"साँचा:नरोत्तमदास की रचनाएँ": अवतरणों में अंतर
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<poem>(सुदामा की पत्नी) | <poem>(सुदामा की पत्नी) | ||
लोचन-कमल, दुख मोचन, तिलक भाल, | लोचन-कमल, दुख मोचन, तिलक भाल, स्रवननि कुंडल, मुकुट धरे माथ हैं। | ||
स्रवननि कुंडल, मुकुट धरे माथ हैं। | ओढ़े पीत बसन, गरे में बैजयंती माल, संख-चक्र-गदा और पद्म लिये हाथ हैं। | ||
ओढ़े पीत बसन, गरे में बैजयंती माल, | विद्व नरोत्तम संदीपनि गुरु के पास, तुम ही कहत हम पढ़े एक साथ हैं। | ||
संख-चक्र-गदा और पद्म लिये हाथ हैं। | द्वारिका के गये हरि दारिद हरैंगे पिय, द्वारिका के नाथ वै अनाथन के नाथ हैं॥8॥ | ||
विद्व नरोत्तम संदीपनि गुरु के पास, | |||
तुम ही कहत हम पढ़े एक साथ हैं। | |||
द्वारिका के गये हरि दारिद हरैंगे पिय, | |||
द्वारिका के नाथ वै अनाथन के नाथ हैं॥8॥ | |||
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मेरे हिये हरि के पद-पंकज, बार हजार लै देखि परिच्छा। | मेरे हिये हरि के पद-पंकज, बार हजार लै देखि परिच्छा। | ||
औरन को धन चाहिये बावरि, ब्राह्मन को धन केवल भिच्छा॥9॥ | औरन को धन चाहिये बावरि, ब्राह्मन को धन केवल भिच्छा॥9॥ | ||
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जो जनती न हितू हरि सों तुम्हें, काहे को द्वारिका पेलि पठौती। | जो जनती न हितू हरि सों तुम्हें, काहे को द्वारिका पेलि पठौती। | ||
या घर ते न गयौ कबहूँ पिय, टूटो तवा अरु फूटी कठौती॥10॥ | या घर ते न गयौ कबहूँ पिय, टूटो तवा अरु फूटी कठौती॥10॥ | ||
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पाँउ कहाँ ते अटारि अटा, जिनको विधि दीन्हि है टूटि सी छानी। | पाँउ कहाँ ते अटारि अटा, जिनको विधि दीन्हि है टूटि सी छानी। | ||
जो पै दरिद्र लिखो है ललाट तौ, काहु पै मेटि न जात अयानी॥13॥ | जो पै दरिद्र लिखो है ललाट तौ, काहु पै मेटि न जात अयानी॥13॥ | ||
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<poem>(सुदामा की पत्नी) | <poem>(सुदामा की पत्नी) | ||
विप्र के भगत हरि जगत विदित बंधु, | विप्र के भगत हरि जगत विदित बंधु, लेत सब ही की सुधि ऐसे महादानि हैं। | ||
लेत सब ही की सुधि ऐसे महादानि हैं। | पढ़े एक चटसार कही तुम कैयो बार, लोचन अपार वै तुम्हैं न पहिचानि हैं। | ||
पढ़े एक चटसार कही तुम कैयो बार, | एक दीनबंधु कृपासिंधु फेरि गुरुबंधु, तुम सम कौन दीन जाकौ जिय जानि हैं। | ||
लोचन अपार वै तुम्हैं न पहिचानि हैं। | नाम लेते चौगुनी, गये तें द्वार सौगुनी सो, देखत सहस्त्र गुनी प्रीति प्रभु मानि हैं॥20॥ | ||
एक दीनबंधु कृपासिंधु फेरि गुरुबंधु, | |||
तुम सम कौन दीन जाकौ जिय जानि हैं। | |||
नाम लेते चौगुनी, गये तें द्वार सौगुनी सो, | |||
देखत सहस्त्र गुनी प्रीति प्रभु मानि हैं॥20॥ | |||
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(सुदामा) | (सुदामा) | ||
द्वारिका जाहु जू द्वारिका जाहु जू, आठहु जाम यहै झक तेरे। | द्वारिका जाहु जू द्वारिका जाहु जू, आठहु जाम यहै झक तेरे। | ||
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द्वार खरे प्रभु के छरिया तहँ, भूपति जान न पावत नेरे। | द्वार खरे प्रभु के छरिया तहँ, भूपति जान न पावत नेरे। | ||
पाँच सुपारि तै देखु बिचार कै, भेंट को चारि न चाउर मेरे॥23॥ | पाँच सुपारि तै देखु बिचार कै, भेंट को चारि न चाउर मेरे॥23॥ | ||
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यह सुनि कै तब ब्राह्मनी, गई परोसी पास। | यह सुनि कै तब ब्राह्मनी, गई परोसी पास। | ||
पाव सेर चाउर लिये, आई सहित हुलास॥24॥ | पाव सेर चाउर लिये, आई सहित हुलास॥24॥ | ||
सिद्धि करी गनपति सुमिरि, बाँधि दुपटिया खूँट। | सिद्धि करी गनपति सुमिरि, बाँधि दुपटिया खूँट। | ||
माँगत खात चले तहाँ, मारग वाली बूट॥25॥ | माँगत खात चले तहाँ, मारग वाली बूट॥25॥ | ||
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दीठि चकचौंधि गई देखत सुबर्नमई, | दीठि चकचौंधि गई देखत सुबर्नमई, | ||
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पूछे बिन कोऊ कहूँ काहू सों न करे बात, | पूछे बिन कोऊ कहूँ काहू सों न करे बात, | ||
देवता से बैठे सब साधि-साधि मौन हैं। | देवता से बैठे सब साधि-साधि मौन हैं। | ||
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देखत सुदामा धाय पौरजन गहे पाँय, | देखत सुदामा धाय पौरजन गहे पाँय, | ||
कृपा करि कहौ विप्र कहाँ कीन्हौ गौन हैं। | कृपा करि कहौ विप्र कहाँ कीन्हौ गौन हैं। | ||
धीरज अधीर के हरन पर पीर के, | धीरज अधीर के हरन पर पीर के, | ||
बताओ बलवीर के महल यहाँ कौन हैं?॥30॥ | बताओ बलवीर के महल यहाँ कौन हैं?॥30॥ | ||
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(श्रीकृष्ण का द्वारपाल) | |||
श्रीकृष्ण का द्वारपाल) | |||
सीस पगा न झगा तन में प्रभु, जानै को आहि बसै केहि ग्रामा। | सीस पगा न झगा तन में प्रभु, जानै को आहि बसै केहि ग्रामा। | ||
धोति फटी-सी लटी दुपटी अरु, पाँय उपानह की नहिं सामा॥ | धोति फटी-सी लटी दुपटी अरु, पाँय उपानह की नहिं सामा॥ | ||
द्वार खड्यो द्विज दुर्बल एक, रह्यौ चकिसौं वसुधा अभिरामा। | द्वार खड्यो द्विज दुर्बल एक, रह्यौ चकिसौं वसुधा अभिरामा। | ||
पूछत दीन दयाल को धाम, बतावत आपनो नाम सुदामा॥II35II | पूछत दीन दयाल को धाम, बतावत आपनो नाम सुदामा॥II35II | ||
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बोल्यौ द्वारपाल सुदामा नाम पाँड़े सुनि, | बोल्यौ द्वारपाल सुदामा नाम पाँड़े सुनि, छाँड़े राज-काज ऐसे जी की गति जानै को? | ||
छाँड़े राज-काज ऐसे जी की गति जानै को? | द्वारिका के नाथ हाथ जोरि धाय गहे पाँय, भेंटत लपटाय करि ऐसे दुख सानै को? | ||
द्वारिका के नाथ हाथ जोरि धाय गहे पाँय, | नैन दोऊ जल भरि पूछत कुसल हरि, बिप्र बोल्यौं विपदा में मोहि पहिचाने को? | ||
भेंटत लपटाय करि ऐसे दुख सानै को? | जैसी तुम करौ तैसी करै को कृपा के सिंधु, ऐसी प्रीति दीनबंधु! दीनन सौ माने को?II 36II | ||
नैन दोऊ जल भरि पूछत कुसल हरि, | |||
बिप्र बोल्यौं विपदा में मोहि पहिचाने को? | |||
जैसी तुम करौ तैसी करै को कृपा के सिंधु, | |||
ऐसी प्रीति दीनबंधु! दीनन सौ माने को?II 36II | |||
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ऐसे बेहाल बेवाइन सों पग, कंटक-जाल लगे पुनि जोये। | ऐसे बेहाल बेवाइन सों पग, कंटक-जाल लगे पुनि जोये। | ||
हाय! महादुख पायो सखा तुम, आये इतै न किते दिन खोये॥ | हाय! महादुख पायो सखा तुम, आये इतै न किते दिन खोये॥ | ||
देखि सुदामा की दीन दसा, करुना करिके करुनानिधि रोये। | देखि सुदामा की दीन दसा, करुना करिके करुनानिधि रोये। | ||
पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सौं पग धोये॥ II42II | पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सौं पग धोये॥ II42II | ||
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पोटरि काँख में चाँपि रहे तुम, खोलत नाहिं सुधा-रस भीने। | पोटरि काँख में चाँपि रहे तुम, खोलत नाहिं सुधा-रस भीने। | ||
पाछिलि बानि अजौं न तजी तुम, तैसइ भाभी के तंदुल कीने॥ II47II | पाछिलि बानि अजौं न तजी तुम, तैसइ भाभी के तंदुल कीने॥ II47II | ||
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देनो हुतौ सो दै चुके, बिप्र न जानी गाथ। | देनो हुतौ सो दै चुके, बिप्र न जानी गाथ। | ||
चलती बेर गोपाल जू, कछू न दीन्हौं हाथ॥II 60II | चलती बेर गोपाल जू, कछू न दीन्हौं हाथ॥II 60II | ||
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वह पुलकनि वह उठ मिलनि, वह आदर की भाँति। | वह पुलकनि वह उठ मिलनि, वह आदर की भाँति। | ||
यह पठवनि गोपाल की, कछू ना जानी जाति॥II61II | यह पठवनि गोपाल की, कछू ना जानी जाति॥II61II | ||
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घर-घर कर ओड़त फिरे, तनक दही के काज। | घर-घर कर ओड़त फिरे, तनक दही के काज। | ||
कहा भयौ जो अब भयौ, हरि को राज-समाज॥II62II | कहा भयौ जो अब भयौ, हरि को राज-समाज॥II62II | ||
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04:35, 8 सितम्बर 2012 के समय का अवतरण
विप्र सुदामा बसत हैं, सदा आपने धाम। |
ताकी घरनी पतिव्रता, गहै वेद की रीति। |
कह्यौ सुदामा एक दिन, कृस्न हमारे मित्र। |
(सुदामा की पत्नी) |
(सुदामा) |
(सुदामा की पत्नी) |
(सुदामा) |
(सुदामा की पत्नी) |
(सुदामा) |
यह सुनि कै तब ब्राह्मनी, गई परोसी पास। |
दीठि चकचौंधि गई देखत सुबर्नमई, |
देखत सुदामा धाय पौरजन गहे पाँय, |
(श्रीकृष्ण का द्वारपाल) |
बोल्यौ द्वारपाल सुदामा नाम पाँड़े सुनि, छाँड़े राज-काज ऐसे जी की गति जानै को? |
ऐसे बेहाल बेवाइन सों पग, कंटक-जाल लगे पुनि जोये। |
(श्री कृष्ण) |
आगे चना गुरु-मातु दिये त, लिये तुम चाबि हमें नहिं दीने। |
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वह पुलकनि वह उठ मिलनि, वह आदर की भाँति। |
घर-घर कर ओड़त फिरे, तनक दही के काज। |
हौं कब इत आवत हुतौ, वाही पठ्यौ ठेलि। |
वैसेइ राज-समाज बने, गज-बाजि घने, मन संभ्रम छायौ। |
टूटी सी मड़ैया मेरी परी हुती याही ठौर, |
कै वह टूटि-सि छानि हती कहाँ, कंचन के सब धाम सुहावत। |