"अमृतसर की सन्धि": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
छो (Text replace - " खिलाफ़ " to " ख़िलाफ़ ")
 
(2 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
*'''अमृतसर की सन्धि''' 25 अप्रैल, 1809 ई. को [[रणजीत सिंह]] और [[ईस्ट इंडिया कम्पनी]] के बीच हुई। उस समय [[लॉर्ड मिण्टो प्रथम]], [[भारत]] का [[गवर्नर-जनरल]] था।  
*'''अमृतसर की सन्धि''' 25 अप्रैल, 1809 ई. को [[रणजीत सिंह]] और [[ईस्ट इंडिया कम्पनी]] के बीच हुई। उस समय [[लॉर्ड मिण्टो प्रथम]], [[भारत]] का [[गवर्नर-जनरल]] था।  
*इस सन्धि के द्वारा [[सतलुज नदी|सतलज]] पार की [[पंजाब]] की रियासतें [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] के सरक्षण में आ गईं और सतलज के पश्चिम में पंजाब राज्य का शासक रणजीत सिंह को मान लिया गया।  
*इस सन्धि के द्वारा [[सतलुज नदी|सतलज]] पार की [[पंजाब]] की रियासतें [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] के संरक्षण में आ गईं और सतलज के पश्चिम में पंजाब राज्य का शासक रणजीत सिंह को मान लिया गया।  
*[[कश्मीर]] जो रणजीत सिंह के राज्य का हिस्सा था, उसे राजा [[दलीप सिंह]] से ले लिया गया और अंग्रेज़ों ने उसे गुलाब सिंह को दे दिया।
*[[कश्मीर]] जो रणजीत सिंह के राज्य का हिस्सा था, उसे राजा [[दलीप सिंह]] से ले लिया गया और अंग्रेज़ों ने उसे गुलाब सिंह को दे दिया।
*इस समझौते ने एक पीढ़ी तक आंग्‍ल-सिक्‍ख संबंध को कायम रखा। इस संधि तात्‍कालिक कारण नेपोलियन की रुसियों के साथ तिलसित संधि (1807) हो जाने के बाद पश्‍चिमोत्‍तर क्षेत्र में फ्रांसीसियों के हमले की आशंका एवं महाराजा रणजीत सिंह के संयुक्‍त सतलुज राज्‍यों को अपने नियंत्रण में लाने के प्रयास थे।  
*इस समझौते ने एक पीढ़ी तक आंग्‍ल-सिक्‍ख संबंध को क़ायम रखा। इस संधि का तात्‍कालिक कारण नेपोलियन की रुसियों के साथ 'तिलसित संधि' (1807) हो जाने के बाद पश्‍चिमोत्‍तर क्षेत्र में फ्रांसीसियों के हमले की आशंका एवं महाराजा रणजीत सिंह के सतलुज राज्‍यों को अपने नियंत्रण में लाने के संयुक्‍त प्रयास थे।  
* अंग्रेज फ्रांसीसियों के खिलाफ एक रक्षा संधि चाहते थे और ही वह पंजाब को सतलुज तक नियंत्रित रखना चाहते थे, हालांकि यह एक रक्षा संधि नहीं थी, लेकिन इसने [[सतलुज नदी]] को लगभग एक मानक सीमा रेखा के रूप में निश्‍चित कर दिया।  
*अंग्रेज़ फ्रांसीसियों के ख़िलाफ़ एक रक्षा संधि चाहते थे और वह ही पंजाब को सतलुज तक नियंत्रित रखना चाहते थे, हालांकि यह एक रक्षा संधि नहीं थी, लेकिन इसने [[सतलुज नदी]] को लगभग एक मानक सीमा रेखा के रूप में निश्‍चित कर दिया।  
* मेटकाफ के इस लक्ष्‍य ने रणजीत सिंह के मन में कंपनी की अनुशासित सेना और युद्ध न करने के निश्‍चय के प्रति सम्‍मान पैदा कर दिया। इसके बाद उनका विजय-अभियान पश्‍चिम और उत्‍तर की ओर रहा।  
*मेटकाफ के इस लक्ष्‍य ने रणजीत सिंह के मन में कंपनी की अनुशासित सेना और युद्ध न करने के निश्‍चय के प्रति सम्‍मान पैदा कर दिया। इसके बाद उनका विजय-अभियान पश्‍चिम और उत्‍तर की ओर रहा।  
*गुलाब सिंह [[लाहौर]] दरबार का एक सरदार था। इसके बदले में उसने अंग्रेज़ों को दस लाख रुपये दिये।
*गुलाब सिंह [[लाहौर]] दरबार का एक सरदार था। इसके बदले में उसने अंग्रेज़ों को दस लाख रुपये दिये।



11:35, 14 मई 2013 के समय का अवतरण

  • अमृतसर की सन्धि 25 अप्रैल, 1809 ई. को रणजीत सिंह और ईस्ट इंडिया कम्पनी के बीच हुई। उस समय लॉर्ड मिण्टो प्रथम, भारत का गवर्नर-जनरल था।
  • इस सन्धि के द्वारा सतलज पार की पंजाब की रियासतें अंग्रेज़ों के संरक्षण में आ गईं और सतलज के पश्चिम में पंजाब राज्य का शासक रणजीत सिंह को मान लिया गया।
  • कश्मीर जो रणजीत सिंह के राज्य का हिस्सा था, उसे राजा दलीप सिंह से ले लिया गया और अंग्रेज़ों ने उसे गुलाब सिंह को दे दिया।
  • इस समझौते ने एक पीढ़ी तक आंग्‍ल-सिक्‍ख संबंध को क़ायम रखा। इस संधि का तात्‍कालिक कारण नेपोलियन की रुसियों के साथ 'तिलसित संधि' (1807) हो जाने के बाद पश्‍चिमोत्‍तर क्षेत्र में फ्रांसीसियों के हमले की आशंका एवं महाराजा रणजीत सिंह के सतलुज राज्‍यों को अपने नियंत्रण में लाने के संयुक्‍त प्रयास थे।
  • अंग्रेज़ फ्रांसीसियों के ख़िलाफ़ एक रक्षा संधि चाहते थे और वह ही पंजाब को सतलुज तक नियंत्रित रखना चाहते थे, हालांकि यह एक रक्षा संधि नहीं थी, लेकिन इसने सतलुज नदी को लगभग एक मानक सीमा रेखा के रूप में निश्‍चित कर दिया।
  • मेटकाफ के इस लक्ष्‍य ने रणजीत सिंह के मन में कंपनी की अनुशासित सेना और युद्ध न करने के निश्‍चय के प्रति सम्‍मान पैदा कर दिया। इसके बाद उनका विजय-अभियान पश्‍चिम और उत्‍तर की ओर रहा।
  • गुलाब सिंह लाहौर दरबार का एक सरदार था। इसके बदले में उसने अंग्रेज़ों को दस लाख रुपये दिये।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

भट्टाचार्य, सच्चिदानन्द भारतीय इतिहास कोश, द्वितीय संस्करण-1989 (हिन्दी), भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, 15।

संबंधित लेख