"जनरल पेरों": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
(''''जनरल पेरों''' एक फ़्राँसीसी भृत्य (भाड़े का) सैनिक थ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
No edit summary |
||
पंक्ति 17: | पंक्ति 17: | ||
<references/> | <references/> | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{औपनिवेशिक काल}} | |||
[[Category:]][[Category:]] | [[Category:इतिहास कोश]] | ||
[[Category:औपनिवेशिक काल]] | |||
__INDEX__ | __INDEX__ |
11:03, 4 नवम्बर 2011 के समय का अवतरण
जनरल पेरों एक फ़्राँसीसी भृत्य (भाड़े का) सैनिक था, जो पहली बार 1780 ई. में भारत आया। 1781 ई. में गोहर के राणा ने उसे अपने पास नौकर के रूप में रख लिया। बाद में वह भरतपुर राज्य की सेवा में आया। 1790 ई. में दब्वांग ने उसे महादजी शिन्दे की सेवा में रख लिया।
- जनरल पेरों ने शिन्दे को कई प्रतिद्वन्द्वी राजाओं पर विजय प्राप्त करने में मदद की थी।
- 1796 ई. में दब्वांग के अवकाश ग्रहण करने पर वह शिन्दे का सेनापति नियुक्त हुआ।
- उसने राजपूताना पर महत्त्वपूर्ण रूप से शिन्दे का आधिपत्य स्थापित कर दिया था।
- 1803 ई. में जब दूसरा मराठा युद्ध आरम्भ हुआ, तब पेरों भारतीय ब्रिटिश सेनाओं के विरुद्ध कोई सफलता प्राप्त नहीं कर सका
- अलीगढ़ तथा कोमल की लड़ाईयों में जनरल पेरों को हार का मुँह देखना पड़ा।
- फलस्वरूप दौलतराव शिन्दे का पेरों पर से विश्वास उठ गया और उसने उसकी जगह पर अम्बाजी को सेनापति नियुक्त कर दिया।
- लालवाड़ी में शिन्दे की सेना के हारने के बाद पेरों ने यह नौकरी छोड़ दी और कलकत्ता चला गया।
- कलकत्ता में उसने ईस्ट इंडिया कम्पनी की शरण ग्रहण कर ली।
- कम्पनी ने उसके कुशल सकुशल फ़्राँस लौटने का प्रबंध कर दिया, जहाँ 1834 ई. में उसकी मृत्यु हो गई।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
भारतीय इतिहास कोश |लेखक: सच्चिदानन्द भट्टाचार्य |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 247 |