"कर्नाटक की संस्कृति": अवतरणों में अंतर

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*[[कर्नाटक]] में विभिन्न राजवंशों के योगदान के कारण एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत मौजूद है, जिसमें विभिन्न धर्मों और दर्शनों को बढ़ावा दिया गया है।  
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*इन्होंने साहित्य वास्तुशिल्प, लोकगीतों, संगीत, चित्रकला और लघु कलाओं पर अपना प्रभाव छोड़ा है।
*[[कर्नाटक]] में विभिन्न राजवंशों के योगदान के कारण एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत मौजूद है, जिसमें विभिन्न [[धर्म|धर्मों]] और [[दर्शन|दर्शनों]] को बढ़ावा दिया गया है।  
*[[मैसूर]] से 90 किमी. दूर श्रवणबेलगोला नगर में मौर्य वास्तुशिल्प और मूर्तिशिल्प के उल्लेखनीय उदाहरण मिलते हैं, जैसे जैन मुनि बाहुबली (गोमतेश्वर) की लगभग 1,000 वर्ष पुरानी मानी जाने वाली विशालकाय प्रस्तर प्रतिमा।  
*इन्होंने साहित्य वास्तुशिल्प, लोकगीतों, [[संगीत]], [[चित्रकला]] और लघु कलाओं पर अपना प्रभाव छोड़ा है।
*[[मैसूर]] से 90 किमी दूर [[श्रवणबेलगोला मैसूर|श्रवणबेलगोला]] में मौर्य वास्तुशिल्प और मूर्तिशिल्प के उल्लेखनीय उदाहरण मिलते हैं, जैसे [[बाहुबलि|जैन मुनि बाहुबलि]] (गोमतेश्वर) की लगभग 1,000 वर्ष पुरानी मानी जाने वाली विशालकाय प्रस्तर प्रतिमा।  
*विशाल आकार और एक ही चट्टान से तराशी गई जैन प्रतिमाएँ [[कन्नड़]] संस्कृति की विशेषता है।  
*विशाल आकार और एक ही चट्टान से तराशी गई जैन प्रतिमाएँ [[कन्नड़]] संस्कृति की विशेषता है।  
*सातवीं शताब्दी के मन्दिरों के वास्तुशिल्प में चालुक्य और पल्लव वंशों का प्रभाव अब भी स्पष्ट है।
*सातवीं शताब्दी के मन्दिरों के वास्तुशिल्प में [[चालुक्य वंश|चालुक्य]] और [[पल्लव वंश|पल्लव]] वंशों का प्रभाव अब भी स्पष्ट है।
*पश्चिमी शक्तियों के आगमन ने शहरी क्षेत्रों के आभिजात्य वर्ग को पश्चिमी वास्तुशिल्प और जीवन शैली से परिचित कराया।  
*पश्चिमी शक्तियों के आगमन ने शहरी क्षेत्रों के आभिजात्य वर्ग को पश्चिमी वास्तुशिल्प और जीवन शैली से परिचित कराया।  
*इसी प्रकार मुस्लिम शासकों ने न सिर्फ़ इस्लाम की नींव रखी, बल्कि वास्तुशिल्प को भी प्रभावित किया।  
*इसी प्रकार [[मुस्लिम]] शासकों ने न सिर्फ़ [[इस्लाम]] की नींव रखी, बल्कि वास्तुशिल्प को भी प्रभावित किया।  
*कर्नाटक का पश्चिमी तटीय क्षेत्र काफ़ी हद तक [[ईसाई धर्म]] से प्रभावित है।
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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09:08, 8 जुलाई 2012 के समय का अवतरण

यक्षगान नृत्य
  • कर्नाटक में विभिन्न राजवंशों के योगदान के कारण एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत मौजूद है, जिसमें विभिन्न धर्मों और दर्शनों को बढ़ावा दिया गया है।
  • इन्होंने साहित्य वास्तुशिल्प, लोकगीतों, संगीत, चित्रकला और लघु कलाओं पर अपना प्रभाव छोड़ा है।
  • मैसूर से 90 किमी दूर श्रवणबेलगोला में मौर्य वास्तुशिल्प और मूर्तिशिल्प के उल्लेखनीय उदाहरण मिलते हैं, जैसे जैन मुनि बाहुबलि (गोमतेश्वर) की लगभग 1,000 वर्ष पुरानी मानी जाने वाली विशालकाय प्रस्तर प्रतिमा।
  • विशाल आकार और एक ही चट्टान से तराशी गई जैन प्रतिमाएँ कन्नड़ संस्कृति की विशेषता है।
  • सातवीं शताब्दी के मन्दिरों के वास्तुशिल्प में चालुक्य और पल्लव वंशों का प्रभाव अब भी स्पष्ट है।
  • पश्चिमी शक्तियों के आगमन ने शहरी क्षेत्रों के आभिजात्य वर्ग को पश्चिमी वास्तुशिल्प और जीवन शैली से परिचित कराया।
  • इसी प्रकार मुस्लिम शासकों ने न सिर्फ़ इस्लाम की नींव रखी, बल्कि वास्तुशिल्प को भी प्रभावित किया।
  • कर्नाटक का पश्चिमी तटीय क्षेत्र काफ़ी हद तक ईसाई धर्म से प्रभावित है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख