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*यह सांख्यकारिका की अर्वाचीन व्याख्या है।  
*यह सांख्यकारिका की अर्वाचीन व्याख्या है।  
*इसमें विज्ञानभिक्षु की ही तरह परमात्मा की सत्ता को स्वीकार किया गया है।  
*इसमें विज्ञानभिक्षु की ही तरह परमात्मा की सत्ता को स्वीकार किया गया है।  
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विविक्त: परम: पुमानेक एव । स आदौ सर्गमूलनिर्वाहाय  
विविक्त: परम: पुमानेक एव । स आदौ सर्गमूलनिर्वाहाय  
ज्ञानेन विविक्तौऽपि इच्छया अविविक्तो भवति।
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*तरु वसंत के रचयिता मुडुम्ब नरसिंह स्वामी है।  
*तरु वसंत के रचयिता मुडुम्ब नरसिंह स्वामी है।  
*इसका प्रकांशन डॉ॰ पी.के. शशिधरन के सम्पादन में मदुरै कामराज विश्वविद्यालय द्वारा 1981 में हुआ।  
*इसका प्रकांशन डॉ. पी.के. शशिधरन के सम्पादन में मदुरै कामराज विश्वविद्यालय द्वारा 1981 में हुआ।  
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07:25, 27 जुलाई 2012 के समय का अवतरण

  • यह सांख्यकारिका की अर्वाचीन व्याख्या है।
  • इसमें विज्ञानभिक्षु की ही तरह परमात्मा की सत्ता को स्वीकार किया गया है।
  • सांख्य तथा वेदान्त समन्वय के रूप में इस व्याख्या को जाना जाता है।
  • तीसरी कारिका की व्याख्या के प्रसंग में तरु वसन्तम् में लिखा है-

पुरुष एक: सनातन: स निर्विशेष: चितिरूप.... पुमान्
अविविक्त संसार भुक् संसार पालकश्चेति द्विकोटिस्थो वर्तर्ते।
विविक्त: परम: पुमानेक एव । स आदौ सर्गमूलनिर्वाहाय
ज्ञानेन विविक्तौऽपि इच्छया अविविक्तो भवति।

  • इन विचारों का समर्थन श्री अभय मजूमदार ने भी किया है [1]
  • तरु वसंत के रचयिता मुडुम्ब नरसिंह स्वामी है।
  • इसका प्रकांशन डॉ. पी.के. शशिधरन के सम्पादन में मदुरै कामराज विश्वविद्यालय द्वारा 1981 में हुआ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सांख्य कन्सेप्ट आफ पर्सनालिटी

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