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बोहाग बिहू या रंगोली बिहू असम का मुख्य पर्व है। बसन्त ऋतु इस समय अपने चरम पर होती है। खेत, पेड़–पौधे तथा बेलें सभी हरे–भरे होते हैं। पेड़ों पर नये–नये पत्ते आ जाते हैं और हवा में [[फूल|फूलों]] की महक भी तैरने लगती है। पूरा वातावरण खुशबूमय हो जाता है। पक्षी प्रसन्न होकर चहचहाने लगते हैं। वातावरण में चारों ओर खुशहाली ही खुशहाली छा जाती है। तब मनुष्य भी नाचने–गाने को मचल उठता है। यही वैशाखी का पावन दिन है, जब असमिया नववर्ष का शुभारम्भ हो जाता है। 'बिहू' को प्रकृति का अनुपम उपहार भी कहा जाता है।  
बोहाग बिहू या रंगोली बिहू [[असम]] का मुख्य पर्व है। बसन्त ऋतु इस समय अपने चरम पर होती है। खेत, पेड़–पौधे तथा बेलें सभी हरे–भरे होते हैं। पेड़ों पर नये–नये पत्ते आ जाते हैं और हवा में [[फूल|फूलों]] की महक भी तैरने लगती है। पूरा वातावरण खुशबूमय हो जाता है। पक्षी प्रसन्न होकर चहचहाने लगते हैं। वातावरण में चारों ओर खुशहाली ही खुशहाली छा जाती है। तब मनुष्य भी नाचने–गाने को मचल उठता है। यही [[वैशाखी]] का पावन दिन है, जब असमिया नववर्ष का शुभारम्भ हो जाता है। '[[बिहू]]' को प्रकृति का अनुपम उपहार भी कहा जाता है।  


बोहाग बिहू के लिए कहा गया है-
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असमिया जातिर इ आयुष रेखा गण जीवनोर इ साह।।"</poem>  
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अर्थात् वैशाख केवल एक ऋतु ही नहीं, न ही यह एक [[मास]] है, बल्कि यह असमिया जाति की आयुरेख और जनगण का साहस है। चैत्र मास की संक्रान्ति के दिन से ही बिहू उत्सव प्रारम्भ हो जाता है। इसे 'उरूरा' कहते हैं। इस दिन भोर से ही चरवाहे [[लौकी]], [[बैंगन]], [[हल्दी]], दीघलती, माखियति आदि सामग्री बनाने में जुट जाते हैं। शाम को सभी [[गाय|गायों]] को गुहाली (गोशाला) में लाकर बाँध देते हैं। विश्वास किया जाता है कि उरूरा के दिन गायों को खुला नहीं रखा जाता है। गाय के चरवाहे एक डलिया में लौकी, बैंगन आदि सजाते हैं। प्रत्येक गाय के लिए एक नयी रस्सी तैयार की जाती है।  
अर्थात् वैशाख केवल एक ऋतु ही नहीं, न ही यह एक [[मास]] है, बल्कि यह असमिया जाति की आयुरेख और जनगण का साहस है। चैत्र मास की संक्रान्ति के दिन से ही बिहू उत्सव प्रारम्भ हो जाता है। इसे 'उरूरा' कहते हैं। इस दिन भोर से ही चरवाहे [[लौकी]], [[बैंगन]], [[हल्दी]], दीघलती, माखियति आदि सामग्री बनाने में जुट जाते हैं। शाम को सभी [[गाय|गायों]] को गुहाली (गोशाला) में लाकर बाँध देते हैं। विश्वास किया जाता है कि उरूरा के दिन गायों को खुला नहीं रखा जाता है। गाय के चरवाहे एक डलिया में लौकी, बैंगन आदि सजाते हैं। प्रत्येक गाय के लिए एक नयी रस्सी तैयार की जाती है।  
इस पर्व को अप्रैल मास में तीन दिन—13, 14 और 15 अप्रैल तक मनाया जाता है। इन तीनों दिनों को विभिन्न नामों से जाना जाता है। गोरूबिहू (इसे "उरका" भी कहते हैं), मनुहोरबिहू एवं गम्बोरीबिहू।
इस पर्व को अप्रैल मास में तीन दिन—13, 14 और 15 अप्रैल तक मनाया जाता है। इन तीनों दिनों को विभिन्न नामों से जाना जाता है। [[गोरूबिहू]]<ref>इसे "उरका" भी कहते हैं</ref>, [[मनुहोरबिहू]] एवं [[गम्बोरीबिहू]]।


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04:13, 4 अक्टूबर 2011 के समय का अवतरण

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बोहाग बिहू या रंगोली बिहू असम का मुख्य पर्व है। बसन्त ऋतु इस समय अपने चरम पर होती है। खेत, पेड़–पौधे तथा बेलें सभी हरे–भरे होते हैं। पेड़ों पर नये–नये पत्ते आ जाते हैं और हवा में फूलों की महक भी तैरने लगती है। पूरा वातावरण खुशबूमय हो जाता है। पक्षी प्रसन्न होकर चहचहाने लगते हैं। वातावरण में चारों ओर खुशहाली ही खुशहाली छा जाती है। तब मनुष्य भी नाचने–गाने को मचल उठता है। यही वैशाखी का पावन दिन है, जब असमिया नववर्ष का शुभारम्भ हो जाता है। 'बिहू' को प्रकृति का अनुपम उपहार भी कहा जाता है।

बोहाग बिहू के लिए कहा गया है-

"बोहाग नोहोये माथो एटी ऋतु, नहय बोहाग एटि माह।
असमिया जातिर इ आयुष रेखा गण जीवनोर इ साह।।"

अर्थात् वैशाख केवल एक ऋतु ही नहीं, न ही यह एक मास है, बल्कि यह असमिया जाति की आयुरेख और जनगण का साहस है। चैत्र मास की संक्रान्ति के दिन से ही बिहू उत्सव प्रारम्भ हो जाता है। इसे 'उरूरा' कहते हैं। इस दिन भोर से ही चरवाहे लौकी, बैंगन, हल्दी, दीघलती, माखियति आदि सामग्री बनाने में जुट जाते हैं। शाम को सभी गायों को गुहाली (गोशाला) में लाकर बाँध देते हैं। विश्वास किया जाता है कि उरूरा के दिन गायों को खुला नहीं रखा जाता है। गाय के चरवाहे एक डलिया में लौकी, बैंगन आदि सजाते हैं। प्रत्येक गाय के लिए एक नयी रस्सी तैयार की जाती है। इस पर्व को अप्रैल मास में तीन दिन—13, 14 और 15 अप्रैल तक मनाया जाता है। इन तीनों दिनों को विभिन्न नामों से जाना जाता है। गोरूबिहू[1], मनुहोरबिहू एवं गम्बोरीबिहू


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. इसे "उरका" भी कहते हैं

बाहरी कड़ियाँ

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