात बखानी ॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें । ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें ॥<br />
मातंगी धूमावति माता । भुवनेश्वरि बगला सुखदाता ॥
 
श्री भैरव तारा जग तारिणि । छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी ॥
रुप सरस्वती को तुम धारा । दे सुबुद्घि ऋषि मुनिन उबारा ॥<br />
केहरि वाहन सोह भवानी । लांगुर वीर चलत अगवानी ॥
 
कर में खप्पर खड्ग विराजे । जाको देख काल डर भाजे ॥
धरा रुप नरसिंह को अम्बा । प्रगट भ‌ई फाड़कर खम्बा ॥<br />
सोहे अस्त्र और तिरशूला । जाते उठत शत्रु हिय शूला ॥
 
नगर कोटि में तुम्ही विराजत । तिहूं लोक में डंका बाजत ॥
रक्षा कर प्रहलाद बचायो । हिरणाकुश को स्वर्ग पठायो ॥<br />
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे । रक्तबीज शंखन संहारे ॥
 
महिषासुर नृप अति अभिमानी । जेहि अघ भार मही अकुलानी ॥
लक्ष्मी रुप धरो जग माही । श्री नारायण अंग समाही ॥<br />{{दुर्गा}}
रुप कराल कालिका धारा । सेन सहित तुम तिहि संहारा ॥
 
परी गाढ़ सन्तन पर जब जब । भ‌ई सहाय मातु तुम तब तब ॥
क्षीरसिन्धु में करत विलासा । दयासिन्धु दीजै मन आसा ॥<br />
अमरपुरी अरु बासव लोका । तब महिमा सब रहें अशोका ॥
 
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी । तुम्हें सदा पूजें नर नारी ॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी । महिमा अमित न जात बखानी ॥<br />
प्रेम भक्ति से जो यश गावै । दुःख दारिद्र निकट नहिं आवे ॥
 
ध्यावे तुम्हें जो नर मन ला‌ई । जन्म-मरण ताको छुटि जा‌ई ॥
मातंगी धूमावति माता । भुवनेश्वरि बगला सुखदाता ॥<br />
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी । योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी ॥
 
शंकर आचारज तप कीनो । काम अरु क्रोध जीति सब लीनो ॥
श्री भैरव तारा जग तारिणि । छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी ॥<br />
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को । काहू काल नहिं सुमिरो तुमको ॥
 
शक्ति रूप को मरम न पायो । शक्ति ग‌ई तब मन पछतायो ॥
केहरि वाहन सोह भवानी । लांगुर वीर चलत अगवानी ॥<br />
शरणागत हु‌ई कीर्ति बखानी । जय जय जय जगदम्ब भवानी ॥
 
भ‌ई प्रसन्न आदि जगदम्बा । द‌ई शक्ति नहिं कीन विलम्बा ॥
कर में खप्पर खड्ग विराजे । जाको देख काल डर भाजे ॥<br />
मोको मातु कष्ट अति घेरो । तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो ॥
 
आशा तृष्णा निपट सतवे । मोह मदादिक सब विनशावै ॥
सोहे अस्त्र और तिरशूला । जाते उठत शत्रु हिय शूला ॥<br />
शत्रु नाश कीजै महारानी । सुमिरों इकचित तुम्हें भवानी ॥
 
करौ कृपा हे मातु दयाला । ऋद्घि सिद्घि दे करहु निहाला ॥
नगर कोटि में तुम्ही विराजत । तिहूं लोक में डंका बाजत ॥<br />
जब लगि जियौं दया फल पा‌ऊँ । तुम्हरो यश मैं सदा सुना‌ऊँ ॥
 
दुर्गा चालीसा जो नित गावै । सब सुख भोग परम पद पावै ॥
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे । रक्तबीज शंखन संहारे ॥<br />
देवीदास शरण निज जानी । करहु कृपा जगदम्ब भवानी ॥</poem></span></blockquote>
 
महिषासुर नृप अति अभिमानी । जेहि अघ भार मही अकुलानी ॥<br />
 
रुप कराल कालिका धारा । सेन सहित तुम तिहि संहारा ॥<br />
 
परी गाढ़ सन्तन पर जब जब । भ‌ई सहाय मातु तुम तब तब ॥<br />
 
अमरपुरी अरु बासव लोका । तब महिमा सब रहें अशोका ॥<br />
 
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी । तुम्हें सदा पूजें नर नारी ॥<br />
 
प्रेम भक्ति से जो यश गावै । दुःख दारिद्र निकट नहिं आवे ॥<br />
 
ध्यावे तुम्हें जो नर मन ला‌ई । जन्म-मरण ताको छुटि जा‌ई ॥<br />
 
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी । योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी ॥<br />
 
शंकर आचारज तप कीनो । काम अरु क्रोध जीति सब लीनो ॥<br />
 
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को । काहू काल नहिं सुमिरो तुमको ॥<br />
 
शक्ति रुप को मरम न पायो । शक्ति ग‌ई तब मन पछतायो ॥<br />
 
शरणागत हु‌ई कीर्ति बखानी । जय जय जय जगदम्ब भवानी ॥<br />
 
भ‌ई प्रसन्न आदि जगदम्बा । द‌ई शक्ति नहिं कीन विलम्बा ॥<br />
 
मोको मातु कष्ट अति घेरो । तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो ॥<br />
 
आशा तृष्णा निपट सतवे । मोह मदादिक सब विनशावै ॥<br />
 
शत्रु नाश कीजै महारानी । सुमिरों इकचित तुम्हें भवानी ॥<br />
 
करौ कृपा हे मातु दयाला । ऋद्घि सिद्घि दे करहु निहाला ॥<br />
 
जब लगि जियौं दया फल पा‌ऊँ । तुम्हरो यश मैं सदा सुना‌ऊँ ॥<br />
 
दुर्गा चालीसा जो नित गावै । सब सुख भोग परम पद पावै ॥<br />
 
देवीदास शरण निज जानी । करहु कृपा जगदम्ब भवानी ॥ <br />
 
 
 
[[Category:विविध]]


{{seealso|दुर्गा|दुर्गाष्टमी|दुर्गा जी की आरती}}
{{प्रचार}}
==संबंधित लेख==
{{आरती स्तुति स्तोत्र}}
[[Category:आरती स्तुति स्तोत्र]]
[[Category:हिन्दू_धर्म_कोश]]


__INDEX__
__INDEX__

12:55, 12 जुलाई 2011 के समय का अवतरण

दुर्गा देवी
Durga Devi

नमो नमो दुर्गे सुख करनी । नमो नमो अम्बे दुःख हरनी ॥
निराकार है ज्योति तुम्हारी । तिहूं लोक फैली उजियारी ॥
शशि ललाट मुख महा विशाला । नेत्र लाल भृकुटी विकराला ॥
रुप मातु को अधिक सुहावे । दरश करत जन अति सुख पावे ॥
तुम संसार शक्ति लय कीना । पालन हेतु अन्न धन दीना ॥
अन्नपूर्णा हु‌ई जग पाला । तुम ही आदि सुन्दरी बाला ॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी । तुम गौरी शिव शंकर प्यारी ॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें । ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें ॥
रुप सरस्वती को तुम धारा । दे सुबुद्घि ऋषि मुनिन उबारा ॥
धरा रूप नरसिंह को अम्बा । प्रगट भ‌ई फाड़कर खम्बा ॥
रक्षा कर प्रहलाद बचायो । हिरणाकुश को स्वर्ग पठायो ॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माही । श्री नारायण अंग समाही ॥
क्षीरसिन्धु में करत विलासा । दयासिन्धु दीजै मन आसा ॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी । महिमा अमित न जात बखानी ॥
मातंगी धूमावति माता । भुवनेश्वरि बगला सुखदाता ॥
श्री भैरव तारा जग तारिणि । छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी ॥
केहरि वाहन सोह भवानी । लांगुर वीर चलत अगवानी ॥
कर में खप्पर खड्ग विराजे । जाको देख काल डर भाजे ॥
सोहे अस्त्र और तिरशूला । जाते उठत शत्रु हिय शूला ॥
नगर कोटि में तुम्ही विराजत । तिहूं लोक में डंका बाजत ॥
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे । रक्तबीज शंखन संहारे ॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी । जेहि अघ भार मही अकुलानी ॥
रुप कराल कालिका धारा । सेन सहित तुम तिहि संहारा ॥
परी गाढ़ सन्तन पर जब जब । भ‌ई सहाय मातु तुम तब तब ॥
अमरपुरी अरु बासव लोका । तब महिमा सब रहें अशोका ॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी । तुम्हें सदा पूजें नर नारी ॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावै । दुःख दारिद्र निकट नहिं आवे ॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन ला‌ई । जन्म-मरण ताको छुटि जा‌ई ॥
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी । योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी ॥
शंकर आचारज तप कीनो । काम अरु क्रोध जीति सब लीनो ॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को । काहू काल नहिं सुमिरो तुमको ॥
शक्ति रूप को मरम न पायो । शक्ति ग‌ई तब मन पछतायो ॥
शरणागत हु‌ई कीर्ति बखानी । जय जय जय जगदम्ब भवानी ॥
भ‌ई प्रसन्न आदि जगदम्बा । द‌ई शक्ति नहिं कीन विलम्बा ॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो । तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो ॥
आशा तृष्णा निपट सतवे । मोह मदादिक सब विनशावै ॥
शत्रु नाश कीजै महारानी । सुमिरों इकचित तुम्हें भवानी ॥
करौ कृपा हे मातु दयाला । ऋद्घि सिद्घि दे करहु निहाला ॥
जब लगि जियौं दया फल पा‌ऊँ । तुम्हरो यश मैं सदा सुना‌ऊँ ॥
दुर्गा चालीसा जो नित गावै । सब सुख भोग परम पद पावै ॥
देवीदास शरण निज जानी । करहु कृपा जगदम्ब भवानी ॥

इन्हें भी देखें: दुर्गा, दुर्गाष्टमी एवं दुर्गा जी की आरती

संबंधित लेख