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*इब्राहीम ख़ाँ 1689-97 ई. में [[बंगाल]] का [[मुग़ल]] सूबेदार था।
*'''इब्राहीम ख़ाँ''' 1689-97 ई. में [[बंगाल]] का [[मुग़ल]] [[सूबेदार]] था।
*वह शान्त स्वभाव का बूढ़ा आदमी था और [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] के प्रति मित्रता का भाव रखता था।
*वह शान्त स्वभाव का बूढ़ा आदमी था और [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] के प्रति मित्रता का भाव रखता था।
*उसके पहले के सूबेदार [[शाइस्ता ख़ाँ]] ने अंग्रेज़ों को बंगाल से निकाल दिया था।
*उसके पहले के सूबेदार [[शाइस्ता ख़ाँ]] ने अंग्रेज़ों को बंगाल से निकाल दिया था।
*इब्राहीम ख़ाँ ने अंग्रेज़ों को वापस बुला लिया और [[जॉव चारनाक]] को उस स्थान पर बसने की इजाज़त दे दी, जहाँ बाद में [[कोलकाता]] नगर विकसित हुआ।
*इब्राहीम ख़ाँ ने अंग्रेज़ों को वापस बुला लिया और जॉव चारनाक को उस स्थान पर बसने की इजाज़त दे दी, जहाँ बाद में [[कोलकाता]] नगर विकसित हुआ।
*इब्राहीम ख़ाँ प्रशासन के कार्यों की बहुत ही ज़्यादा उपेक्षा करता था। इसीलिए [[मिदनापुर]] ज़िले के ज़मींदार [[शोभा सिंह]] को बग़ावत करने का मौक़ा मिल गया।
*इब्राहीम ख़ाँ प्रशासन के कार्यों की बहुत ही ज़्यादा उपेक्षा करता था। इसीलिए [[मिदनापुर]] ज़िले के ज़मींदार शोभा सिंह को बग़ावत करने का मौक़ा मिल गया।
*इब्राहीम ख़ाँ ने इस बग़ावत को तत्काल ही नहीं दबाया।
*इब्राहीम ख़ाँ ने इस बग़ावत को तत्काल ही नहीं दबाया।
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06:43, 2 दिसम्बर 2012 के समय का अवतरण

  • इब्राहीम ख़ाँ 1689-97 ई. में बंगाल का मुग़ल सूबेदार था।
  • वह शान्त स्वभाव का बूढ़ा आदमी था और अंग्रेज़ों के प्रति मित्रता का भाव रखता था।
  • उसके पहले के सूबेदार शाइस्ता ख़ाँ ने अंग्रेज़ों को बंगाल से निकाल दिया था।
  • इब्राहीम ख़ाँ ने अंग्रेज़ों को वापस बुला लिया और जॉव चारनाक को उस स्थान पर बसने की इजाज़त दे दी, जहाँ बाद में कोलकाता नगर विकसित हुआ।
  • इब्राहीम ख़ाँ प्रशासन के कार्यों की बहुत ही ज़्यादा उपेक्षा करता था। इसीलिए मिदनापुर ज़िले के ज़मींदार शोभा सिंह को बग़ावत करने का मौक़ा मिल गया।
  • इब्राहीम ख़ाँ ने इस बग़ावत को तत्काल ही नहीं दबाया।
  • अंग्रेज़ों, फ़्राँसीसियों और डच लोगों को बंगाल में अपनी बस्तियों की क़िलेबन्दी करने की इजाज़त देकर, ताकि वे शोभा सिंह का मुक़ाबला कर सकें, उसने इस स्थिति को और भी अधिक सोचनीय बना दिया।
  • इब्राहीम ख़ाँ की इन ग़लतियों से बादशाह औरंगज़ेब नाख़ुश हो गया और उसने 1697 ई. में उसे बंगाल की सूबेदारी से हटा दिया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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