"अशोक स्तम्भ वैशाली": अवतरणों में अंतर
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* वैशाली का यह स्तम्भ [[अशोक]] के अन्य दूसरे स्तम्भों से बिलकुल अलग है क्योंकि स्तम्भ के शीर्ष पर केवल एक ही शेर है और उसका मुंह उत्तर दिशा की ओर है जिस दिशा में [[तथागत]] [[बुद्ध]] ने अपनी अंतिम यात्रा की थी। | * वैशाली का यह स्तम्भ [[अशोक]] के अन्य दूसरे स्तम्भों से बिलकुल अलग है क्योंकि स्तम्भ के शीर्ष पर केवल एक ही शेर है और उसका मुंह उत्तर दिशा की ओर है जिस दिशा में [[तथागत]] [[बुद्ध]] ने अपनी अंतिम यात्रा की थी। | ||
* सन [[1996]] में इसे चिन्हित कर खुदाई के दौरान बाहर निकाला गया। | * सन [[1996]] में इसे चिन्हित कर खुदाई के दौरान बाहर निकाला गया। | ||
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09:39, 8 जुलाई 2013 के समय का अवतरण
अशोक स्तम्भ वैशाली
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विवरण | वैशाली का यह स्तम्भ अशोक के अन्य दूसरे स्तम्भों से बिलकुल अलग है क्योंकि स्तम्भ के शीर्ष पर केवल एक ही शेर है और उसका मुंह उत्तर दिशा की ओर है जिस दिशा में तथागत बुद्ध ने अपनी अंतिम यात्रा की थी। |
स्थान | वैशाली, बिहार |
विशेष | सन 1996 में इसे चिन्हित कर खुदाई के दौरान बाहर निकाला गया। |
अन्य जानकारी | जैन धर्म के प्रवर्तक महावीर स्वामी का जन्म इसी नगरी में हुआ था। अतएव वे लोग इस पुरी को 'महावीर-जननी' कहते थे। वैशाली के नागरिक उनकी मृत्यु तिथि के अवसर पर रात्रि को दीपक जलाते थे। |
अशोक स्तम्भ वैशाली बिहार राज्य के वैशाली नगर में स्थित है।
- इस अशोक स्तम्भ के शीर्ष पर केवल एक ही शेर है।
- स्तम्भ के समीप एक बौद्ध मठ भी है।
- वैशाली का यह स्तम्भ अशोक के अन्य दूसरे स्तम्भों से बिलकुल अलग है क्योंकि स्तम्भ के शीर्ष पर केवल एक ही शेर है और उसका मुंह उत्तर दिशा की ओर है जिस दिशा में तथागत बुद्ध ने अपनी अंतिम यात्रा की थी।
- सन 1996 में इसे चिन्हित कर खुदाई के दौरान बाहर निकाला गया।
इतिहास
बुद्ध को यह स्थान बड़ा ही प्रिय था, अतएव बौद्ध लोग इस नगर की गणना अपने धार्मिक तीर्थ के रूप में करने लगे। लगता है कि अशोक बौद्ध तीर्थों का पर्यटन करता हुआ इस नगर में भी आया था। उसने वहाँ एक स्तम्भ खड़ा किया, पर्यटन करता हुआ इस नगर में भी आया था। उसने वहाँ एक स्तम्भ खड़ा किया, जिसके शीर्षस्थान पर एक सिंह-प्रतिमा मिलती है। यह लाट चुनार के बालूदार पत्थर की बनी है। चीनी यात्रियों ने भी इस नगर का वर्णन किया है। फाहियान लिखता है कि इसके उत्तर की दिशा में एक उद्यान था, जिसमें एक दुमंज़िला भवन बना हुआ था। लिच्छवियों ने गौतम बुद्ध के विश्राम की सुविधा के लिए इसे बनवा रखा था। उसने इस नगर में तीन स्तूपों के वर्तमान होने का उल्लेख किया है। ये उन स्थानों पर बने हुये थे जो गौतम बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित थे। हुयेनसांग लिखता है कि इस नगर के आस-पास की ज़मीन बहुत ही उपजाऊ थी। उसमें केले, आम तथा तरह-तरह के फल-फूल पैदा होते थे। चीनी यात्री का यह कथन प्रामाणिक है। आज भी मुज़फ़्फ़रपुर ज़िले में, जहाँ वैशाली का नगर स्थित था, लीची, केले और आम की फ़सल बहुत अच्छी होती है। हुयेनसांग लिखता है कि लिच्छवी बड़े ही ईमानदार, सुशिक्षित तथा धर्मपरायण थे। अपनी जबान की रक्षा के लिये वे प्राणों की बाज़ी लगा देते थे। उसने अशोक निर्मित स्तम्भ का उल्लेख भी किया है। उसने भी वहाँ कई स्तूपों के होने का उल्लेख किया है, जिनमें बुद्ध तथा उनके प्रिय शिष्यों की अस्थियाँ गाड़ी गई थीं। जैन धर्म के प्रवर्तक महावीर स्वामी का जन्म इसी नगरी में हुआ था। अतएव वे लोग इस पुरी को 'महावीर-जननी' कहते थे। वैशाली के नागरिक उनकी मृत्यु तिथि के अवसर पर रात्रि को दीपक जलाते थे।
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