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'''नगरी''' [[राजस्थान]] राज्य के [[चित्तौरगढ़ ज़िला|चित्तौरगढ़ ज़िले]] से 18 किमी दूर स्थित एक ऐतिहासिक गाँव है। नगरी का समीकरण [[पाणिनि]] की अष्टाध्यायी में उल्लिखित माध्यमिका से किया गया है। इसकी सर्वप्रथम खोज 1872 ई. में कार्लाइल द्वारा की गयी थी।  
'''नगरी''' [[राजस्थान]] राज्य के [[चित्तौरगढ़ ज़िला|चित्तौरगढ़ ज़िले]] से 18 किमी दूर स्थित एक ऐतिहासिक गाँव है। नगरी का समीकरण [[पाणिनि]] की [[अष्टाध्यायी]] में उल्लिखित माध्यमिका से किया गया है। इसकी सर्वप्रथम खोज 1872 ई. में कार्लाइल द्वारा की गयी थी।  
==उत्खनन==
==उत्खनन==
1919-20 में डॉ. आर. भण्डारकर द्वारा इस स्थान का [[उत्खनन]] कराया गया, जिसमें अनेक लेखयुक्त शिलाएँ, मृण्मूर्तियाँ, प्रतिमाएँ, अंलकरणयुक्त ईंटे, जिनमें पक्षियों की आकृतियाँ बनी हैं, ग्रीक-रोमन, प्रभाव से युक्त पुरुष शीर्ष, आहत एवं शिवि जनपद के सिक्के उपलब्ध हुए हैं। भण्डारकर के अनुसार माध्यमिका के शिवि जनों ने यह लेख उन शिवि लोगों से अपनी पृथक् सत्ता प्रमाणित करने के लिए लिखा है, जो [[पंजाब]] में रहते थे। नगरी के उत्खनन के आधार पर प्राचीन स्थापत्य कला के नमूने भी उपलब्ध हुए हैं, जिनमें हाथी बाड़ा नामक अहाता विशेष रूप से उल्लेखनीय है। यह अहाता बड़े-बड़े पाषाण खण्डों से निर्मित था।  
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====पुनः उत्खनन====
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1961-62 में नगरी में पुनः के.वी. सौन्दरराजन द्वारा उत्खनन कराया गया। इसके आधार पर यह जानकारी मिली है कि प्राचीन नगरी बस्ती की सुरक्षा के लिए एक दीवार बनायी गयी है। इसका निर्माण सम्भवतः ईसा की प्रारंभिक सदियों में हुआ था। [[कुषाण काल]] से सम्बन्ध रखने वाले चक्रकूप भी इस खुदाई में प्राप्त हुए। खुदाई में आहत सिक्के, मनके, शुंग तथा गुप्त शैली की मृण्मूर्तियाँ उपलब्ध हुई हैं। उत्खनन से प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर यह सिद्ध होता है कि मौर्योत्तर काल में यह स्थल महत्त्वपूर्ण नगर का रूप ले चुका था। वैसे माध्यमिका का सर्वाधिक प्राचीन उल्लेख हमें महाभारत में मिलता है। इसका विवरण सभापर्व में नकुल की दिग्विजय यात्रा के सन्दर्भ में मिलता है, जिसमें माध्यमिका को जनपद की संज्ञा दी गई है।  
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नगरी राजस्थान राज्य के चित्तौरगढ़ ज़िले से 18 किमी दूर स्थित एक ऐतिहासिक गाँव है। नगरी का समीकरण पाणिनि की अष्टाध्यायी में उल्लिखित माध्यमिका से किया गया है। इसकी सर्वप्रथम खोज 1872 ई. में कार्लाइल द्वारा की गयी थी।

उत्खनन

1919-20 में डॉ. आर. भण्डारकर द्वारा इस स्थान का उत्खनन कराया गया, जिसमें अनेक लेखयुक्त शिलाएँ, मृण्मूर्तियाँ, प्रतिमाएँ, अंलकरणयुक्त ईंटे, जिनमें पक्षियों की आकृतियाँ बनी हैं, ग्रीक-रोमन, प्रभाव से युक्त पुरुष शीर्ष, आहत एवं शिवि जनपद के सिक्के उपलब्ध हुए हैं। भण्डारकर के अनुसार माध्यमिका के शिविजनों ने यह लेख उन शिवि लोगों से अपनी पृथक् सत्ता प्रमाणित करने के लिए लिखा है, जो पंजाब में रहते थे। नगरी के उत्खनन के आधार पर प्राचीन स्थापत्य कला के नमूने भी उपलब्ध हुए हैं, जिनमें हाथी बाड़ा नामक अहाता विशेष रूप से उल्लेखनीय है। यह अहाता बड़े-बड़े पाषाण खण्डों से निर्मित था।

पुनः उत्खनन

1961-62 में नगरी में पुनः के.वी. सौन्दरराजन द्वारा उत्खनन कराया गया। इसके आधार पर यह जानकारी मिली है कि प्राचीन नगरी बस्ती की सुरक्षा के लिए एक दीवार बनायी गयी है। इसका निर्माण सम्भवतः ईसा की प्रारंभिक सदियों में हुआ था। कुषाण काल से सम्बन्ध रखने वाले चक्रकूप भी इस खुदाई में प्राप्त हुए। खुदाई में आहत सिक्के, मनके, शुंग तथा गुप्त शैली की मृण्मूर्तियाँ उपलब्ध हुई हैं। उत्खनन से प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर यह सिद्ध होता है कि मौर्योत्तर काल में यह स्थल महत्त्वपूर्ण नगर का रूप ले चुका था। वैसे माध्यमिका का सर्वाधिक प्राचीन उल्लेख हमें महाभारत में मिलता है। इसका विवरण सभापर्व में नकुल की दिग्विजय यात्रा के सन्दर्भ में मिलता है, जिसमें माध्यमिका को जनपद की संज्ञा दी गई है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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