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'''सर रॉबर्ट बारकर''' [[वारेन हेस्टिंग्स]] के शासनकाल में [[ईस्ट इंडिया कम्पनी]] की सेवा में था और यह बाद में तरक्की करके प्रधान सेनापति बन गया। उसकी उपस्थिति में 17 जून 1772 ई. को [[अवध]] के नवाब [[शुजाउद्दौला]] और रुहेलों के नेता हफ़ीज रहमत ख़ाँ के बीच संधि पर हस्ताक्षर हुए थे। इस संधि में यह उल्लिखित था कि यदि मराठे [[रुहेलखंड|रुहेलखण्ड]] पर आक्रमण करते हैं तो अवध का नवाब [[मराठा|मराठों]] को निष्कासित कराने में रुहेलों की सहायता करेगा और बदले में रुहेल उसे चालीस लाख रुपया देंगे। रॉबर्ट बारकर संधि पर हस्ताक्षर होने का केवल साक्षी था, क्रियान्वयन के सम्बन्ध में कोई आश्वासन नहीं दिया था। बाद में संधि का उल्लघंन होने पर [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] को उसे लागू करने के लिए रुहेलखण्ड में अपनी सेना भेजनी पड़ी।
'''सर रॉबर्ट बारकर''' [[वारेन हेस्टिंग्स]] के शासनकाल में [[ईस्ट इंडिया कम्पनी]] की सेवा में था और यह बाद में तरक़्क़ी करके प्रधान सेनापति बन गया। उसकी उपस्थिति में 17 जून 1772 ई. को [[अवध]] के नवाब [[शुजाउद्दौला]] और रुहेलों के नेता हफ़ीज रहमत ख़ाँ के बीच संधि पर हस्ताक्षर हुए थे। इस संधि में यह उल्लिखित था कि यदि मराठे [[रुहेलखंड|रुहेलखण्ड]] पर आक्रमण करते हैं तो अवध का नवाब [[मराठा|मराठों]] को निष्कासित कराने में रुहेलों की सहायता करेगा और बदले में रुहेल उसे चालीस लाख रुपया देंगे। रॉबर्ट बारकर संधि पर हस्ताक्षर होने का केवल साक्षी था, क्रियान्वयन के सम्बन्ध में कोई आश्वासन नहीं दिया था। बाद में संधि का उल्लघंन होने पर [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] को उसे लागू करने के लिए रुहेलखण्ड में अपनी सेना भेजनी पड़ी।


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06:23, 29 जून 2013 के समय का अवतरण

सर रॉबर्ट बारकर वारेन हेस्टिंग्स के शासनकाल में ईस्ट इंडिया कम्पनी की सेवा में था और यह बाद में तरक़्क़ी करके प्रधान सेनापति बन गया। उसकी उपस्थिति में 17 जून 1772 ई. को अवध के नवाब शुजाउद्दौला और रुहेलों के नेता हफ़ीज रहमत ख़ाँ के बीच संधि पर हस्ताक्षर हुए थे। इस संधि में यह उल्लिखित था कि यदि मराठे रुहेलखण्ड पर आक्रमण करते हैं तो अवध का नवाब मराठों को निष्कासित कराने में रुहेलों की सहायता करेगा और बदले में रुहेल उसे चालीस लाख रुपया देंगे। रॉबर्ट बारकर संधि पर हस्ताक्षर होने का केवल साक्षी था, क्रियान्वयन के सम्बन्ध में कोई आश्वासन नहीं दिया था। बाद में संधि का उल्लघंन होने पर अंग्रेज़ों को उसे लागू करने के लिए रुहेलखण्ड में अपनी सेना भेजनी पड़ी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भट्टाचार्य, सच्चिदानन्द भारतीय इतिहास कोश, द्वितीय संस्करण-1989 (हिन्दी), भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, 284।

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